"जज्बा" ..

on Sunday, December 6, 2009


कुछ मन है ,कुछ तो बात है जो कचोट रही है ! मुझे पता है आप में से कुछ गूगल महाराज की मदद से चैटिंग कर रहे हो ,कुछ अपने फेसबुक स्टेटस बदल कर अपनी दिल की भावना व्यक्त कर रहे हो या फिर कुछ अपने आफिस के कंप्यूटर को "कोड" रूपी घास फूस खिला कर आई. टी. वर्ल्ड का उत्थान कर रहे हैं ! इन सब महान कार्यों में खलल के लिए माफी चाहता हूँ !खलल कैसा ? मतलब कि मैं आपसे कहूंगा कि कुछ इस "लेख" को भी पढो और खुद को अभिव्यक्त करो "कमेन्ट " के रूप में ! मगर शायद बात गहरी है तो लिखना ही पडेगा !

एक बात है जो कल से कचोट रही है तो सोचा आपके साथ बाटूँ ! किसी बात से ध्यान आया या सच कहूं तो मैं आपको बताउंगा कि ध्यान किस बात से आया ! ध्यान आया कि कुछ ऐसे भी होंगे जो देश की
रक्षा में सियाचिन की ठण्ड में प्रहरी बने अपना काम बखूबी निभा रहे होंगे ! जिनको हम लोग केवल उस वक़्त याद रख पाते हैं जब सीमा विवाद की वजह से कोई भीषण युद्ध हो या कोई आतंकवादी हमला ! वैसे ये उनकी जरूरत नहीं है कि हम उनको याद रखें मगर फिर भी पता नहीं क्यों हम सबको किसी न किसी तरह से इनकी
"दिनचर्या " की केवल जानकारी ही हो तो शायद हम "कृतज्ञ" महसूस करें इन सैनिको के लिए ! भारतीय
सेना के लिए !

मैं कालेज में था अचानक से एक दिन मेरे चचरे भाई की चिठ्ठी आयी अंतर्देशीय पत्र
के द्वारा ! वो भारतीय सेना में सैनिक है ! और उस समय सियाचिन पर पोस्टेड था ! चिठ्ठी के कुछ अंश इस
प्रकार थे !
" भाई आक्सीजन की कमी की वजह से खाना तो खा नहीं पाते हैं मगर फिर भी कोशिश करते हैं की दिन भर में एक दो रोटी खा सकें !हर जवान को हर दिन का करीब 8 लीटर कैरोसीन तेल मिलता है और ठण्ड का आलाम ये है की कैरोसीन स्टोव से एक मिनट के लिए भी खुद को दूर नहीं रख सकते हैं ! शून्य से भी नीचे तापमान है ! तीन दिन में एक हिन्दी अखबार आता है और मनोरंजन के नाम पर यही एक सहारा है ! अगले तीन दिनों तक उस अखबार को तब तक पढ़ा जाता है जब तक की शेयर बाजार वाले उस पेज तक को न पढ़ डालें जिसमें खबरें होती है की "दाल टूटा ,सोना उछला ,चीनी मंद और चांदी चमकी " ! बदन पर अभी तक वही कपडे हैं जो 40 दिन पहले यहाँ आते वक़्त पहने थे ! हरी ड्रेस, कैरोसीन के धुंए से काली हो चुकी है ! और चेहरा खुद को पहचान में आन लायाक नहीं ! 25 -30 दिन में एक बार नहाने का सोचते हैं बर्फ को 100 डिग्री तक उबाला जाता है और नहाने के वक़्त 4-5 स्टोव चारो तरफ रख दिए जाते हैं मगर फिर भी ये आलम होता है कि आख़री जग पानी बर्फ में परिवर्तित हो चुकी होती है ! "
ऐसी कई बातें उसमे थी जो कि हम और आप जैसे मानुष के मस्तिष्क के सोच के दायरे से काफी आगे थी ! मैं उस चिट्ठी को लेकर पूरे हॉस्टल में घूमा था और एक -एक सहपाठी को पढ़ाने का प्रयत्न किया ताकि वो लोग उस कठिनाई को कम से कम समझ तो सकें !
दूसरा वाक्या तब का है जब भाई की शादी के ठीक 15 दिन पहले उसका फोन आया ! मेरा भाई भारतीय सेना की "राष्ट्रीय रायफल " में पोस्टेड था उन दिनों ! वो बोला "यार मम्मी-पापा को मत बताना मगर कल रात एक आतंकवादी मुठभेड़ हुई ,रात भर गोलियां चली , और मेरे साथ के 3 -4 जवान शहीद हो गये ! और हम-सब साथ ही गोलीबारी में डटकर सामना कर रहे थे मगर ... " मैं काफी समय तक सोच में डूबा रहा उस बातचीत के बाद , भयावह सोच में !
कल शाम सेक्टर 18 के बरिश्ता में बैठे हुए थोड़ा समय था तो सोचा गाँव में बात करूँ ! सबसे बात करने के पश्चात ताऊजी से बात हुई तो बोले "तुझे खबर है, वो जो पड़ोस में चाचा जी हैं लखनऊ वाले उनका बेटा था ना "मेजर भूपेन्द्र मेहरा" वो आतंकी हमले में शहीद हो गया! कुल मिलाकर ४ लोग शहीद हुए हैं ! " क्या कहता और क्या प्रतिक्रया देता ! लग रहा था जैसे मस्तिष्क और हृदय सुन्न हो गया है ,जैसे सोच का दायरा भी ख़त्म हो चुका है ! ऐसा नहीं है कि जीवन में इस मेजर के पास कुछ और(यानी इंजीनियर/डॉक्टर/वकील या कुछ भी) करने के विकल्प उपलब्ध नहीं थे मगर वो उसका "जज्बा " ही था जो उसे भारतीय सेना से जोड़ पाया !


मैं न तो इस लेख से कोई सारांश निकालना चाहता हूँ न ही मेरे लेख से भारतीय सेना के "पराक्रम,साहस व बलिदान " भरी बरसों पुरानी गाथा को कोई बल मिलने वाला है ! मगर मैं जो महसूस करने कि कोशिश कर रहा हूँ वो अभिव्यक्त कर पाना नामुमकिन है ! बस इतनी इल्तजा आपसे भी है , कि हम सब अगर केवल अपनी कृतज्ञता ही जाहिर कर सकें इन बलिदानों के लिए तो शायद उस परिवार के दर्द को थोड़ा महसूस कर पायें जिसने एक 4 महीने के बच्ची के पिता को राष्ट्र के लिए खो दिया !

जय हिंद !!


Darshan Mehra
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" जुलेखा "

on Tuesday, October 27, 2009


"बेटा तुझसे कुछ भी पूछो न तो तू कुछ बोलती है,ऊपर से हमेशा मुंह फूला के बैठी रहती है ? "
हम लोग खुद भी असमंजस में रहते थे कि क्या उपाय किया जाय ! ये थोड़ी अजीब सी हालत होती थी हमारे लिए ! हम पिछले २-३ महीनों से उसे रात को साढे आठ से साढे दस बजे तक पढाने आते थे ! हम तीनों ये जानते थे कि ये १० साल की लडकी पढने में ठीकठाक है मगर व्यवहार में काफी अजीब !

बाकी के बच्चे उसके साथ बैठने को भी तैयार नहीं होते थे ! क्योंकि वो साफ भी नहीं रहती थी ,बाकीयों को गाली भी दे देती थी और न ही बाकी बच्चों में घुलती मिलती थी ! एक दिन अचानक कुछ उपाय सोचा कि कैसे इन सब बच्चों में आपसी सामंजस्य बढाया जाय या कहें कैसे ये लोग आपस में लडें नहीं ! जैसे कि फुटबाल या क्रिकेट के मैदान में होता है हर एक खिलाड़ी दूसरी टीम के सारे खिलाडियों से हाथ मिलाता है और आगे बढ़ता है ! कुछ ऐसा ही उपाय किया गया,सारे बच्चे एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे और आगे बढेंगे !मगर जैसा हमने सोचा था ठीक उसके विपरीत हुआ ! सज्जाद ने उस लडकी से हाथ मिलाने से मना कर दिया ! हम लोगों की बात न माने ऐसा बमुश्किल ही होता था मगर आज सज्जाद अपनी इस बात पर अड गया कि मैं इससे हाथ नहीं मिलाउंगा !
“क्यों सज्जाद क्या प्राब्लम है बेटा ,जुलेखा से हाथ मिलाने में क्या दिक्कत है ?? “
सज्जाद हमेशा कि तरह एकटक देखते हुए कोई जवाब ही नहीं देता ! बहुत पूछने के बाद भी जब वो कुछ नहीं बोला तो थोड़ा कठोर होते हुए मैनें बोला
“या तो हाथ मिला या फिर क्लास से बाहर चले जा “
अचम्भित होकर देखा कि सज्जाद रोते हुए बाहर चला गया ! कुछ समझ में सा नहीं आया मगर सारे बच्चों से पूछा तो कुछ संतोषजनक उत्तर नहीं मिला ! हमारा उपाय और भी औधें मुँह गिरा और मूड अच्छा होने के बजाय और भी खराब हो गया !

अगले दिन कि क्लास में जुलेखा तब तक नहीं आयी थी और सज्जाद से फिर से पूछा तो वो बोला “सरजी जुलेखा के हाथ बहुत गन्दे रह्ते हैं वो नाक भी ऐसे ही पोछती रह्ती है ,इसलिये मैनें उससे हाथ नहीं मिलाया “ पहले से ही जुलेखा के व्यव्हार को लेकर हम थोडे चिंतित थे और ये नयी कहानी ! खैर काफी तरीके से समझाने के बाद जुलेखा साफ तो थोडा रहने लगी मगर उसका मूडी व्यव्हार कभी भी न बदला ! रोज बच्चों से उसकी शिकायत आती ,गाली देने की ,चिल्लाने की ,गुमशुम रहने की और सबसे ज्यादा अडियल रहने की !

एक दिन किसी बात पर हम दो volunteers जुलेखा की किसी बात पर उसे डाँट रहे थे ! वो हमेशा कि तरह मुँह फुलाये बैठी थी ,उपर से कुछ भी पूछो तो कोई जवाब नहीं ! बाकी बच्चों पर चिल्ला अलग रही थी और हम लोगों के सामने ही किसी बच्चे को गाली भी दे डाली ! अब हम दोनों थोड़ा कठोर हुए और पहले तो उसे डाँटा और तब भी जब उसे कोई फरक नहीं पडा तो उसको थोडा सबक सिखाने के लिये उसको क्लास से निकाल दिया ! थोडा अच्छा खुद को भी नहीं लगता था बच्चों को डाँटने में, क्योंकीं ये पाँचो बच्चे खुद अकेले इतना मेहनत कर रहे थे जितना शायद हम तीनों volunteers मिलकर भी नहीं !

थोडी देर के बाद उस छोटे से 7X11 फीट के कक्ष के दरवाजे को किसी ने पीटना शुरू किया और देखा तो जुलेखा की बाँह पकडे हुए उसकी मम्मी उसे हमारे पास लायी और पहले से पिटी हुई जुलेखा को हमारे सामने ही बुरी तरह मारने लगी ! वो रोती जाती है और पलट के मम्मी के उपर भी चिल्लाती है ! मेरा पारा थोडा गरम हुआ और मैने उसकी मम्मी को उसे न मारने के निर्देश देते हुए थोड़ा समझाने की कोशिश की !
“सरजी ये लड्की घर में हर दूसरी बात पर मार खाती है ,हर दिन मार खाती है मगर फिर भी नहीं सुधरती, आप लोग इसे क्लास से निकालो मत बल्कि इसको खुब मारो ताकि ये सुधर जाये”

अचानक से इतने दिनों से अनसुलझी परेशानी की जड समझ आयी ! जुलेखा का अडियलपन ,हमेशा मुँह फुला के बैठना,बाकी बच्चों से बात तक नहीं करना,गाली देना,ये सब उसकी मम्मी द्वारा की गई “पिटाई” और घर के माहौल की देन है ! उसकी मम्मी के द्वारा उपयोग लायी जा रही भाषा इस स्तर तक थी कि शायद हम दोनों(मैं और कनन) वहाँ नहीं होते तो शायद उसकी मम्मी भी “गालियों की बौछार” कर देती !
जब परेशानी की जड समझ आयी तो उसको सही करना भी हमारी जिम्मेदारी थी ! जुलेखा की मम्मी को समझाया गया कि अगर मार के ही ये सही होने वाली होती तो आज तक सही हो चुकी होती ! ”आप ये तो समझ लीजिये कि अगर आज से आपने जुलेखा को कभी भी मारा तो हम से बुरा कोई नहीं होगा,आप जैसा व्यवहार खुद करते हो बच्चे भी वैसा ही व्यव्हार करते हैं ,आप घर में गाली देते हो ,खुद साफ नहीं रहते ,बच्चों पर चिल्लाते हो और यही सब बच्चे भी करते हैं , आज से आप खुद सुधरो पहले जुलेखा को सुधारने कि जिम्मेदारी हमारी “

धीरे-धीरे परिवर्तन शुरू हुआ जो कि होना ही था ! जुलेखा का परिवार चूँकि क्लास के नजदीक ही रह्ता था तो सबसे पहले “परिवर्तन” उसकी मम्मी में नजर आया ! अब कम से कम साफ दिखाई देने लगी वो , कभी कभार जुलेखा की पढाई के हाल लेने आ जाती ! जुलेखा जिसको पहले मुस्कराते हुए देखना असम्भव था अब कभी-कभार मुस्कुराते हुए दिख जाती थी !

कल अचानक से बडे दिनों बाद वो क्लास लेने आयी थी,चूँकि उसका परिवार अब इस झुग्गी में न रहकर थोडा बाहर तरफ रहने लगा है ! वो बहुत बदली हुई जुलेखा है अब ! काफी साफ-सुथरी ,समझदार सी ,दाँत बाहर को जरूर हैं मगर अब मुस्कुराती भी है और सबसे बडा अगर कोई परिवर्तन है तो वो ये कि वो अपने आप में काफी जिम्मेदार सी हो गयी है ! बताती है कि “ सरजी कभी-2 जब बहुत पढाई करनी होती है न पेपर के दिनों में तो रात को 1 बजे तक पढती हूँ मैं, हाँ :)“ !

दूरदर्शन पर एक विज्ञापन आता था किसी जमाने में शायद “प्रोढ शिक्षा” का विज्ञापन था ! अंत में शिक्षक एक ऐसा ही परिवर्तन किसी छात्र में देख कर बोलता है “क्या ये वही किसन है “, और उस क्षण में पूरी तरह से तल्लीन हो जाता है कुछ-कुछ वैसी ही भावना मैं भी कल महसूस कर रहा था !जिस कक्षा में केवल दाखिला पाने के लिये इतना जद्दोजहद करनी पढी थी अब जुलेखा उस क्लास में शीर्ष पाँच (top five) में आती है ! उसका यह नया रूप जरूर उसे एक् अच्छे मुकाम तक पहुँचायेगा, यही मनोकामना है !




Darshan Mehra
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तस्मै श्री गुरूवै नम: !!

on Friday, August 28, 2009

        काफी समय से मस्तिष्क के किसी कोने में ये विचार था कि गुरू यानि शिक्षक या अधिक देशी भाषा का उपयोग किया जाय तो मास्साब के  बारे में कुछ कहा जाय कुछ कलमबद्ध किया जाय ! चूँकि शिक्षक दिवस नजदीक है तो विचार  की ये उधेड्बुन सिमट नहीं पा रही सो मैं फिर आपसे साक्क्षातकार करने आ पहुँचा हूँ गुरू शब्द  की महिमा को वर्णित करने ! 

      पहला दिन था  मैं ट्यूशन लेने के लिये पहुँचा,शिक्षक से भिज्ञ भी नहीं था मैं,बस ये जानता था कि उनका नाम श्री महेश तिवारी हैं और वो मेरे बडे भाई के स्कूल में पढाते हैं ! उनके घर पहुँचा तो शिक्षक कम शास्त्रीय  संगीतकार ज्यादा लग रहे थे ! उनके 12 X 10  के कमरे में एक छोटी सी चारपाई और उस पर तबला ,एक हार्मोनियम बहुत सारी संगीत से सम्बन्धित पुस्तकें और एक टेप रिकार्डर और काफी सारी कैसेट,ये सारा सामान पडा  था ! एक अजीब सी परम्परा थी यहाँ पर , सारे छात्र तब तक  चुपचाप से बैठ जाते थे जब तक कि सवा आठ न बज  जाये ! तिवारी सर आंखें  बन्द किये शास्त्रीय संगीत में मुग्ध उसी धुन पे तबला या फिर हार्मोनियम बजा रहे  होते जो धुन टेप रिकार्डर पर चल  रही होती थी ! तिवारी सर की तल्लीनता देख कर ये बात जरूर समझ आती थी कि वो परालौकिक आनन्द की अनुभूति कर रहे हैं इस लोक की करनी और कर्ता से उनको कम से कम उस वक्त कोई भी फर्क नहीं पडता था ! 

       कई दिनों से गणित में गुणनखंड (factors) के आखिरी अध्याय में फँसा हुआ था मैं ! शेषफल प्रमेय (Remainder theorem ) का तोड निकालने की बहुत कोशिश कर चुका था मगर हर बार नई  परेशानी आ जाती थी ! ये सौभाग्य था या नहीं कि टयूशन के पहले दिन ही शेषफल प्रमेय पर कक्षा चल रही थी ! मैं तो तिवारी सर की सादगी से बहुत प्रभावित हुआ और जैसे ही उन्होने पढाना शुरू किया तो इतने दिनों कि मेरी परेशानी यनि शेषफल  प्रमेय का ऐसा निदान दिया कि मैं कभी भी नहीं भूल सकता था ! बात यहाँ पर केवल एक शिक्षक की नहीं है वरन एक ऐसे इन्सान की है जो कि आपको सही राह भी दिखाये ,जो स्वयं में बहुत अच्छा इंसान भी हो ,जो आपको सही मार्गदर्शक की तरह सच्चे पथ पर अग्रसर भी करे ! तिवारी सर सबके परिजनों से मिलते ,बच्चे की अच्छी बुरी-बातों पर ध्यान आकर्षित करते ! 

     उनकी निगरानी केवल उस एक् घंटे के अंतराल पर ही नहीं  रहती  थी जब  कि वो पाठन कराते थे ,मगर घर में हम कितना पढते हैं,क्या पढते हैं इस सब पर भी निगरानी रहती थी ! पापाजी से उस काँलम पर हस्ताक्षर करवाने होते थे जहाँ हमारे  सुबह उठने से लेकर रात्री सोने तक का विवरण होता था !

    सबसे प्रभावी बात जो मुझे लगती है वो यह थी कि ज़ितना विश्वास  सर को हमारी काबिलियत पर होता था वो हमारे खुद के विश्वास से कहीं अधिक होता था और कहीं ना कहीं ये प्रबल इच्छा रहती थी कि उनके विश्वास के लिये ही सही कुछ कर दिखाना है  “ :)


   दो  वाक्य हमेशा याद रह्ते हैं सर के !

o        यार तुम लोग सफल हो जाओ तो मुझे तो बस एक बताशा खिला देना बस !

o        मेहरा 100 नम्बर की मत सोचो 120 नम्बर की सोचो तब कहीं 100 नम्बर आयेंगे !


 मैने हास्यासपद एक दिन पूछ ही लिया कि सर 100 नम्बर के बोर्ड के पेपर में 120 नम्बर की कैसे सोच सकते हैं ?? उनका  कहना था विकल्प (optional) वाले प्रश्नों  को भी अगर मिला लिया जाये तो पूरा पेपर असल में तो 150 नम्बर का होता है :) !

        हर दूसरे सप्ताह के अंत में  सारे छात्रों के लिए एक परीक्षा होती  और सर्वश्रेष्ठ 3 छात्रों को कुछ न कुछ पारितोषिक  दिया जाता ! स्वच्छ प्रतियोगिता की जो भावना सब में डाल दी जाती थी वो भावना जीवन पृयन्त काम आयेगी ! तिवारी सर का हमेशा कहना था कि प्रतियोगिता और द्वेष में बहुत अंतर है ! प्रतियोगिता में रह्ते हुए हम सबको साथ लेकर चल सकते हैं मगर द्वेष में हम एकाकी होकर नकारात्मक उर्जा से कुंठित रह्ते हैं !

        स्कूल की शिक्षा और कालेज के दिनों में एक स्पष्ट अंतर नजर जो  आता है तो वो ये कि स्कूल के दिनों के वो प्रेरक शिक्षक कालेज पहुँचते हुए गायब से हो जाते हैं ! कम से कम मेरा अनुभव तो यही बोलता है ! स्कूल के समय में तिवारी सर जैसे कई गुरूजन हुए जैसे नन्दनी मैडम ,अग्रवाल सर ,शर्मा सर ,कडाकोटि सर और चौधरी सर जिनके विचार आज भी प्रभावित करते हैं ! मगर ऐसे शिक्षक आगे न मिले !

  कुछ छात्रों को एक दिन तिवारी सर समझा रहे थे कि खुद को कम महसूस करोगे तो कम ही रहोगे,खुद को शेर समझो , हर इंसान किसी चीज को दो तरह से पा सकता है , या तो उसमें सम्बन्धित गुर हो या फिर वो मेहनत करे उस गुर को हासिल करने के लिये ! तो एक मनोधारणा तो बना ही लो कि आप सब सर्वश्रेष्ठ हो लेकिन ध्यान रहे आप अहंकारी न हो जाओ ! कहीं न कहीं ये कथन पथप्रदर्शक  बना हुआ हमेशा उन पलों में मेरी मदद करता है जब मेरी उर्जा कम होती है!मुझे लगता है कि ये सौभाग्य ही था कि ऐसे गुरु हमें मिले जिन्होंने सही मायने में कुम्हार की तरह कच्चे घडे का आकार देने का कार्य किया ! शिक्षा का मतलब तिवारी सर के लिये केवल अच्छा पेशेवर बनना नहीं था बल्कि एक अच्छे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण सर्वोपरी था ! 

     तिवारी सर की गुरू दीक्षा और प्रेरणा का ही ये परिणाम रहता है कि एक साधारण छात्र / छात्रा बोर्ड के पेपरों में कमाल का परिणाम देने में सफल हो जाता हैं और मैं खुद उनकी इस गुरू दीक्षा का  भोगी हूँ :) !

    तस्मै श्री गुरूवै नम: वाक्यांश असल में तिवारी सर सिद्ध करते आये हैं !

 आज तिवारी सर से मिलो तो सहर्ष ही सम्मान में उनके आशिर्वाद लेने में जो हार्दिक खुशी होती है वो अवर्णीय है और वो अपने "कुम्हार" रूप में नये घडों को आकार देने के मुहिम में सदैव की तरह अडिग होकर कार्यरत रहते हैं ! 

   आप इस लेख को पढने के बाद उन सभी गुरूओं के लिये कृतज्ञता मह्सूस करें जो आपके जीवन में बहुत अहम थे जिन्होनें आपके व्यक्तित्व और चारित्रिक निर्माण  में कुम्हार के समान योगदान दिया ! 

आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारे शुभकामनायें !!


Darshan Mehra

darshanmehra@gmail.com

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उमंग

on Thursday, July 23, 2009


ये गीली बारिश , ये नम  हवायें !! 
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !! 

बिजलियाँ बिखेरते बादल कहें ,   
तू गम को समा जा खुद के भीतर !!   

झुले की रस्सी सी बारिश की डोरी, यह पुकारे ! 
आनन्द को नये रंग में तू परिभाषित कर !!    

मैं मधुर स्वर में रिमझिम रिमझिम गीत सुनाउँ ,
ग्रीष्म ऋतु की तपिश को शून्य तक पहुँचाउँ  !!  



तू सीख,बडे चल ,कठिनाईयों से निडर चल ! 
जीवन की बारिश का तू  विश्वास कर !!

तू बरस जा इन शोख नदियों को द्रवित कर !
तू गरज, जहाँ की व्यथा पर इमदाद कर !! 

खुशी के गीत गा , तू प्रेम के राग सुना ! 
तू द्वेष भगा , दंभ के पर्वत को लाँघ जा !! 

इस क्षण की मदहोशी को तू  कैद कर !
बाँह पसार और इस जीवन में  उमंग भर !!    

ये गीली बारिश ! ये नम  हवायें !! 
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !! 

Darshan Mehra

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Happy New Year Sir !!

on Saturday, June 20, 2009

दिन मंगलवार,30 दिसम्बर 2008:-

बस नo 492 , नेहरू प्लेस से नोएडा सैo 22 , मैं बस पकडने के लिये भाग ही रहा था की बस निकल गयी ! नया बाँस के बस स्टैंड पर खडा होकर मैं सोच रहा था कि मुझे प्रयास की रात की क्लास लेते हुए पूरा एक साल हो गया है ! रात के तकरीबन सवा दस बज रहे थे और उपर से दिसम्बर का यह महीना , बहुत ही सर्द रात थी यह ! इस बस स्टैंड से नजारा कुछ ऐसा होता है कि सामने सडक के दूसरी तरफ देशी दारू के ठेके पर लोग शराब अथवा जीवन के नशे में अनर्गल बातें कर रहे होते हैं ,उसके सामने एक चिकन का ठेला जो कि बडे से कुडेदान के ठीक बायीं ओर है ,ठेले के नीचे कुछ आवारा कुत्ते इस इंतजार में अपनी लार तपका रहे हैं कि शायद कोई भला मानुष कुछ बचा हुआ गोश्त और चबाई हुई हड्डियाँ उनकी ओर सरका दे ! बहुत सारे रिक्शे वाले कंबल लपेटे हुए ग्राहकों के इंतजार में अपने रिक्शे में बैठे हैं ! चूँकि मैं करीब एक साल से इसी जगह से बस या रिक्शा लेता हूँ तो कुछ रिक्शा वाले मुझे जानने भी लगे हैं ! मैं सोच रहा था कि लोग कहते हैं कि नया बाँस नामक यह जगह रात को सुरक्षित नहीं है परंतु मेरे साथ एक साल में तो कोई दुर्घटना नहीं हुई !
यही सब सोचते हुए जब थोडी देर हो गई, तो मैने निर्णय लिया कि रिक्शा लेकर घर चला जाय ! अक्सर प्रयास की कक्षा के बाद समय मिलता है तो मैंने मोबाईल निकाल कर एक नo 93180…. डाँयल किया ही था कि लगा मेरे मोबाईल को शिकार समझकर जैसे कोई तेजी से उसकी तरफ झपटा !! और देखते ही देखते दो मोटर-साईकिल सवार कोहरे और अंधेरे में गुम से हो गये ! मुझे कुछ भी नहीं समझ आया कि कैसे अपने क्रोध और आवेश को बाहर निकालूँ ! सामने रिक्शे वाला जो कि अभी तक इस सब से अनभिज्ञ था उसे जब मैंने ये बताया तो वह गाली देने लगा उन चोरों को, मै तो जैसे समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या कहूँ और क्या करूँ ! दिल्ली-राजधानी क्षेत्र में यह मेरा दूसरा मोबाईल फोन चोरी हुआ ! वर्ष 2008 के आखिरी दिनों में ऐसा होगा ये नहीं सोचा था ! घर पहुँच कर सबसे पहले Airtel customer care पर सिम ब्लाक करवाने के लिये जूझना पडा ! Airtel customer care की यह हालत पहले मह्सूस नहीं हुई कभी पर जब सेल्वा ने बोला कि Airtel Sucks !! और मेरा खुद का यह कट्टु अनुभव तब सत्य से सामना हुआ ! सच कहूँ तो पिछले कुछ दिनों से मैं इस बात से बहुत खुशी मह्सूस कर रहा था कि वर्ष 2008 बहुत ही खूबसूरत गुजरा है ! तो साल के आखिरी दिन से पहले की यह रात मुझे इशारा कर रही थी कि संतुलन स्वयं अपना रास्ता ढूँढ लेता है ! किसी तरह Airtel में अपने फोन नo को ब्लाक करवाने के बाद 30 दिसम्बर का ये दिन बीत ही गया !
दिन बुधवार,31 दिसम्बर 2008 :-
अगली सुबह से मेरी ये जद्दोजहद शुरू हुई की कैसे भी वही मोबाईल नम्बर आज ही लेना है ताकि नये साल की कई wishes रह ना जाय ! उपर से घर वालों को दूसरा मोबाईल चोरी होने की खबर(पह्लले मोबाईल चोरी के पश्चात ही ये वाला मोबाईल आया था J ) देकर मैं उनका यह भ्रम भी नहीं तोडना चाहता था कि मैं जिम्मेदार हूँ , गैर जिम्मेदार नहीं ! सुबह आफिस आकर मेरी ये कवायद शुरु हुई ! मैने आशिष को बोला कि मुझे अपने साथ बाईक पर क़रोलबाग ले चल ताकि नये सिम के लिये application दे सकुन और फिर से कोई नया मोबाईल खरीद सकूँ ! आज के दौर में Plastic Money यनि credit cards के होने से ये फिक्र तो नहीं रह्ती कि आपके पास पैसे है या नहीं ! सो मैं और आशिष करोलबाग के Airtel Customer Care Center पहुंचे तो उन्होने पैन कार्ड की दो फोटोकापी और 2 फोटो माँगी ! Center पर फोटोकापी मशीन होने के बावजूद वो लोग बाहर से करने को बोलते है ! करोलबाग की मार्किट में भटकने के पश्चात किसी तरह सारे दस्तावेज देकर जब सिम की बात आई तो उन्होने सिम तो दे दिया मगर ये बोला कि शाम के 4 बजे तक active हो जायेगा ! फिर एक ईलक्ट्रानिक्स स्टोर से Credit Card की plastic money से एक सस्ता सा नोकिया मोबाईल खरीदा ! इस सारे काम में कम से कम 2 घण्टे तो लग ही गये ! जिस तरह से सरकारी आफिस में जाने के पश्चात हम में से हर एक इंसान दुखी हो जाता है वहाँ का वातावरण इतना ज्यादा नकारत्मक और कष्ट्कारी होता है वैसी ही भावनायें महसूस कर रहा था मैं ! जबकि मैं किसी भी सरकारी आफिस में नही गया था ! आफिस पहुंचने के बाद सव लोगों की दया भाव और सांत्वना वाली नजरें और भी दुखी कर रही थी ! इंसान इतना दुखी होता नहीं जितना कि आपके तथाकथित शुभचिंतक आपको दयापात्र बना कर दुखी कर देते हैं ! उपर से Airtel वाले जो कि 4 घंटे होने के बावजूद मेरा सिम Active नहीं कर रहे थे ! वैसे बात सोचने कि ये भी है कि जब मोबाईल फोन नहीं होते थे तो जिन्दगी तब भी इतनी ही खुशीयों भरी थी और तब भी हम लोग सबसे जुडे हुए होते थे ! आज मोबाईल के बिना ऐसा लगता है जैसे जिन्दगी थम सी गयी है ! खास बात ये थी कि 31 दिसम्बर होने की वजह से मैं नहीं चाहता था कि अपने दोस्तों या चाहने वालों से नये साल की शुभकामनायें लेने या देने में एक फोन का न होना बाधा बने !
5 बज चुके थे और मेरा सिम चालू नहीं हुआ था ! कस्ट्मर केयर में कई बार कॉल करने के बाद मुझे बताया गया कि मेरे बिल का भुगतान नहीं हुआ था ! जबकी आखिरी तिथि अभी दूर थी तुरंत इंटरनेट से बिल जमा करवाया मगर अभी भी मेरा नया सिम चालू नहीं हुआ था ! पूरा दिन मेरा खराब हो गया था और अब मेरा सब्र का बाँध भी डगमगाने लगा था ! मैंने पूनः कस्टमर केयर पर बात जो की मैं सुबह से कई बार कर चुका था तो मुझे बताया गया की चूंकी मैंने अपना पुराना सिम ब्लाक करवा दिया था तो इसलिए नया सिम भी ब्लाक है और उसको वहीं से चालू किया जा सकता है जहां से सिम खरीदा गया है ! आफिस में मन तो लग नहीं रहा था ऊपर से ये पता चला कि करोलबाग का सेण्टर 7:30बजे बंद हो जाएगा ! अब तक 7 बज चुके थे किसी तरह मेट्रो पकड़ कर मैं 7:15 बजे तक करोलबाग के कस्टमर केयर सेण्टर पहुंचा ! कुछ हैरान सा कुछ परेशान सा बल्कि ये कहो की बहुत परेशान सा मैं कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव को अपनी कहानी सुनाई !वो एक तकरीबन 30-32 साल की युवती थी ! उसने मुझसे सांत्वना प्रकट की
और मुझे आश्वाशन दिया की " सर आपका फोन इस साल में ही अर्थात आज ही चल जाएगा " मेरी व्याकुलता और परेशानी को समझते हुए मेरे लिए पानी मंगवाया ताकि मेरा ताप कुछ कम हो सके :) ! दिन भर की जद्दोजहद और सिरदर्द के बाद कुछ तो राहत मिली वरना पूरा दिन कस्टमर केयर से लड़ने व बहस करने में ही गुजर गया था ! मेरा मूड काफी खराब और परेशानी पुर्ण था ! उस युवती ने 5-7 मिनट के पश्चात मुझे बताया की "आपका फोन आधे घंटे में चल जाएगा सर" मैंने पुनः पुछा की फिर से ऐसा न हो की मेरा फोन ब्लाक ही रह जाय ! वो युवती बोली की सर आप कस्टमर केयर सेण्टर का फोन नो. ले लीजिये चाहे तो वरना आप मेरा न. ले लीजिये :) !
मैंने उसकी अनुरोध पर विश्वास करते हुए अपना धन्यवाद प्रकट किया और अपनी सीट से उठा और चलने को बना ही था की पीछे से उस युवती की आवाज आयी " Happy New Year Sir" "आपका नया साल शुभ हो " ! उस क्षण के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे पूरे दिन भर का बुरा अनुभव ख़त्म हो गया ! जैसे हमें कभी-कभी किसी अनजान इंसान से मिलने के बाद अपार खुशी होती है ! बाद में मेट्रो से आते हुए मैं बस यही सोचता रहा की कभी-कभी हम किसी अनजान इंसान से भी काफी कुछ पा जाते हैं और काफी कुछ सीख भी जाते हैं ! ठीक आधे घंटे में मेरा फोन चल गया और घर (D-51) आकर मैंने चौहान और रैम्बो को उस युवती और आज के दिन का वर्णन किया और उनको ये भी बताया की मेरे नए साल की पहली शुभकामना भी मुझे मिल चुकी ! और मुझे यकीन है की मेरा नया साल अवश्य शुभ होगा !!


Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com

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ज़ीवन प्रयोग ...

on Friday, March 13, 2009


मैंने सुना हुआ था कि जब इंसान की मृत्यु होती है तो उसका शरीर नीला पडने लगता है !यही सोचकर मैंने लेटे हुए ही अपने हाथों की तरफ देखा तो मेरी घबराहट काफी बढ गयी ! क्योंकि मुझे मेरे हाथ नीले नजर आ रहे थे ! पर बहुत ध्यान लगा कर सोचा तो समझ आया कि आज तो होली है तो हाथों में रंग लगा हुआ है शायद ! मगर फिर अपने शरीर को देखा तो समझ आ ही गया कि मौत करीब है शायद वरना शरीर भी नीला क्यों नजर आता ? यह कोई कहानी नहीं है मगर एक दुर्घटना का विवरण है !
10 मार्च यानि होली की पहली रात को मैं और अरूण, भाँग के इंतजामात के लिये रिक्शे वाले से लेकर, पान वाले से तक पूछ रहे थे कि सरकारी भाँग का ठेका कहाँ है ? क्योंकि रैम्बो ने अन्दर की खबर दी थी कि सेक्टर् 15 में भाँग मिलती है ! हम लोग कोशिश कर रहे थे कि हमारे चेहरे पे किसी भी किस्म कि सिकन न नजर आ जाये !मंद-मंद मुस्कुराहट हम दोनो कि चेहरों पर खिली हुई थी जैसे कि किसी रणभूमि फतह की तैयारी चल रही हो और हमको पता हो कि विजय क सेहरा हमारे ही माथे चढेगा !
हमको जब यह पता चला कि भाँग के भी सरकारी ठेके होते हैं तो मेरे दिमाग में तो यह खयाल आ रहा था कि हम कई दिनों से ढूँढ रहे थे मगर यह तो बहुत आसानी से हासिल हो गया ! यहाँ पर यह बताना बहुत जरूरी है कि हम लोग यानि डी-51 के योद्धा केवल एक बार इस भाँग पीने के प्रयोग से गुजरना चाहते थे वरना हम भँगेडी नहीं हैं :) ! आखिरकार हमको भाँग का ठेका तो मिल गया मगर पता नहीं था कि कितनी मात्रा में लेना चाहिये और कैसे ! एक अजीब सी झिझक थी दुकानदार से पूछने के लिये मगर थोडी देर सारे ग्राहकों को ध्यान से देखने के बाद हमको भी समझ आ गया कि हाथों कि मेंहन्दी के समान यह हरे से पत्तों का पिसा हुआ मसाला ही भाँग है जो कि 20-20 रू में एक ढेली मिल रही थी ! लोगों को देखने के और सोच विचार् के पश्चात हमने रू 50 की भाँग ली और खुशी से रैम्बो को फोन पे बताया ! हमेशा की तरह रैम्बो की असंतुष्ट आत्मा नही मानी और् उसके कहने पर हमने फिर से रू 50 की भाँग ले ली ! एक अंकल जी से पूछा कि भाँग कैसे खाते हैं तो उन्होने बहुत ही दयालु व सरल भाव से बताया कि मैं तो भाँग को ऐसे ही खा जाता हूँ और उसके पश्चात पानी पी लेता हूँ यह तरीका मुझे तो अच्छा नहीं लगा किसी भी तरह से उपर से हँसी और आ गयी इस बात पर :) !

घर पहुँचकर ठंडाई का इंतजाम करने के बाद हमारा भाँग-मोह बढता चला गया ! भाँग का भोग लगने की तैयारी बेहद दिलचस्प हो रही थी ! इतनी तैयारी डी-51 में या तो क्रिकेट मैच देखने के लिये होती है या फिर जन्मदिन का केक काटने के लिये ! दूसरी सुबह यानि होली वाले दिन हम लोग उठे भी नहीं थे अभी तक मगर देखा तो सेल्वा अपने टूटे (Fractured) हुए पैर के प्लास्टर पर पाँलीथीन बाँधकर होली खेलने के लिये पूरी तरह से तैयार था ,सेल्वा का ये जज्बा काबिले-तारीफ था , इंसाह-अल्लाह !! :) ! डी-51 की होली में हम 5 योद्धाओं (सेल्वा,अरूण रैम्बो,चौहान और मैं (दर्शन)) के अतिरिक्त हमेशा कुछ मेहमान जरूर शामिल होते हैं नीरज ,राज शोभित इस साल की होली के भागीदार थे ! हमेशा कि तरह पानी की निकासी बंद कर दी गई और शूरू हुआ गुलाल,रंग ,गुजिया,मस्ती ,और पानी का दौर ! जब यह दौर शुरू होता है तो मस्ती अपने उच्चतम शीर्ष पर होती है ,हमारे पानी वाले रंगों का स्टाक खत्म हो गया तो पून: केवल पानी वाले रंग के लिये शर्माजी की दुकान पहुँचे ! बहुत देर होली खेलने के बाद भाँग की याद आई :) ! मैंने और रैम्बो ने ठंडाई बनाने का कार्य शूरू किया ! करीब -2 पूरी भाँग डाल दी थी हमने ठंडाई में ! रात को अरूण अपने PDA पर Google पर भाँग पीने के तरीके खोज रहा था ! जो कि केवल एक निरर्थक प्रयत्न था !मगर हम सब लोगों को वाकई नहीं पता था कि कितनी मात्रा में इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिये !! 5 ग्लास ठंडाई के जब आपस में टकराये तो बडी जोर से पाँच् आवाजें भी आई - Cheers !!भाँग पीने और उसके उपरांत होने वाले नशे की कल्पना मात्र काफी उत्साहजनक थी ! हम लोग पीने के बाद फिर से बाहर बैठ गये और जब 10-15 मिनट तक कुछ भी नहीं हुआ तो सबका एक ही कथन था वो ये कि कुछ भी नहीं होता भाँग पीकर नशा तो कुछ भी नहीं हुआ मगर इस दौरान मुझे झपकी सी आने लगी तो मह्सूस हुआ कि कुछ असर होने लगा है ! सभी लोग कालोनी के होली महोत्सव के स्थान पर पहुँचे मगर मैंने सबको मना कर दिया ! लेकिन बाद में राज के आग्रह पर मैं भी चला गया ! इस समय तक नशा बहुत अच्छा मह्सूस हो रहा था ! मैं बिना किसी वजह के मुस्कुरा रहा था ! एक बार जब मैंने चौहान और रैम्बो को देखा तो हँसी खुद ब खुद आ रही थी ! अपने आप से नियंत्रण खोते हुए जान कर मैं स्वयं वापस आ गया था और मेरे पीछे-2 सभी लोग वापस आ गये ! डी-51 में प्रवेश करने के पश्चात सबसे पहला काम यह किया कि घर को अन्दर से ताला मार दिया गया! राज और शोभित के जाने के बाद अजय और उसके दोस्त भी चले गये ! मैं एक तरफ तो हँस रहा था और एक तरफ यह बोल रहा था कि Yesssssss मुझे चढ गई finally !! :) अभी तक तो केवल मैंनें हँसना शूरू किया था पर देखते ही देखेते सब लोग हँसने लगे ! बहुत जोर-2 से हँसने लगेगी हम सब और हम पाँचो के बीच अकेला नीरज ! उन कुछ 4-5 मिनटों के लिये तो ऐसा लगा जैसे चाह्ते हुए भी हँसी नहीं रूक रही है और यह अवस्था बहुत ही खूबसूरत है ! यह सब देखकर मैं सबके सामने बोल ही पडा Mission Bhang accomplished !! “ !
यह सबकुछ जितना मनोरंजक लग रहा था अचानक से यह मनोरंजन खत्म होने लगा ! हृदय गति तेज होने लगी शरीर में जकडन शूरू होने लगी ! मुझे कहीं न कहीं ये अह्सास और डर था कि भाँग की मात्रा अधिक हो गयी थी और ये शरीर की जकडन और दिमाग का दर्द उसी का परिणाम था शायद ! मैंने सबसे पहले सबको आगाह किया कि दोस्तो ज्यादा मत हँसो क्योंकि जैसी हालत हम लोग मह्सूस कर रहे थे वह् पहले कभी भी मह्सूस नहीं हुई थी ! लग रहा था जैसे आज दिमाग फट जायेगा , ब्लड प्रेशर ( रक्तचाप) इतना तीव्र था कि मेरे कानों के पीछे एक अजीब सी आवाज सुनाई दे रही थी जैसे बहुत सारी मधुमक्खियाँ भन्ना रही हैं ! कुछ लोगों ने उल्टियाँ करनी शूरू की तो उस पल के लिये मुझे नीरज का ध्यान आया ! एक क्षण के लिये दिमाग को नियंत्रण करके मैंने नीरज को सब लोगों की ओर से माफी माँगी ! मगर इतना भयावह मैंने पूर्व में कभी भी मह्सूस नहीं किया था ! पाँचो चेहरे ऐसे डरे हुए थे जैसे मौत सामने खडी हो ! शरीर और मस्तिष्क का कहीं भी कोई संपर्क नहीं था ! शरीर को इतना कष्ट और दर्द सहते हुए पहले कभी भी नहीं पाया था :( !
किसी तरह से पानी के नल के नीचे पहले अपना सिर धोया फिर चौहान और रैम्बो का ! सेल्वा सो चुका था और अरुण किसी गहरी सोच में था ! मैं एक एक पल को जैसे गिन रहा था कि जल्दी खत्म हो जाये ये सब ! मैं पूरे दो घंटे बाथरूम से लेकर बाहर के कमरे तक घूमता रहा और केवल दो-तीन बातें ही सोचता रहा एक तो यह कि ऐसी बुरी मौत नहीं मरना चाहता था ! घर वाले बार-2 याद आ रहे थे कि अगर ऐसे मर गये तो घर वालों के लिये कितनी शर्म की बात होगी ! दूसरी जो सबसे मह्त्तव्पूर्ण बात याद आ रही थी वो ये कि हमें अपनी हदें पार नहीं करनी चाहिये ! हर चीज का प्रयोग करके ही हम सबक नहीं सीख सकते ! कभी-2 पहला प्रयोग ही भयानक और जानलेवा हो सकता है !
नीरज ने दो-तीन बार बोला कि भैया आप सो जाओ मगर जैसे ही सोने की कोशिश की तो पूरा शरीर नीला नजर आन लगा ! मुझे डर लगने लगा था कि अगर हम पाँचो में से किसी एक की भी मृत्यु हो गयी तो डी-51 का ये प्यारा संसार तो बर्बाद हो जायेगा ! आखिरी मुक्ति का साधन हमेशा कि तरह कुल-देवता की शरण नजर आने लगी तथा आखिरी प्रार्थना कि हे ईश्वर आज हम पाँचों को बचा ले और जीवन में कभी भी ऐसी राह नहीं चुनेंगे ! मेरे हृदय के उपर ऐसा मह्सूस हो रहा था जैसे कुछ आग का गोला जल रहा हो ! जब शरीर के लिये यह कष्ट असहनीय हो गया तो बीच में मैने अरूण और रैम्बो से यह तक पूछ डाला कि क्या हमें एम्बुलैंन्स बुलाना चाहिये ! मगर दोनों ने ही मना कर दिया ! चौहान ने तो माताजी और पिताजी को याद कर लिया था जैसे मृत्यु समीप आ चुकी होगी ! अरूण ओशो कि कोई किताब लेकर पढने की कोशिश कर रहा था मगर ऐसी हालत में पढ पाना सम्भव ही नहीं था सो उसने पढना भी छोड दिया ! एक बात सच है कि कभी भी ऐसा नहीं लगा कि हम लोग धरती पर हैं कहीं धरती और आसमान के बीच में जैसे जान अटकी पडी थी जैसे ! अरूण कह रहा था कि “this is a spiritual phase” .सच में घर के बाहर के वातावरण और अन्दर चल रहे गीत दोनों ही अलग-2 दुनिया के हिस्से लग रहे थे ! परंतु शरीर और मस्तिष्क का इतना विक्षित रूप कभी कल्पना भी नहीं की थी !
किसी तरह 5-6 घंटे में जब मुझे अपनी बाल्कनी से नीचे सडक पर खेलते बच्चों की आवाज सुनाई देने लगी उसके बाद ही मैं यह मह्सूस कर पाया कि शायद हम सब की जान बच गई ! भाँग पीने के अपने इस निर्णय पर बहुत ही शर्म व ग्लानि मह्सूस होने लगी थी ! अगर सच बोला जाय तो अपने जीवन के सबसे बडी गलती बोल सकता हूँ इस घटना को मैं ! भाँग का यह नशा हम सब पर कम से कम 24 घंटे हावी रहा ! एक बात जो कि अवश्यंभावी थी वो यह कि हम पाँचों तो जिन्दगी में ऐसा कभी फिर नहीं करेंगे !
इस लेख को लिखने का मक्सद भी केवल इतना था कि एक संदेश दे सकें कि अपनी हदों को खुद ब खुद पहचानना जरूरी है और ऐसा कोई भी प्रयोग ना करें जो आपको ग्लानि से भर दे या जो आपको उस प्रयोग का विवरण करने तक का मौका न दे ! और जीवन साधारण अवस्था में जितना खूबसूरत है उतना खूबसूरत कहीं नही !


Darshan Mehra



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