पितृत्व – एक यात्रा

on Sunday, August 17, 2008





लेखन, एक संतुष्टि और एक आवश्यकता बन चुका है मेरे लिये ! एक निश्चित समयांतराल के पश्चात अंत: से आवाज आती है कि कुछ भावनाओं को शब्दों के रूप में उकेर कर संतुष्टि पायी जाय ! संतुष्टि अपने कच्चे-पक्के लेखक को प्रौढ् बनाने की कोशिश की !
आज का लेख मेरे लिये दिल के करीब है क्योंकि विषय के नायक पाँच बच्चे हैं
सोना , सूबी , सज्जाद , साबरीन और जुलेखा !

पृष्ठ्भूमि से प्रारंभ करते हैं ! आज से ठीक एक वर्ष पूर्व यानि 15 अगस्त 2007 को हम 10-12 युवक-युवतियाँ स्वतंत्रता दिवस मनाने पहुँचे एक स्कूल में “नई दिशा फ्री एजुकेशन सोसाईटी नोएडा “ ! कुछ भारतीय सेना के के सेवानिवृत अधिकारीयों ने करीब 12-15 वर्ष पूर्व इस स्कूल की नींव रखी ! यह स्कूल गरीब तबके के बच्चों की निशुल्क पढाता है ! स्वतंत्रता दिवस का वह समारोह मेरे लिये बहुत ही प्रेरक था ! हम लोग इतने युवा होने के बावजूद AID-PRAYAS (यानि हमारा प्रयास) में केवल शनिवार – रविवार की कक्षायें चलाने में पूरी तरह से सफल नही हो पा रहे थे ! और उन लोगों ने वृद्ध होने के बावजूद सफलता को नमन किया था ! हाँलाकि मैं मानता हूँ कि हम युवाओं के पास रोजगार एक ऐसा क्षेत्र है जो हमारे लिये समय की बाध्यता उत्पन्न करता है !

प्रयास के काफी सारे बच्चों( तकरीबन 20 बच्चे) का सरकारी विद्यालय में प्रवेश तो करा दिया था परंतु सरकारी प्रबन्ध की असफलता यहाँ भी मौजूद थी ! बच्चे स्कूल तो जाते हैं परंतु उनका मानसिक और शैक्षणिक विकास सही तरीके से हो ऐसा वातावरण नही है ! कक्षा चौथी-पाँचवी के बच्चे हिन्दी पढना नही जानते ! विजय भैया की प्रेरणा से सितम्बर 2007 से मैने केवल हिन्दी मात्रा और लेखन की कक्षायें लेनी शुरू की ! बहुत मेहनत के बाद बच्चों का हिन्दी भाषा-ज्ञान सुधर रहा था ! लेकिन एक अडचन थी वह ये कि हम बच्चों को केवल सप्ताहंत (शनिवार-रविवार ) में पढा पाते थे ! इसी मध्य हमें पता चला कि “ नई दिशा” स्कूल हमारे बच्चों को भर्ती कर सकता है ! अगर बच्चे परीक्षा उतीर्ण कर जायॆं ! यह बहुत बडी आशा की किरण थी हमारे लिये ! सभी Volunteers इस दिशा में सोच तो रहे थे परंतु कुछ ठोस कर पाना मुश्किल हो रहा था ! वजह यही कि सप्ताह में दो दिन पढाने से अपेक्षित परिणाम हासिल करना असंभव था ! काफी मेहनत के बावजूद जब सब कुछ व्यर्थ सा लगा तो एक दिन मैंने अरूण से बोला “ यार मैं बच्चों को रोज पढाना चाहता हूँ , पर कैसे पढाया जाय ये नही पता “ ! यद्यपि कठिन था पर इसका जवाब मैंने स्वयं ही ढूँढा ! रात को आफिस से आने के उपरांत 9 से 11 बजे तक पढाया जा सकता था !

जनवरी 2008 के प्रथम सप्ताह से रात्रि कक्षा शुरू की ! मुझे लगा था कि मैं अकेले ही कर लूँगा पर बहुत मुश्किल था , समय हर मुश्किल का जवाब दे देता है ! विकास और कनन ने भी साथ आना शुरू किया ! और हम तीन लोगों की टीम धीरे-धीरे लक्ष्य प्रप्ति के लिये लग गये ! लक्ष्य कठिन था क्योंकि ENGLISH जैसा विषय बच्चों के लिये बिल्कुल नया था औअर हमारे पास केवल 3 महीने थे !
पितृत्व का दौर अब शुरू हुआ ! पहली कक्षा A-B-C-D से शुरू हुई ! प्रत्येक कक्षा के बाद हम एक-एक बच्चे के लिये कुछ नया-नया प्लान बनाते ! सज्जाद को Drawing पसन्द थी तो उसको Drawing की मदद से पढाते थे ! सोना गणित में कमजोर थी तो उसकी गणित पर विशेष ध्यान दिया जाता था ! मुझे याद है कि small a-b-c-d शुरू करने में हम कितना घबरा रहे थे परंतु बच्चे “ नई दिशा “ जाने के लिये दृढ थे ! हमारी कक्षा का सबसे बडा मकसद रहता था “एक अच्छा ईंसान बनाने की नींव रखना” ! आज बच्चे झूठ नही बोलते,गाली नही देते,साफ-सुथरे रह्ते हैं आपस में लडते तो हैं पर मदद भी करते हैं !

मेरे लिये जनवरी से अप्रेल तक के वो तीन माह एक तपस्या के समान थे ! पढने के अलावा जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी वह ये कि हम लोग बच्चों के लिये एक पिता की तरह मह्सूस करने लगे थे ! अगर एक दिन कक्षा न जाओ तो बच्चे हम तीनों में से किसी दूसरे के फोन से फोन कर देते थे और सबसे पहला सवाल होता थ कि “सरजी आप क्यों नहीं आये ?“ ! हम लोग भी अगले दिन उनसे मिलने के लिये अत्यधिक उत्सुक रहते थे !

मार्च 2008 के आखिरी सप्ताह का वो दिन जब बच्चों का TEST था “नई दिशा” में ! मैं अपने बोर्ड की परीक्षा के लिये इतना नहीं घबराया कभी जितना इन बच्चों के TEST के लिये घबराया था ! मैं रोज पूजा नहीं करता हूँ पर उस दिन बच्चों की सफलता के लिये भगवान के द्वार भी पहुँच गया ! कनन अपने हर पेपर से पहले मम्मी से बात किया करता था अच्छे परिणाम के लिये ! और बच्चों की सफलता के लिये उस दिन भी उसने सुबह-सुबह मम्मी से फोन पर बात की :) !

बच्चों ने TEST में बहुत अच्छा नहीं किया क्योंकि यह वातावरण उन्होंने पहले नहीं देखा था ! और वैसे भी 3 माह में A-B-C-D से ENGLISH पढ – लिख सकने की उनकी हिम्मत काबिले-तारीफ तो थी परंतु यह वातावरण बिल्कुल नया था !

नई दिशा के मैनजमैंट से हमको एक प्रकार से लडाई लडनी पडी अपने बच्चों का पक्ष रखने में और आखिरकार सोना और सूबी कक्षा 3 में और जुलेखा , सज्जाद और साबरीन कक्षा2 में प्रवेश पाने में सफल हुए ! हम सबने यह सफलता को बहुत विशेष तरीके से मनाया ! Cake काटा गया और बच्चों को उनकी सफलता के लिये treat दी गई ! हम सब आनंदित थे विशेषत: क़नन ,विकास और मैं ! हमारे भीतर का पितृत्व बहुत सुखद मह्सूस कर रहा था !

        और आज का 15 अगस्त हम पून: “ नई दिशा” पहुँचे और संयोगवश केवल हम तीनों यानि मैं ,कनन और विकास ! आज हम पिछ्ले साल की तरह केवल volunteers की तरह नहीं गये थे वरन हम अभिभावक की तरह पहुँचे थे ! हमारे बच्चे अपने दोस्तों को बुला-बुलाकर बोल रहे थे कि ये हमारे दर्शन सर ,विकास सर और कनन सर हैं ! उस क्षण की खुशी को व्यक्त करना कठिन है !
           मैं कह सकता हूँ कि 15 अगस्त 2007 से 15 अगस्त 2008 तक देश ने विकास किया हो या न हो ,देश ने आजादी मह्सूस की हो या नही हो ! परंतु सोना ,सुबी ,जुलेखा,साबरीन और सज्जाद ने जरूर आजादी को मह्सूस किया होगा ,
                             

“अज्ञान से ज्ञान की आजादी, बेहतर शिक्षा पा सकने की आजादी “

शाम को AID-PRAYAS के 15 अगस्त समारोह में हमारी पितृत्व भावना उच्चतम स्तर पर थी जब इन बच्चों ने सबको यह कह सुनाया !

Thank You God for the world so sweet,
Thank You God for the food we eat,
Thank You God for the birds that sing,
Thank You God for everything!

Amen !!




A video which was created for AID-Noida can be viewed on the context of above story ..
https://www.youtube.com/watch?feature=endscreen&v=ydbmBc0biLo&NR=1





Darshan Mehra


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