तुम

on Monday, July 2, 2012
Skype conversation
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मैं : एक बात है जिसके  लिए  मैं स्योर हूँ  
तुम : क्या बे  ??
मैं : I think "तुम मुझे सबसे ज्यादा जानती हो "
तुम : हम्म हाँ शायद  ...  :) 
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मैं बता दूं कि हमारे रिश्ते के दरमियान अगर किसी ने सबसे ज्यादा साथ  दिया है तो वो है Internet ... शुरू से अब तक ..
Skype के सामने बैठे-२ एक दिन तुम्हें देख  कुछ लिखने को मन किया या शायद तुमने ही जिद की थी  ..
१० मिनट के बाद ये कविता बन के निकली थी ..
आज  तुम्हारा जन्मदिन  है ! और ये  "कविता"  तुम्हारे  जन्मदिन का गिफ्ट है, हाँ सही पढ़ा तुमने केवल ये "कविता" ही तुम्हारा गिफ्ट है  ...और हाँ अब मत कहना कि तुम्हारे लिए कुछ लिखा नहीं अब तक ...                               
                                    
     तुम                                 

कुछ  ख़ास  है वहाँ उस चेहरे पे 
कुछ  मधुर अहसास है वहां उस चेहरे पे
       कुछ प्रभा के संगीत सा ,वीणा की तान सा ..
       कुछ है जो खींच सा लेता है अपनी ओर
मिथ्या नहीं ,आकर्षण नहीं ,अँधेरे में दिये कि लौ सा ..
दिये की लौ, जो उज्जवल कर दे सारी कालिमा जीवन की ...


कुछ  ख़ास  है वहाँ उस चेहरे पे 
कुछ  मधुर अहसास है वहां उस चेहरे पे 
रक्तवेग बढ़ा देता  है ,उस चेहरे का एक  दीदार 
चेहरे पे मेरे मुस्कान व होंठों पर नमीं बिखेर देता है वो अहसास   ,
 शायद उन आखों की गहराइयों में भीगने की नमी  है ये ...
कुछ तो है ,कुछ तो ख़ास है उस चेहरे में 
इक अहसास ,अधपका सा अहसास 

एक तरुण वृक्ष सा लगता है ये चेहरा कभी ..
गर्म ,उष्ण रेगिस्तान की तपिश से ढ़ाकता तरुण वृक्ष
कभी एक उफान भी नजर आता है वहां
पहाडी नदी के बहाव सा ..   
कभी तरेंगे आती हैं
तालाब में पत्थर के बाद सा
                           
                         एक स्वप्न है ,एक आशा
                         प्रेयसी की परिभाषा है ..
                        उस लौ में ज्योत मुखर यूँ ही जगमगाती रहे 
                        दिवाली के ओज सा जीवन यूँ ही प्रकाशित करते रहे ..
                        छोटी सी यह "अभिलाषा"  है ....

कुछ तो "जरूर"  ख़ास है.. वहां उस चेहरे पे ...

PS :देखो कितना इत्तेफाक है कि आज "चाँद" भी  पूरा नजर आ रहा है :)