इस कविता का उद्देश्य केवल एक विश्वास को कायम रख्नना था कि मैं कविता भी लिख सकता हूँ ! और यही विश्वास इस कविता के पीछे का वास्त्विक बल भी है !
मैं जानता हूँ कि कविता बहुत साधारण है परंतु बस यही कहुँगा कि अगर पुत्र बहुत सुदंर ना भी हो तो पिता का प्रेम कम नहीं होता !
तुम प्रेम हो ....
ऐ मन तू क्यों इतना विचलित है ?
इस धीर-अधीर के पथ पर तू क्यों इतना व्याकुल है ?
क्यों सन्नाटे की आहट भी हृदय को गूँज रही है ?
क्यों पसारता है अस्थिर मन, उडने को पंख गगन में ?
धमनियों में रक्त – ताप क्यों शीतल है इतना ?
क्यों सोच के सागर में सिर्फ उसकी ही परछाई है ?
क्यों उस चेहरे को सोच-सोच मुस्कुरा उठता है सारा तन ?
आनन्द की अभिलाषा में यह मन, छुना चाहता है क्यों वो दामन ?
क्यों फासलों का दर्द इतना गहराता जा रहा है ?
क्यों साँसो का प्रवाह, तीव्र वेग से उफन रहा है ?
मन्दिर की सी अनूभूति क्यों है आत्मा को ?
क्यों तेरी याद की पोटली खुद-ब-खुद खुलती जा रही है ?
भावनायें क्यों शब्दों का रूप लेने में विफल हैं ?
और क्यों शब्द यह कह गूंज रहें हैं कि ”तुम प्रेम हो ....“
PS: your feedback always motivates to write better ,so give it now on COMMENT section :)
8 comments:
प्यार करना और प्यार के बारे मैं likhna .... दोनों ही अपने आप में दुरूह कार्य हैं .....
खैर मुझे खुशी है की दर्शन भाई ने अपने अनुभवों को कागज़ पे साकार किया ....
हाँ अगर कविता को आलोचक की दृष्टि से देखा जाए तो में कहूँगा की बेहतर हो सकती थी ...और हाँ दोस्त की दृष्टि से देखूं तो कहूँगा ... भइया विरह अग्नि में बहुत तड़प लिए अब फटाफट घर बसा लो |
प्यार करने की उमर में प्यार पे कविता likhna अपराध से कम नही है ....इसका मतलब है आप अपने प्यार का टाइम काट के कविता कर रहे हो !!!
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
dpd111@gmail.com
aab to pyar pe kavita bhi likh dali, kya baat ab kavi banne ka erada to nhi?
waise likhi to bhut achi hai.
manana padhega.
Daju meri jaan DPD ne bilkul sahi bola hai...
Kavita tune achhi likhi hai but DPD ki baat maan hi lo :))))
beautiful! I love your prose and you completely surprised me by your poem. I wonder howcome i missed it earlier. great going!
I am scared that may be the deleted comment was mine. I hope it was not...
by the way, it is really good... I hope if someday i can write hindi kavitayen like you...
hmmmmmm.
साधारण तो नहीं कविता...और जिसमे प्रेम आ गया वो असधारण खुद ही हो गयी...और भावनाएं शब्द रूप लेने में पूरी तरह सफल रहीं..indeed a good poem...
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