क़विता..

on Wednesday, February 20, 2008




भारतीय अर्थव्यवस्था और विकास का प्रमाण – दिल्ली मैट्रो !!
मेरे लिये सप्ताह के पाँच दिन दिल्ली मैट्रो से यात्रा करना एक आदत ही है ,परंतु ये क्या ? आज तो रविवार है और आज भी मैट्रो से यात्रा ? और वो भी मै अकेला नहीं मेरे साथ दो और लोग !
मुझे याद नहीं कि किस बात से हम तीनों बचपन की यादों में चले गये ! और शुरू हुआ दौर, बचपन में स्कूल में की गई गलतियों का वर्णन करने का :) !!
मुझे याद है कि कक्षा 9 में समाजिक विज्ञान में एक प्रश्न था !
प्र. आपरेशन फ्लड क्या होता है ?
मेरा उत्तर था, जिस कक्ष में घातक बीमारीयों से सम्बन्धित सामान जो आप्रेशन के समय काम आये रखे जाते है ,उस कक्ष को आपरेशन फ्लड कहा जाता है ,इस कक्ष में ही घातक बीमारीयों के आपरेशन भी किये जाते है :) ! वास्तव में आपरेशन फल्ड भारत में आयी दुग्ध क्रांति (श्वेत क्रांति ) को बोला जाता है ! हा हा :)

ऐसा ही जवाब था चौहान के सह्पाठी का
प्र. कबीर के जीवन पर प्रकाश डालिये ?
उसने कुछ लिखे बिना एक चित्र बनाया जो कुछ नीचे बने चित्र जैसा था शायद आप खुद ही समझें :) :)


फिर एक बच्चे की कापी याद आयी जिसने लिखा था
प्र. गाँधीजी कहाँ पैदा हुए थे ?
उ. गाँधीजी गाँधी चौक पर पैदा हुए थे :) :)
इन सब मस्ती भरे और हास्यास्पद किस्सों पर ठहाके मारते हुए ,हँसते हुए हम तीनों (मैं ,सेल्वा और अरुण ) दिल्ली विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन पहुँचे ! वहाँ से साईकल – रिक्शा से तीमारपुर के एम.सी.डी. गोदाम पहुँचे,जहाँ AID-आशायें नाम से युवाओं का एक संगठन एक समुदाय के बच्चों की शिक्षा के लिये कार्यरत हैं !
अरे यह मेला सा क्या लगा हुआ है ? टेन्ट वाले ने उस छोटे सी जगह को एक अच्छा सा मंच बनाने में अच्छी कोशिश की थी !
ना होली है,ना दीवाली,ना ही 15 अगस्त और ना तो 26 जनवरी,तो ये कैसा मेला है ? इतने सारे बच्चे और बच्चों का उत्साह, देखने योग्य था , और किसी भी त्यौहार से बेहतर लग रहा था ! पूरे समुदाय के ढेर सारे बच्चे इंतजार में थे कि कब उनकी जिज्ञासा का अंत होगा कि आखिरकार यहाँ क्या होने वाला है !स्वयं में एक प्ररेणा, विजय भैया सपरिवार मुख्य द्वार पर खडे थे ! मैने बचपन में किताबों में पढा हुआ है कि महान लोगों का ललाट (माथा) ओजस्वी और तेजपूर्ण होता है, और भैया से मिलकर मुझे बचपन की वह बात बार-बार याद आती है !


तकरीबन 8-9 साल की एक छोटी सी बच्ची विजय भैया के गोद में बैठने को आतुर हो रही थी ,मुझे लगा वह बच्ची भैया को पूर्व से जानती है ! भैया ने थोडी देर उसको गोद में बैठाकर नीचे उतारा,फिर वो मेरी गोद में आने लगी, सेल्वा ने बताया कि यह बच्ची हमेशा ही किसी ना किसी की गोद में बैठने का प्रयत्न करती है ! पहले थोडा अजीब लगा मुझे पर बाद में उस बच्ची की लालसा देख कर मैंने उसे गोद में ले लिया!
मैंने उससे नाम पुछा तो वो कुछ नही बोली ! मेरे चेहरे को छुने लगी, मुझे धीरे से थप्पड मारने लगी ! यद्यपि सभी बच्चे प्यार और अपनेपन की भाषा को बहुत खूब समझते हैं मगर ये बच्ची तो स्वयं में ही प्रेम के दीप के समान थी ! उसे इस बात की परवाह नही थी की वो किस के गोद में हैं ,उसे यह भी नहीं पता था कि मैं कौन हूँ !
उसे परवाह थी तो यह की वो कैसे प्यार करे और उसे कैसे प्यार मिले !


मुझे कुछ – कुछ असाधारण सी लगी यह बच्ची ,वह केवल किसी से भी प्यार पाने को उत्सुक रह्ती थी ! मुझे सेल्वा ने बताया कि उस बच्ची का नाम “ क़विता “ है और वह मानसिक रूप से कमजोर है !! एक पल के लिये मेरा मन दुखी हुआ लेकिन फिर मैंने सोचा कि सही में इस दुख का कोई वास्तविक कारण है भी या ये एक मिथ्या है ! जितने भी लोग इस आयोजन में सम्मिलित थे उनमें से “कविता” एक मात्र इंसान थी जिसे केवल एक ही भाषा का ज्ञान था ,प्यार की भाषा !!! क्या यह दुखी होने का कारण हो सकता है ? कदापि नहीं !! और मैं पून: खुश हो गया !
"" मेरे विचार से क़विता हम सब में श्रेष्ठ थी !""


जैसे ही मंच पर कार्यक्रम शुरू हुआ , एक बहुत सुंदर नाटक का मंचन किया गया, और यह नाटक भी “कविता” के उपर आधारित था ! कहानी का सारांश यह था कि हमें कविता के साथ भी एक साधारण इंसान के समान व्यवहार करना चाहिये ! काफी प्रभावशाली मंचन था बच्चों के द्वारा !!
कविता अभी भी मेरे गोद में बैठी हुई, मंच पर अलग – अलग कार्यक्रमों को देखती और अंत में मेरे साथ तालियाँ जरूर बजाती ! अचानक से एक धमाकेदार गीत(आजा नच ले....) चला जिस पर 3-4 छोटी लडकियाँ मंच पर नाच रही थी ! कविता मेरे गोद से तुरंत उतरी और मंच की तरफ भागने लगी ! पहले तो सारे लोगों ने उसे रोकना चाहा जबकि मैं चाह रहा था कि उसको मंच पर जाने दिया जाये , थोडी देर में वो मंच पर नाचने लगी :) ! उसकी खुशी का आलम नहीं था ! अगर अतिश्योक्ति का प्रयोग करूँ तो


“ कविता ऐसे नाच रही थी जैसे बेसुध होकर मीरा कृष्ण-प्रेम में नाचती होगी “ लेकिन कविता जीवन प्रेम में नाच रही थी शायद ! हमारी तरह उसके मस्तिष्क की सीमायें ,परिवार ,स्कूल,समाज,देश,ज्ञान और विद्या के दायरे में खत्म नही हो जाती ! उसका जीवन अनंत सीमाओं को छू सकता है !
इस छोटी सी बच्ची को मानसिक कमजोर बोलना गलत होगा चूँकि ये लडकी तो ईश्वर के सबसे करीब है !
सारे कार्यक्रम को AID-Aashayen ( आशायें ) के सदस्यों ने बहुत ही प्रभावशाली बनाया था ,समुदाय के छोटे और कुशाग्र बच्चों का कुशल अभिनय,नृत्य और आत्मविश्वास देखने योग्य था ! बच्चों ने मंच पर आकर अपने भविष्य की आकाँक्षायें बतायी कि कोई ईंजीनियर बनना चाहता है तो कोई पूलिस वाला,यह सब सुनना निसंदेह सुखद था,बहुत प्रेरक था !
यद्धपि कविता नही बता सकती है कि वो क्या बनेगी या क्या बनना चाहती है लेकिन क्या उसे इन समाजिक महत्तवकाक्षाओं और भौतिकता वादी लक्ष्यों की आवश्यकता है भी ?
उसके लिये जीवन में खुशी और प्यार ही काफी है बल्कि काफी हद तक हमारे लिये भी ये दोनों चीजें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जो शायद हम भूल जाते है !!





Darshan Mehra

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