" जुलेखा "

on Tuesday, October 27, 2009


"बेटा तुझसे कुछ भी पूछो न तो तू कुछ बोलती है,ऊपर से हमेशा मुंह फूला के बैठी रहती है ? "
हम लोग खुद भी असमंजस में रहते थे कि क्या उपाय किया जाय ! ये थोड़ी अजीब सी हालत होती थी हमारे लिए ! हम पिछले २-३ महीनों से उसे रात को साढे आठ से साढे दस बजे तक पढाने आते थे ! हम तीनों ये जानते थे कि ये १० साल की लडकी पढने में ठीकठाक है मगर व्यवहार में काफी अजीब !

बाकी के बच्चे उसके साथ बैठने को भी तैयार नहीं होते थे ! क्योंकि वो साफ भी नहीं रहती थी ,बाकीयों को गाली भी दे देती थी और न ही बाकी बच्चों में घुलती मिलती थी ! एक दिन अचानक कुछ उपाय सोचा कि कैसे इन सब बच्चों में आपसी सामंजस्य बढाया जाय या कहें कैसे ये लोग आपस में लडें नहीं ! जैसे कि फुटबाल या क्रिकेट के मैदान में होता है हर एक खिलाड़ी दूसरी टीम के सारे खिलाडियों से हाथ मिलाता है और आगे बढ़ता है ! कुछ ऐसा ही उपाय किया गया,सारे बच्चे एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे और आगे बढेंगे !मगर जैसा हमने सोचा था ठीक उसके विपरीत हुआ ! सज्जाद ने उस लडकी से हाथ मिलाने से मना कर दिया ! हम लोगों की बात न माने ऐसा बमुश्किल ही होता था मगर आज सज्जाद अपनी इस बात पर अड गया कि मैं इससे हाथ नहीं मिलाउंगा !
“क्यों सज्जाद क्या प्राब्लम है बेटा ,जुलेखा से हाथ मिलाने में क्या दिक्कत है ?? “
सज्जाद हमेशा कि तरह एकटक देखते हुए कोई जवाब ही नहीं देता ! बहुत पूछने के बाद भी जब वो कुछ नहीं बोला तो थोड़ा कठोर होते हुए मैनें बोला
“या तो हाथ मिला या फिर क्लास से बाहर चले जा “
अचम्भित होकर देखा कि सज्जाद रोते हुए बाहर चला गया ! कुछ समझ में सा नहीं आया मगर सारे बच्चों से पूछा तो कुछ संतोषजनक उत्तर नहीं मिला ! हमारा उपाय और भी औधें मुँह गिरा और मूड अच्छा होने के बजाय और भी खराब हो गया !

अगले दिन कि क्लास में जुलेखा तब तक नहीं आयी थी और सज्जाद से फिर से पूछा तो वो बोला “सरजी जुलेखा के हाथ बहुत गन्दे रह्ते हैं वो नाक भी ऐसे ही पोछती रह्ती है ,इसलिये मैनें उससे हाथ नहीं मिलाया “ पहले से ही जुलेखा के व्यव्हार को लेकर हम थोडे चिंतित थे और ये नयी कहानी ! खैर काफी तरीके से समझाने के बाद जुलेखा साफ तो थोडा रहने लगी मगर उसका मूडी व्यव्हार कभी भी न बदला ! रोज बच्चों से उसकी शिकायत आती ,गाली देने की ,चिल्लाने की ,गुमशुम रहने की और सबसे ज्यादा अडियल रहने की !

एक दिन किसी बात पर हम दो volunteers जुलेखा की किसी बात पर उसे डाँट रहे थे ! वो हमेशा कि तरह मुँह फुलाये बैठी थी ,उपर से कुछ भी पूछो तो कोई जवाब नहीं ! बाकी बच्चों पर चिल्ला अलग रही थी और हम लोगों के सामने ही किसी बच्चे को गाली भी दे डाली ! अब हम दोनों थोड़ा कठोर हुए और पहले तो उसे डाँटा और तब भी जब उसे कोई फरक नहीं पडा तो उसको थोडा सबक सिखाने के लिये उसको क्लास से निकाल दिया ! थोडा अच्छा खुद को भी नहीं लगता था बच्चों को डाँटने में, क्योंकीं ये पाँचो बच्चे खुद अकेले इतना मेहनत कर रहे थे जितना शायद हम तीनों volunteers मिलकर भी नहीं !

थोडी देर के बाद उस छोटे से 7X11 फीट के कक्ष के दरवाजे को किसी ने पीटना शुरू किया और देखा तो जुलेखा की बाँह पकडे हुए उसकी मम्मी उसे हमारे पास लायी और पहले से पिटी हुई जुलेखा को हमारे सामने ही बुरी तरह मारने लगी ! वो रोती जाती है और पलट के मम्मी के उपर भी चिल्लाती है ! मेरा पारा थोडा गरम हुआ और मैने उसकी मम्मी को उसे न मारने के निर्देश देते हुए थोड़ा समझाने की कोशिश की !
“सरजी ये लड्की घर में हर दूसरी बात पर मार खाती है ,हर दिन मार खाती है मगर फिर भी नहीं सुधरती, आप लोग इसे क्लास से निकालो मत बल्कि इसको खुब मारो ताकि ये सुधर जाये”

अचानक से इतने दिनों से अनसुलझी परेशानी की जड समझ आयी ! जुलेखा का अडियलपन ,हमेशा मुँह फुला के बैठना,बाकी बच्चों से बात तक नहीं करना,गाली देना,ये सब उसकी मम्मी द्वारा की गई “पिटाई” और घर के माहौल की देन है ! उसकी मम्मी के द्वारा उपयोग लायी जा रही भाषा इस स्तर तक थी कि शायद हम दोनों(मैं और कनन) वहाँ नहीं होते तो शायद उसकी मम्मी भी “गालियों की बौछार” कर देती !
जब परेशानी की जड समझ आयी तो उसको सही करना भी हमारी जिम्मेदारी थी ! जुलेखा की मम्मी को समझाया गया कि अगर मार के ही ये सही होने वाली होती तो आज तक सही हो चुकी होती ! ”आप ये तो समझ लीजिये कि अगर आज से आपने जुलेखा को कभी भी मारा तो हम से बुरा कोई नहीं होगा,आप जैसा व्यवहार खुद करते हो बच्चे भी वैसा ही व्यव्हार करते हैं ,आप घर में गाली देते हो ,खुद साफ नहीं रहते ,बच्चों पर चिल्लाते हो और यही सब बच्चे भी करते हैं , आज से आप खुद सुधरो पहले जुलेखा को सुधारने कि जिम्मेदारी हमारी “

धीरे-धीरे परिवर्तन शुरू हुआ जो कि होना ही था ! जुलेखा का परिवार चूँकि क्लास के नजदीक ही रह्ता था तो सबसे पहले “परिवर्तन” उसकी मम्मी में नजर आया ! अब कम से कम साफ दिखाई देने लगी वो , कभी कभार जुलेखा की पढाई के हाल लेने आ जाती ! जुलेखा जिसको पहले मुस्कराते हुए देखना असम्भव था अब कभी-कभार मुस्कुराते हुए दिख जाती थी !

कल अचानक से बडे दिनों बाद वो क्लास लेने आयी थी,चूँकि उसका परिवार अब इस झुग्गी में न रहकर थोडा बाहर तरफ रहने लगा है ! वो बहुत बदली हुई जुलेखा है अब ! काफी साफ-सुथरी ,समझदार सी ,दाँत बाहर को जरूर हैं मगर अब मुस्कुराती भी है और सबसे बडा अगर कोई परिवर्तन है तो वो ये कि वो अपने आप में काफी जिम्मेदार सी हो गयी है ! बताती है कि “ सरजी कभी-2 जब बहुत पढाई करनी होती है न पेपर के दिनों में तो रात को 1 बजे तक पढती हूँ मैं, हाँ :)“ !

दूरदर्शन पर एक विज्ञापन आता था किसी जमाने में शायद “प्रोढ शिक्षा” का विज्ञापन था ! अंत में शिक्षक एक ऐसा ही परिवर्तन किसी छात्र में देख कर बोलता है “क्या ये वही किसन है “, और उस क्षण में पूरी तरह से तल्लीन हो जाता है कुछ-कुछ वैसी ही भावना मैं भी कल महसूस कर रहा था !जिस कक्षा में केवल दाखिला पाने के लिये इतना जद्दोजहद करनी पढी थी अब जुलेखा उस क्लास में शीर्ष पाँच (top five) में आती है ! उसका यह नया रूप जरूर उसे एक् अच्छे मुकाम तक पहुँचायेगा, यही मनोकामना है !




Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com
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