ये गीली बारिश , ये नम हवायें !!
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !!
बिजलियाँ बिखेरते बादल कहें ,
तू गम को समा जा खुद के भीतर !!
झुले की रस्सी सी बारिश की डोरी, यह पुकारे !
आनन्द को नये रंग में तू परिभाषित कर !!
मैं मधुर स्वर में रिमझिम रिमझिम गीत सुनाउँ ,
ग्रीष्म ऋतु की तपिश को शून्य तक पहुँचाउँ !!
तू सीख,बडे चल ,कठिनाईयों से निडर चल !
जीवन की बारिश का तू विश्वास कर !!
तू बरस जा इन शोख नदियों को द्रवित कर !
तू गरज, जहाँ की व्यथा पर इमदाद कर !!
खुशी के गीत गा , तू प्रेम के राग सुना !
तू द्वेष भगा , दंभ के पर्वत को लाँघ जा !!
इस क्षण की मदहोशी को तू कैद कर !
बाँह पसार और इस जीवन में उमंग भर !!
ये गीली बारिश ! ये नम हवायें !!
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !!
Darshan Mehra
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