"जज्बा" ..

on Sunday, December 6, 2009


कुछ मन है ,कुछ तो बात है जो कचोट रही है ! मुझे पता है आप में से कुछ गूगल महाराज की मदद से चैटिंग कर रहे हो ,कुछ अपने फेसबुक स्टेटस बदल कर अपनी दिल की भावना व्यक्त कर रहे हो या फिर कुछ अपने आफिस के कंप्यूटर को "कोड" रूपी घास फूस खिला कर आई. टी. वर्ल्ड का उत्थान कर रहे हैं ! इन सब महान कार्यों में खलल के लिए माफी चाहता हूँ !खलल कैसा ? मतलब कि मैं आपसे कहूंगा कि कुछ इस "लेख" को भी पढो और खुद को अभिव्यक्त करो "कमेन्ट " के रूप में ! मगर शायद बात गहरी है तो लिखना ही पडेगा !

एक बात है जो कल से कचोट रही है तो सोचा आपके साथ बाटूँ ! किसी बात से ध्यान आया या सच कहूं तो मैं आपको बताउंगा कि ध्यान किस बात से आया ! ध्यान आया कि कुछ ऐसे भी होंगे जो देश की
रक्षा में सियाचिन की ठण्ड में प्रहरी बने अपना काम बखूबी निभा रहे होंगे ! जिनको हम लोग केवल उस वक़्त याद रख पाते हैं जब सीमा विवाद की वजह से कोई भीषण युद्ध हो या कोई आतंकवादी हमला ! वैसे ये उनकी जरूरत नहीं है कि हम उनको याद रखें मगर फिर भी पता नहीं क्यों हम सबको किसी न किसी तरह से इनकी
"दिनचर्या " की केवल जानकारी ही हो तो शायद हम "कृतज्ञ" महसूस करें इन सैनिको के लिए ! भारतीय
सेना के लिए !

मैं कालेज में था अचानक से एक दिन मेरे चचरे भाई की चिठ्ठी आयी अंतर्देशीय पत्र
के द्वारा ! वो भारतीय सेना में सैनिक है ! और उस समय सियाचिन पर पोस्टेड था ! चिठ्ठी के कुछ अंश इस
प्रकार थे !
" भाई आक्सीजन की कमी की वजह से खाना तो खा नहीं पाते हैं मगर फिर भी कोशिश करते हैं की दिन भर में एक दो रोटी खा सकें !हर जवान को हर दिन का करीब 8 लीटर कैरोसीन तेल मिलता है और ठण्ड का आलाम ये है की कैरोसीन स्टोव से एक मिनट के लिए भी खुद को दूर नहीं रख सकते हैं ! शून्य से भी नीचे तापमान है ! तीन दिन में एक हिन्दी अखबार आता है और मनोरंजन के नाम पर यही एक सहारा है ! अगले तीन दिनों तक उस अखबार को तब तक पढ़ा जाता है जब तक की शेयर बाजार वाले उस पेज तक को न पढ़ डालें जिसमें खबरें होती है की "दाल टूटा ,सोना उछला ,चीनी मंद और चांदी चमकी " ! बदन पर अभी तक वही कपडे हैं जो 40 दिन पहले यहाँ आते वक़्त पहने थे ! हरी ड्रेस, कैरोसीन के धुंए से काली हो चुकी है ! और चेहरा खुद को पहचान में आन लायाक नहीं ! 25 -30 दिन में एक बार नहाने का सोचते हैं बर्फ को 100 डिग्री तक उबाला जाता है और नहाने के वक़्त 4-5 स्टोव चारो तरफ रख दिए जाते हैं मगर फिर भी ये आलम होता है कि आख़री जग पानी बर्फ में परिवर्तित हो चुकी होती है ! "
ऐसी कई बातें उसमे थी जो कि हम और आप जैसे मानुष के मस्तिष्क के सोच के दायरे से काफी आगे थी ! मैं उस चिट्ठी को लेकर पूरे हॉस्टल में घूमा था और एक -एक सहपाठी को पढ़ाने का प्रयत्न किया ताकि वो लोग उस कठिनाई को कम से कम समझ तो सकें !
दूसरा वाक्या तब का है जब भाई की शादी के ठीक 15 दिन पहले उसका फोन आया ! मेरा भाई भारतीय सेना की "राष्ट्रीय रायफल " में पोस्टेड था उन दिनों ! वो बोला "यार मम्मी-पापा को मत बताना मगर कल रात एक आतंकवादी मुठभेड़ हुई ,रात भर गोलियां चली , और मेरे साथ के 3 -4 जवान शहीद हो गये ! और हम-सब साथ ही गोलीबारी में डटकर सामना कर रहे थे मगर ... " मैं काफी समय तक सोच में डूबा रहा उस बातचीत के बाद , भयावह सोच में !
कल शाम सेक्टर 18 के बरिश्ता में बैठे हुए थोड़ा समय था तो सोचा गाँव में बात करूँ ! सबसे बात करने के पश्चात ताऊजी से बात हुई तो बोले "तुझे खबर है, वो जो पड़ोस में चाचा जी हैं लखनऊ वाले उनका बेटा था ना "मेजर भूपेन्द्र मेहरा" वो आतंकी हमले में शहीद हो गया! कुल मिलाकर ४ लोग शहीद हुए हैं ! " क्या कहता और क्या प्रतिक्रया देता ! लग रहा था जैसे मस्तिष्क और हृदय सुन्न हो गया है ,जैसे सोच का दायरा भी ख़त्म हो चुका है ! ऐसा नहीं है कि जीवन में इस मेजर के पास कुछ और(यानी इंजीनियर/डॉक्टर/वकील या कुछ भी) करने के विकल्प उपलब्ध नहीं थे मगर वो उसका "जज्बा " ही था जो उसे भारतीय सेना से जोड़ पाया !


मैं न तो इस लेख से कोई सारांश निकालना चाहता हूँ न ही मेरे लेख से भारतीय सेना के "पराक्रम,साहस व बलिदान " भरी बरसों पुरानी गाथा को कोई बल मिलने वाला है ! मगर मैं जो महसूस करने कि कोशिश कर रहा हूँ वो अभिव्यक्त कर पाना नामुमकिन है ! बस इतनी इल्तजा आपसे भी है , कि हम सब अगर केवल अपनी कृतज्ञता ही जाहिर कर सकें इन बलिदानों के लिए तो शायद उस परिवार के दर्द को थोड़ा महसूस कर पायें जिसने एक 4 महीने के बच्ची के पिता को राष्ट्र के लिए खो दिया !

जय हिंद !!


Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com
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