D-51 ...

on Tuesday, November 18, 2008




समय
रात्रि के तकरीबन 1 बजे ,श्रीमान अमित कुमार जी लौटे ऋषिकेश यानि अपने गृह-शहर से ! अमित कुमार नाम से इनकी पहचान कम ही लोगों से है ! वरना ये संसार इनको “रैम्बो” नाम से ही पहचानता है ! मैं बाहर के कमरे में अर्धनिद्रा में सो ही रहा था कि रैम्बो बोला “ यार अब तो घर भी यहीं लगता है ” !


इस छोटे से वाक्य में काफी गहरा संदर्भ छुपा था ! यह कथन केवल रैम्बो के लिये ही सत्य नही था वरन हम चार अन्य दिग्गजों के लिये भी उतना ही सत्य था ! प्राय: किसी स्थान से लगाव होना वाजिब ही है जब वहाँ पर आप अपने जीवन का कोई भी हिस्सा व्यतीत करें ! लेकिन किसी घर का मतलब उस जगह से ना होकर इसमें रहने वाले लोगों से होता है ! इसीलिये हम घर उसे बोलते हैं जहाँ हमारा परिवार रह्ता है माँ,पिता भाई ,बहन आदि ! परंतु डी-51 एक ऐसा घर है जहाँ रिश्तों के नाम उपरोक्त रिश्तों में से कोई भी नहीं है लेकिन हम पाँच इसे घर ही कहते हैं !
           मैने ज्यादातर लोगों को यह कहते हुए सुना है कि हमारा बचपन जीवन का सबसे ज्यादा खूबसूरत दौर था ! जब खुशी और मस्ती का दामन थामे हुए हम सब अपनी सुन्दर सी, हसीन सी दुनिया में मदमस्त पंछी के समान विचरण किया करते थे ! परंतु मैं एक बात बहुत ठोस आधार पर कह सकता हूँ कि डी-51 के भीतर का जीवन उस हसीन बचपन से भी ज्यादा हसीन है ! अगर डी-51 के अन्दर वह बचपन की मस्ती है तो प्रौढ होने की स्वतंत्रता है ! यहाँ बचपन का अल्हडपन है तो एक-दूजे के लिये गहरे जज्बात हैं ! डी-51 की सर्वश्रेष्ट् बात बताना चाहूँ तो यह कि हम पाँचो किसी भी कार्य या आयोजन के लिये दूसरा विचार (second thought) नहीं देते ! यह एक दूसरे के लिये विश्वास है या हम पाँचों की जन्मजात प्रकृति !
चाहे रात के 2:30 बजे नोयडा की सडकों पर चाय का ठेला ढूँढना हो या आफिस से आने के पश्चात तरण-ताल(swimming pool) जाना हो ! कभी-कभी मुझे लगता है SPICE MALL में रात के 11:15 बजे की फिल्म शो का सबसे ज्यादा हकदार डी-51 ही है, कम से कम मैं तो मूवी-हाल सोने जाता हूँ 150 रू. की नींद :) !
जब से दो अन्ना :) (अरूण व सेल्वा) आये हैं तो हमारे इस घर में रही- सही कमी में पूर्णता आ गयी है ! छोटॆ अन्ना (सेल्वा :) ) ने हमें हर 15 दिन में केक काटना सीखा दिया ! चाहे वो मम्मी-पापा का जन्मदिन मनाना हो या orkut के एक अन्जान profile का जन्मदिन मनाना हो !
                जिन्दगी के साथ नये प्रयोगों के लिये डी-51 हमेशा तैयार है ,मेरे जन्मदिन पर राष्ट्रीय नाटय एकेड्मी में 2 घण्टे 20 मिनट का पकाऊ नाट्क देखना हो या बंगला साहिब के रात्रि-दर्शन ,आन्ध्रा भवन का दक्षिण भारतीय भोजन ,ये सब प्रयोगों का सिलसिला ही था ! नये साल पर पराठें वाली गली के पराठे-लस्सी कोई नही भूल सकता !
                   सही मायनों में डी-51 के सबसे मजबूत स्तम्भ चौहान और रैम्बो ही हैं ! सब्जी से लेकर राशन का अधिकतर इंतजाम ये दो भले मानुष ही करते हैं ! ज्यादातर मतलब की हम लोग भी करते हैं मगर ये दोनो जिम्मेदार मानुष हैं ! सच यह भी है कि ये दोनो के पास समय अनुपलब्धता भी कम होती है ! और डी-51 की कमजोर कडीयां अरूण और स्वयं मैं हूँ ! परंतु हम पाँच मिलाकर एक मजबूत नींव बनाते हैं !
                घरो में आज के व्यस्त दौर में वह पुरानी परम्परा कायम है या नही परंतु डी-51 के भीतर रात्रि-भोजन मिलकर ही होता है ! घर के मुखिया के समान चौहान इस आयोजन का प्रतिनिधित्व करता है ! सामान्यत: अगर कोई सदस्य रात्रि में देरी से पहुँचे तो रात्रि-भोजन 11:30 बजे देर तक भी किया जाता है !पार्वती माता की भागीदारी भी डी-51 की सफलता में महत्त्वपूर्ण है ! वह हमारे घर पर खाना ,बर्तन,झाडू करने आती है और उसके द्वारा बना हुआ भोजन वाकई स्वादिष्ट होता है ! कुछ और लोग डी-51 की सफलता का हिस्सा रहे हैं बल्कि आलोक तिवारी तो शुरूआती दिनों के आधार का मजबूत हिस्सा रहा ! बिष्ट की खामोशी डी-51 में ही टूट पायी :) !
                                 क्रिकेट का फितूर का आलम देखो की विश्व कप से पहले डी-51 के दो महापुरूष एक महीने के लिये टी.वी. ही किराये पर लाने चल पडे (जो कि बाद में हमने खरीद ही लिया) ! होली के दिन की ह्ल्दी ,डिटरजेंट और हरपिक की होली हो या नये साल के दिन के दिल के आकार के गुब्बारे हो या शिमला का family picnic हमेशा जिंदादिली और गहरे रिश्तों का मिसाल है डी-51 !

                         इस लेख को लिखने की प्रेरणा अरूण का वह सपना है जिसने डी-51 को आशंकित कर दिया है ! जिस सपने के अनुसार डी-51 केवल एक साल तक बाकि है और उसके पश्चात सब अपनी-अपनी राह !मैं प्रार्थना करता हूँ कि यह एक साल कई सालों से बडा हो !
इस लेख की गरमजोशी या तो वह समझ सकता है जो डी-51 का हिस्सा रहा हो या फिर जिसने डी-51 में समय बिताया हो ! परंतु अगर आप इस कहानी का सारांश निकालना चाहें तो आप एक सीख जरूर ले सकते है डी-51 से !
भूतकाल गुजर चुका,भविष्य दूर है, इसलिये वर्तमान को भरपूर
जियो खुशी बिखेरते हुए और गम के साथ लडते हुए ! “

D-51 जिन्दाबाद !!!!!!


Darshan Mehra


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