उमंग

on Thursday, July 23, 2009


ये गीली बारिश , ये नम  हवायें !! 
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !! 

बिजलियाँ बिखेरते बादल कहें ,   
तू गम को समा जा खुद के भीतर !!   

झुले की रस्सी सी बारिश की डोरी, यह पुकारे ! 
आनन्द को नये रंग में तू परिभाषित कर !!    

मैं मधुर स्वर में रिमझिम रिमझिम गीत सुनाउँ ,
ग्रीष्म ऋतु की तपिश को शून्य तक पहुँचाउँ  !!  



तू सीख,बडे चल ,कठिनाईयों से निडर चल ! 
जीवन की बारिश का तू  विश्वास कर !!

तू बरस जा इन शोख नदियों को द्रवित कर !
तू गरज, जहाँ की व्यथा पर इमदाद कर !! 

खुशी के गीत गा , तू प्रेम के राग सुना ! 
तू द्वेष भगा , दंभ के पर्वत को लाँघ जा !! 

इस क्षण की मदहोशी को तू  कैद कर !
बाँह पसार और इस जीवन में  उमंग भर !!    

ये गीली बारिश ! ये नम  हवायें !! 
ये क्षण है मुदुल ,बाँह फैलाये !! 

Darshan Mehra

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