"" I QUIT ""

on Sunday, May 22, 2011
"पर्दा है पर्दा ,पर्दे के पीछे ,पर्दा नशीं को बे पर्दा ना कर दूँ तो ......
तो ....
तो....
तो ओ ओ .....

अकबर मेरा नाम नहीं ... "
                    कुछ ख़ास है इस गीत में , आप सबके के लिए ना हो शायद, मगर मेरे लिए तो है ..काफी ख़ास है .. वो भी काफी ख़ास था ..और ये गाना जब वो गाता तो पुरी इलेवंथ बी यानी "कक्षा ग्यारह ब " झूम उठती थी .. मेरे आसपास के लोगों में मुझे आजतक सबसे ज्यादा जिंदादिल और मनोरंजक कोई लगा तो वो ही था ! हम लोग रोज किसी खाली पीरीयड का इन्तजार करते ताकी "हरेन्द्र" की आवाज़ में किशोर कुमार के गाने सुन सकें .. और जिस दिन बारीश हो और मास्साब ना आयें हों उस दिन क्लास की कुंडी लगा के अपनी ही धुन में "कक्षा ग्यारह ब " के सहपाठी लकड़ी के अपने-२ डेस्क को बजा-२ के कव्वाल बन जाते .. और हमारा मुख्य कव्वाल होता "हरेंन्द्र" और पुरी क्लास गा रही होती "पर्दा है पर्दा ,पर्दे के पीछे ....." उसके इस गीत का जादू सारी क्लास को झूमा देता हर बार ...
                          दसवीं के बोर्ड के एक्जाम्स के बाद अपनी क्लास में सिक्का तो गाड ही लिया था मगर फिर भी "विज्ञान वर्ग " में एडमिशन लेने वालों में एक बन्दा मिला जो थोड़ा चर्चा में था ,अल्मोड़ा से आया था और ऊपर से फस्ट डिवीजन ... उसने मेरे बारे में सुना मैने उसके बारे में पहले ही दिन कुछ दोस्ती सी हो गयी ...वैसे नियमतः क्लास फस्ट या फिर क्लास सिक्स्थ वाले दोस्त तब तक काफी अच्छे लंगोटिया यार बन जाते हैं मगर हरेन्द्र के व्यक्तित्व में कुछ था जो वो सबका चहेता था और मेरा काफी अच्छा दोस्त बन गया था ...
                    किशोर कुमार के गाने जितनी गहराई और इबादत के साथ वो गाता था ,उसके अलावा आजतक मुझे आसपास कोई नजर नहीं आया ..
                 मेरी हैण्ड राईटिंग जहाँ "गांधी जी" की राईटिंग से भी बुरी थी ,उसकी "दिसंबर" में रानीखेत से दिखती " हिमालय " की चोटियों सी ख़ूबसूरत.. एक अजीब सी गहराई और ठहराव था उसमें .. पता चला वृद्धा माँ को पिता ने गाँव में छोड़ा हुआ है और दूसरी माँ ,हमेशा की तरह दूसरी माँ ही जैसी थी ,कितना सच था ये कभी नहीं पता चला !
              कुछ लोगों के चेहरे में एक मंद सी मुस्कराहट हमेशा खिली रहती है ,ईश्वरीय देन मानो या फिर व्यक्ति विशेष के प्रयत्नों का असर ,मगर जो भी हो उस मुस्कराहट को कायम रखना मुश्किल होता होगा .. विषम परिस्थितियों में खासकर ... मगर हरेन्द्र का खिला हुआ चेहरा हमेशा याद रहता है .. अपना तो ये हाल है कि कैमरे के सामने एक पल के लिए भी मुस्कुराना जटिल लगता है .. :) ..
उसके घुंघराले बाल ,शुरुवाती दिनों के सचिन की याद दिलाते थे ...गोल से  चेहरे  पर मंद सी मुस्कान , ओज बिखेरता रहता था... पांच फीट ७ इंच का मजबूत कद काठी  का नवयुवक था वो ,सपने भी उसी उम्र के ...प्रिया गिल याद है किसी को ?? मुझे याद है क्योंकी वो चाहता था प्रिया गिल के साथ पूरा भारत भ्रमण करे ... उसकी फेवरेट हीरोइन थी " प्रिया गिल" ... अरे यार "सिर्फ तुम " पिक्चर की सीधी साधी हीरोइन .....
              पूरा एक साल बहुत मजे में बीता "ग्यारह ब" का .. आखिर-२ के दिनों में उसका स्कूल आना कम हो गया .. कभी-२ मिलता था ... खामोश सा हो गया था .. बताता नहीं था कुछ ... "पर्दा है पर्दा " गाना नहीं गाता था .. कुछ परेशानी थी उसको जो वो किसी को नहीं बताना चाहता था ... चेहरे की मुस्कराहट गायब हो गयी थी .. एक दिन पता चला कि हरेन्द्र फेल हो गया ... मैं "बारह ब" का छात्र हो गया और वो फिर से "ग्यारह ब" में ...
                                   अब वो चूंकी हमारी क्लास में नहीं था इसलिए ,न ही हमारी क्लास में किशोर कुमार के गाने गाये जाते और न ही कव्वालियाँ ... कभी-२ मिलता भी तो बहुत शांत और अपने चेहरे की मुस्कुराहट तो शायद खो ही दी थी उसने... पता चला कि नशा भी करने लगा है ,समझाने कि कोशिश की तो बोलता था कि तुझे गलत पता है मेरे बरी में "मैं कोई गुटखा नहीं खाता न ही सिगरेट न ही कोई और नशा "... उसको भी पता था मुझे भी कि सच क्या है और झूठ क्या ...

इंसान के जीवन में कई ऐसे दौर आते हैं और शायद सबके जीवन में आते हैं जब सब निरर्थक लगने लगता है ..उन परिस्थितियों में दो ही रास्ते होते हैं " भाग लो (either participate ) या भाग लो ( or run away) " ... अगर इंसान अपनी ज़िंदगी को निरर्थक ही सिद्ध करनी पे आमदा हो तो भगवान् भी शायद कोई मदद नहीं कर सकता ... हरेन्द्र के परेशानी का रूट कौस नहीं पता था मुझे, मगर ये जरूर पता था कि कुछ गहरी परेशानी है ... काफी बार कोशिश कि उसे समझाने कि, ,बात करने की, मगर कुछ लाभ नहीं हुआ ...



स्कूल के आख़िरी दिनों में सबकी तरह मुझे भी "स्लैम बुक " बनाने का शौक छाया .. अब अपनी तारीफ सुनना मुझे हमेशा से ही पसंद रहा है ... यद्यपि सबको पसंद होता है मगर मैं खुलेआम स्वीकार करता रहता हूँ :) .. कारण जो भी था कुछ दोस्तों को उनकी यादों को साथ लेते हुए जीवन में आगे बढने का ये प्रयोग "स्लैम बुक " के रूप में मुझे तो पसंद आया ...
                                     बारहवीं के बोर्ड के एक्जाम्स की तैयारियों की वजह से मुझे वो काफी दिनों से नहीं मिला था .. मुझे उससे भी अपने "स्लैम बुक" भरवानी थी .. साथ लेकर घूमता था में स्लैम बुक ताकि वो मिले तो उसको दे दूँ ... आखिरकार एक दिन मिला मुझे वो ... काफी देर हडकाया उसे ... नजर नीचे रख के वो सुनता रहा ..पूछा तो,हमेशा की तरह बोला कि "सब ठीक है "... मैं स्लैम बुक देकर बोला कि "जल्दी भर के लौटा देना " बाकी लोगों से भी भरवानी है .. पुरानी वाली मुस्कराहट एक बार फिर दिखी उसके चेहरे पे .. थोडा गदगद होकर वो बोला " यार तुने मुझे डायरी लिखने का जो मौक़ा दिया ना, तू समझ नहीं सकता कि मैं कितना अच्छा महसूस कर रहा हूँ ,मुझे लगने लगा था कि मेरी हरकतों कि वजह से शायद मुझे दोस्त भी ना माने तू अब ...."
मैं धीमे से मुस्कुराया और बोला " अबे ज्यादा स्टाइल न मार ,जल्दी लौटाना इसे भर के "

               किसी के हाथ भिजवाई थी उसने वो डायरी ... लिखा हुआ था कि "ग्यारह ब" की उस क्लास में केवल तुझसे और जग्गा से करीबी दोस्ती थी ,अच्छा लगता था ,अब नई क्लास में कोई भी दोस्त नहीं है ... अपनी व्रद्धा माँ का सहारा बनना एकमात्र महत्त्वकांक्षा लिखी थी .. प्रिया गिल के साथ भारत भ्रमण करना एक सपना था उसका ,.. उसको याद थी वो बात जो मैंने कभी बोली थी उसे कि "मैं सबको ये प्रूफ करना चाहता हूँ कि गांव के लडके भी पढने में अच्छे हो सकते हैं खासकर कुछ टीचरों को " वो काफी प्रभावित था इस बात से ....
                          मेरी स्लैम बुक में कहीं भी नहीं लिखा था कि "मौत" के ऊपर अपना द्रष्टिकोण पेश करो ... मगर हरेन्द्र अकेला इंसान था जिसने मौत के ऊपर भी अपनी राय रखी थी ..

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About Death : " मृत्यु एक कड़वा सच है ,निश्चित है ,जिन्दगी तो बेवफा है एक दिन साथ छोड़ जाती है मगर म्रत्यु तो अपनी मित्र है जो हमें अपने आगोश में ले लेती है ...प्रत्येक प्राणी को अपनी मृत्यु का खौफ होता है जिससे प्राणी वह कर्म करने में हिचकिचाता है जिसमें उसकी मृत्यु की आशंका होती है ! जो व्यक्ति शान और स्वाभिमान की मौत मरता है उसके लिए मृत्यु एक कड़वा सच नहीं बल्कि एक सुनहरा अवसर एक त्यौहार है ... !

वह इंसान महान है जो जिन्दगी जिन्दादिली से जीता है तथा उसकी मौत शहादत होती है

"शहीदों की चिताओं पे हर वर्ष लगते हैं मेले ,क्योंकी उनकी मौत ,मौत नहीं शहादत है एक सुनहरा अवसर एक त्यौहार है ,इस अवसर इस त्यौहार को सारी दुनिया शौक से मनाती है "

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ये सब पढ़कर अजीब लगा मुझे , अब शायद समझ आता है कि उसने मौत जैसा विषय क्यूँ चुना तब अभिव्यक्तिकरण के लिए ...बारहवी के बाद मैंने रानीखेत छोड़ दिया ... कालेज की छुटियों के समय मैं एक बार लौटा तो गाँव जाते वक़्त मिला मुझे वो .. हमारी आख़िरी मुलाक़ात थी ... कौन जानता था कि आख़िरी मुलाक़ात होगी .... पुरा हुलिया बदल चुका था उसका ... दुबला पतला मरियल सा हरेन्द्र , एक अच्चम्भित सी स्थिति थी मेरे लिए.... पहाडी रस्ते में अँधेरे के वक़्त मिला वो , कुछ बड़े अजीब और घिनोने से लोगों के बीच ...
                   मेरे गले लगा ,मुस्कुराने की कोशिश उसकी नाकाम हुई और रुवांसा सा हो गया .. पूछा तो हमेशा की तरह बोला सब ठीक है ..... मुझे पता था वो कभी कुछ नहीं बतायेगा ....उस पर से एक अजीब सी गंध आ रही थी भांग की सी ... बाद में कुछ और दोस्तों से पता चला कि हरेन्द्र ड्रग्स का आदि हो चुका था .... क्या कर रहा है आजकल पूछा तो बोला बस यार वक़्त काट रहे हैं .. मेरे नए कॉलेज से लेकर घर तक सबके हाल पूछे उसने और खुद की ज़िंदगी के बारे में पूछने पर हमेशा की तरह एक "पर्दे के पीछे ढक के चला गया ... शायद इसीलिए उसको भी वो गाना पसंद था "पर्दा है पर्दा... "
             हर इंसान की एक अजब लड़ाई है ज़िंदगी से और जिस से बात करो वो अपनी लड़ाई को सबसे मुश्किल और संघर्षपूर्ण बताता है .. कुछ crib करते हैं ,कुछ डट के लडते हैं और कुछ हार मान जाते हैं ... "3 Idiots " के उस स्टुडेंट की तरह हरेन्द्र ने भी एक दिन अपनी जिन्दगी की किताब में "हार" कर लिख ही डाला




                                                " I Quit .... " 

PS1 : "कुछ दिनों पहले स्वर्गीय हरेन्द्र का जन्म दिवस था,उस जीवन अंतराल के कुछ पन्नों को ब्लॉग पर लिख कर उसकी स्मर्तियों को हमेशा बचाए रखने के लिए ये लिखना पड़ा और शायद कुछ तो जरुर ही सीख सकते हैं हम सब उसके जीवन और मृत्यु दोनो से "

PS2 : "दोस्ती में आप निर्णायक न होकर सहायक होते हो ,हर स्थति में ".. मगर तू जिस जगह भी है आज मेरे दोस्त ,हार मानकर "I Quit " वाला सोल्यूसन जो तुने ईजाद किया वो सरासर गलत था ,भयानक था और दुखदायी भी.... इसका समर्थन कोई भी दोस्त नहीं करेगा ...

PS3 : All of you can pray with closed eyes for the peace of Harendra's noble & pure soul for a moment atleast .....