तस्मै श्री गुरूवै नम: !!

on Friday, August 28, 2009

        काफी समय से मस्तिष्क के किसी कोने में ये विचार था कि गुरू यानि शिक्षक या अधिक देशी भाषा का उपयोग किया जाय तो मास्साब के  बारे में कुछ कहा जाय कुछ कलमबद्ध किया जाय ! चूँकि शिक्षक दिवस नजदीक है तो विचार  की ये उधेड्बुन सिमट नहीं पा रही सो मैं फिर आपसे साक्क्षातकार करने आ पहुँचा हूँ गुरू शब्द  की महिमा को वर्णित करने ! 

      पहला दिन था  मैं ट्यूशन लेने के लिये पहुँचा,शिक्षक से भिज्ञ भी नहीं था मैं,बस ये जानता था कि उनका नाम श्री महेश तिवारी हैं और वो मेरे बडे भाई के स्कूल में पढाते हैं ! उनके घर पहुँचा तो शिक्षक कम शास्त्रीय  संगीतकार ज्यादा लग रहे थे ! उनके 12 X 10  के कमरे में एक छोटी सी चारपाई और उस पर तबला ,एक हार्मोनियम बहुत सारी संगीत से सम्बन्धित पुस्तकें और एक टेप रिकार्डर और काफी सारी कैसेट,ये सारा सामान पडा  था ! एक अजीब सी परम्परा थी यहाँ पर , सारे छात्र तब तक  चुपचाप से बैठ जाते थे जब तक कि सवा आठ न बज  जाये ! तिवारी सर आंखें  बन्द किये शास्त्रीय संगीत में मुग्ध उसी धुन पे तबला या फिर हार्मोनियम बजा रहे  होते जो धुन टेप रिकार्डर पर चल  रही होती थी ! तिवारी सर की तल्लीनता देख कर ये बात जरूर समझ आती थी कि वो परालौकिक आनन्द की अनुभूति कर रहे हैं इस लोक की करनी और कर्ता से उनको कम से कम उस वक्त कोई भी फर्क नहीं पडता था ! 

       कई दिनों से गणित में गुणनखंड (factors) के आखिरी अध्याय में फँसा हुआ था मैं ! शेषफल प्रमेय (Remainder theorem ) का तोड निकालने की बहुत कोशिश कर चुका था मगर हर बार नई  परेशानी आ जाती थी ! ये सौभाग्य था या नहीं कि टयूशन के पहले दिन ही शेषफल प्रमेय पर कक्षा चल रही थी ! मैं तो तिवारी सर की सादगी से बहुत प्रभावित हुआ और जैसे ही उन्होने पढाना शुरू किया तो इतने दिनों कि मेरी परेशानी यनि शेषफल  प्रमेय का ऐसा निदान दिया कि मैं कभी भी नहीं भूल सकता था ! बात यहाँ पर केवल एक शिक्षक की नहीं है वरन एक ऐसे इन्सान की है जो कि आपको सही राह भी दिखाये ,जो स्वयं में बहुत अच्छा इंसान भी हो ,जो आपको सही मार्गदर्शक की तरह सच्चे पथ पर अग्रसर भी करे ! तिवारी सर सबके परिजनों से मिलते ,बच्चे की अच्छी बुरी-बातों पर ध्यान आकर्षित करते ! 

     उनकी निगरानी केवल उस एक् घंटे के अंतराल पर ही नहीं  रहती  थी जब  कि वो पाठन कराते थे ,मगर घर में हम कितना पढते हैं,क्या पढते हैं इस सब पर भी निगरानी रहती थी ! पापाजी से उस काँलम पर हस्ताक्षर करवाने होते थे जहाँ हमारे  सुबह उठने से लेकर रात्री सोने तक का विवरण होता था !

    सबसे प्रभावी बात जो मुझे लगती है वो यह थी कि ज़ितना विश्वास  सर को हमारी काबिलियत पर होता था वो हमारे खुद के विश्वास से कहीं अधिक होता था और कहीं ना कहीं ये प्रबल इच्छा रहती थी कि उनके विश्वास के लिये ही सही कुछ कर दिखाना है  “ :)


   दो  वाक्य हमेशा याद रह्ते हैं सर के !

o        यार तुम लोग सफल हो जाओ तो मुझे तो बस एक बताशा खिला देना बस !

o        मेहरा 100 नम्बर की मत सोचो 120 नम्बर की सोचो तब कहीं 100 नम्बर आयेंगे !


 मैने हास्यासपद एक दिन पूछ ही लिया कि सर 100 नम्बर के बोर्ड के पेपर में 120 नम्बर की कैसे सोच सकते हैं ?? उनका  कहना था विकल्प (optional) वाले प्रश्नों  को भी अगर मिला लिया जाये तो पूरा पेपर असल में तो 150 नम्बर का होता है :) !

        हर दूसरे सप्ताह के अंत में  सारे छात्रों के लिए एक परीक्षा होती  और सर्वश्रेष्ठ 3 छात्रों को कुछ न कुछ पारितोषिक  दिया जाता ! स्वच्छ प्रतियोगिता की जो भावना सब में डाल दी जाती थी वो भावना जीवन पृयन्त काम आयेगी ! तिवारी सर का हमेशा कहना था कि प्रतियोगिता और द्वेष में बहुत अंतर है ! प्रतियोगिता में रह्ते हुए हम सबको साथ लेकर चल सकते हैं मगर द्वेष में हम एकाकी होकर नकारात्मक उर्जा से कुंठित रह्ते हैं !

        स्कूल की शिक्षा और कालेज के दिनों में एक स्पष्ट अंतर नजर जो  आता है तो वो ये कि स्कूल के दिनों के वो प्रेरक शिक्षक कालेज पहुँचते हुए गायब से हो जाते हैं ! कम से कम मेरा अनुभव तो यही बोलता है ! स्कूल के समय में तिवारी सर जैसे कई गुरूजन हुए जैसे नन्दनी मैडम ,अग्रवाल सर ,शर्मा सर ,कडाकोटि सर और चौधरी सर जिनके विचार आज भी प्रभावित करते हैं ! मगर ऐसे शिक्षक आगे न मिले !

  कुछ छात्रों को एक दिन तिवारी सर समझा रहे थे कि खुद को कम महसूस करोगे तो कम ही रहोगे,खुद को शेर समझो , हर इंसान किसी चीज को दो तरह से पा सकता है , या तो उसमें सम्बन्धित गुर हो या फिर वो मेहनत करे उस गुर को हासिल करने के लिये ! तो एक मनोधारणा तो बना ही लो कि आप सब सर्वश्रेष्ठ हो लेकिन ध्यान रहे आप अहंकारी न हो जाओ ! कहीं न कहीं ये कथन पथप्रदर्शक  बना हुआ हमेशा उन पलों में मेरी मदद करता है जब मेरी उर्जा कम होती है!मुझे लगता है कि ये सौभाग्य ही था कि ऐसे गुरु हमें मिले जिन्होंने सही मायने में कुम्हार की तरह कच्चे घडे का आकार देने का कार्य किया ! शिक्षा का मतलब तिवारी सर के लिये केवल अच्छा पेशेवर बनना नहीं था बल्कि एक अच्छे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण सर्वोपरी था ! 

     तिवारी सर की गुरू दीक्षा और प्रेरणा का ही ये परिणाम रहता है कि एक साधारण छात्र / छात्रा बोर्ड के पेपरों में कमाल का परिणाम देने में सफल हो जाता हैं और मैं खुद उनकी इस गुरू दीक्षा का  भोगी हूँ :) !

    तस्मै श्री गुरूवै नम: वाक्यांश असल में तिवारी सर सिद्ध करते आये हैं !

 आज तिवारी सर से मिलो तो सहर्ष ही सम्मान में उनके आशिर्वाद लेने में जो हार्दिक खुशी होती है वो अवर्णीय है और वो अपने "कुम्हार" रूप में नये घडों को आकार देने के मुहिम में सदैव की तरह अडिग होकर कार्यरत रहते हैं ! 

   आप इस लेख को पढने के बाद उन सभी गुरूओं के लिये कृतज्ञता मह्सूस करें जो आपके जीवन में बहुत अहम थे जिन्होनें आपके व्यक्तित्व और चारित्रिक निर्माण  में कुम्हार के समान योगदान दिया ! 

आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारे शुभकामनायें !!


Darshan Mehra

darshanmehra@gmail.com

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