" मेरे घर आना जिंदगी "

on Saturday, June 14, 2014
                      मैंने "श्रवण" को बोला कि एक और बीयर बनती है ,उसने मौन हामी भरी ,बीयर सर्व करते उस ऑस्ट्रेलियन युवा की तरफ मैने देखा ही था की वो बोल पड़ा " Do you need two mo ??"  मुझे कुछ शरारत सुझी "Hey man ,How did you know that ?? Even I have not said a single word " वो मुस्कुराया। .... मैं उसे फिर बोला " You know I am married " .. वो जोर से हंसते हुए बोला  … " Even I am not a gay " बीयर की ब्रांड का नाम था " Four Wives " अब वो शरारती लहजे में बोलता है की " Rather it should be "Two Wives" " .. हम तीनो ने जोर से ठहाका लगाया .... ​​

                               इसी सब में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए "श्रवण" बोला ,सरजी कई बार  तो लोग सुबह-२ खुद के पैसे मांगने आ जाते और पापा और हमारे पुरे परिवार को  खूब सारी  गालियां दे जाते थे  । कभी-२ हम लोग घर के बाहर ताला खुद ही लगवा देते थे  ।  करीब पिछले 12  सालों से उसके अंदर इतना "कष्ट " सहने ,उसको खुद में ही समेटने  और उससे लड़ने की इस  हिम्मत  का मैं तो कायल हो गया । वो मुझे "सरजी" कह कर ही पुकारता है जबकि वो मेरे ही स्कूल में मुझसे केवल  एक क्लास जुनियर था  बस । IT इंडस्ट्री की ही देन  है की हम दोनों ही आज सिडनी में स्कूल के बाद फिर मिले ! सरजी कभी-२ पुरे घर में खाने के लिए तक पैसे नहीं होते थे  । हमने कभी किसी का बुरा चाहा नहीं मगर  … 

                  सरजी, पापा का फाइनेंस का  बिजनेस था ,उनका  बिजनेस पार्टनर  इतनी बढी गबन करके फरार हो गया और हमको सड़क पर खड़ा कर दिया  … एक तो गरीब होता है जिसके पास कुछ भी नहीं होता मगर हमारे पास थे निगेटिव में 5 0-60   लाख  … किसी तरह से मेरे कॉलेज के लिए लोन सैंक्शन हुआ ।मैंने कालेज में ही सोच लिया था की अपनी  इंडिविजुअल  जिंदगी के बारे में तब सोचूंगा जब फैमिली के हालात ठीक  कर पाउँगा । मैंने ये सब आज तक किसी  को नहीं बताया  । हमेशा खुद को खुश रखने की  कोशिश करता रहा  । जब भी लो फील करता था पापा के बारे में सोच लेता था  । वो तो फ्रंट से ये लड़ाई लड़ते  रहे ,मैं तो सिपाही की तरह पीछे से सपोर्ट देता था बस  । आपको बताऊँ की  पापा को जेल तक जाना पड़ा  । "सरजी" पता नहीं क्यों आपसे "कनेक्ट" लगा मुझे वरना मेरे परिवार के अलावा ये सब मैंने किसी से शेयर नहीं किया आज तक  । मेरी मम्मी मुझसे बोलती रहती हैं की खुद के लिए भी कुछ कर लिया कर पिछले 7 -8  सालों में सिर्फ तुने हम सबके लिए किया है बस ! और मैं मम्मी को बोलता हूँ की "मैं सिर्फ एक जरिया हूँ ,करने वाला कहीं ऊपर बैठा है "  ।  "सरजी" मानवीय प्रयासों से ये सब हो पाना मुमकिन बिल्कुल नहीं था  ।  मैंने कभी किसी मैनेजर को नहीं बोला की मुझे onsite  भेजो ,कभी सोचा ही नहीं की ऐसा दिन आ पायेगा जब मेरा परिवार फिर खड़ा हो पायेगा   ।  "श्रवण" की आँखें चश्मे के पीछेे  नम थी  । 

                           
        मैं  बोला ईश्वर  सबकी मदद नहीं करता है शायद ,"You are a pure soul "  ,तुने  बिना संयम खोये ये लड़ाई लड़ी है बेस्वार्थ होकर ,इसीलिए ईश्वर तेरे साथ रहा हमेशा  । पर मेरा मन किया की उसको एक बार गले लगा लूँ फिर सोचा की जाते समय बोलूंगा  ।  फिर वो बोला पिछले 10 -12 सालों में अकेले मैं कितनी बार रोया हूँ याद तक नहीं है  ।  पिछले  साल मम्मी के गिरवी  गहने छुड़वाने वाले दिन मैं  कई घंटों तक रोता रहा  । मैं सोच में पड़ा रहा की मैंने ""श्रवण" को पिछले 10-12 सालों से जबसे मैं उसे जनता हूँ कभी दुखी नहीं देखा। । हमेशा हँसते हुए ,मुस्कुराते हुए  ,प्रयास के झुग्गी के बच्चों की फिकर करते हुए पाया   । जब भी हो पाता वो प्रयास के बच्चों के लिए डोनेट भी करता  … आज मुस्कुराते चेहरे के पीछे के दर्द को जाना ,संघर्ष को जाना तो "ईज्जत " कई सौ गुना बढ़  गयी मेरी नजरों में उसकी  । 
                           कह रहा था नवम्बर में कर्ज  का वो पहाड़ खत्म हो जाएगा ,फिर दोस्तों को बताऊंगा  । सरजी , मैं चाहता नहीं था की लोग मुझपे सिम्पैथी करें ,हमारी दोस्ती मेरे परिवार की हालात की वजह से बायज्ड हो  । फिल्मों में ऐसी कहानियां देखीं हैं काफी मगर ये तो असली "हीरो" बैठा था मेरे साथ  ।  मैं बहुत खुश था जो कुछ भी उसने हासिल किया था ,उसके लिए   जिस तरह से अडिग रहकर चुपचाप बिना किसी से शिकायत के वो संघर्ष किया है अतुलनीय है ये सब  । 

              मैं कुछ बोलता उससे पहले खुद ही बोला "सरजी " आपके  गले लगना चाहता हूँ एक बार    ।  वो अपने घर के लिए चला तो जा रहा था मगर मेरे स्मृतिपटल पर जितनी बड़ी छाप छोड़ के वो गया शायद ही पहले कभी ऐसा हुआ हो  .... 

"और हम हैं की अभावों का रोना रोते हैं  ...."