मैंने सुना हुआ था कि जब इंसान की मृत्यु होती है तो उसका शरीर नीला पडने लगता है !यही सोचकर मैंने लेटे हुए ही अपने हाथों की तरफ देखा तो मेरी घबराहट काफी बढ गयी ! क्योंकि मुझे मेरे हाथ नीले नजर आ रहे थे ! पर बहुत ध्यान लगा कर सोचा तो समझ आया कि आज तो होली है तो हाथों में रंग लगा हुआ है शायद ! मगर फिर अपने शरीर को देखा तो समझ आ ही गया कि मौत करीब है शायद वरना शरीर भी नीला क्यों नजर आता ? यह कोई कहानी नहीं है मगर एक दुर्घटना का विवरण है !
10 मार्च यानि होली की पहली रात को मैं और अरूण, भाँग के इंतजामात के लिये रिक्शे वाले से लेकर, पान वाले से तक पूछ रहे थे कि सरकारी भाँग का ठेका कहाँ है ? क्योंकि रैम्बो ने अन्दर की खबर दी थी कि सेक्टर् 15 में भाँग मिलती है ! हम लोग कोशिश कर रहे थे कि हमारे चेहरे पे किसी भी किस्म कि सिकन न नजर आ जाये !मंद-मंद मुस्कुराहट हम दोनो कि चेहरों पर खिली हुई थी जैसे कि किसी रणभूमि फतह की तैयारी चल रही हो और हमको पता हो कि विजय क सेहरा हमारे ही माथे चढेगा !
हमको जब यह पता चला कि भाँग के भी सरकारी ठेके होते हैं तो मेरे दिमाग में तो यह खयाल आ रहा था कि हम कई दिनों से ढूँढ रहे थे मगर यह तो बहुत आसानी से हासिल हो गया ! यहाँ पर यह बताना बहुत जरूरी है कि हम लोग यानि डी-51 के योद्धा केवल एक बार इस भाँग पीने के प्रयोग से गुजरना चाहते थे वरना हम भँगेडी नहीं हैं :) ! आखिरकार हमको भाँग का ठेका तो मिल गया मगर पता नहीं था कि कितनी मात्रा में लेना चाहिये और कैसे ! एक अजीब सी झिझक थी दुकानदार से पूछने के लिये मगर थोडी देर सारे ग्राहकों को ध्यान से देखने के बाद हमको भी समझ आ गया कि “हाथों कि मेंहन्दी के समान ” यह हरे से पत्तों का पिसा हुआ मसाला ही भाँग है जो कि 20-20 रू में एक ढेली मिल रही थी ! लोगों को देखने के और सोच विचार् के पश्चात हमने रू 50 की भाँग ली और खुशी से रैम्बो को फोन पे बताया ! हमेशा की तरह रैम्बो की असंतुष्ट आत्मा नही मानी और् उसके कहने पर हमने फिर से रू 50 की भाँग ले ली ! एक अंकल जी से पूछा कि भाँग कैसे खाते हैं तो उन्होने बहुत ही दयालु व सरल भाव से बताया कि “मैं तो भाँग को ऐसे ही खा जाता हूँ और उसके पश्चात पानी पी लेता हूँ” यह तरीका मुझे तो अच्छा नहीं लगा किसी भी तरह से उपर से हँसी और आ गयी इस बात पर :) ! घर पहुँचकर ठंडाई का इंतजाम करने के बाद हमारा भाँग-मोह बढता चला गया ! भाँग का भोग लगने की तैयारी बेहद दिलचस्प हो रही थी ! इतनी तैयारी डी-51 में या तो क्रिकेट मैच देखने के लिये होती है या फिर जन्मदिन का केक काटने के लिये ! दूसरी सुबह यानि होली वाले दिन हम लोग उठे भी नहीं थे अभी तक मगर देखा तो सेल्वा अपने टूटे (Fractured) हुए पैर के प्लास्टर पर पाँलीथीन बाँधकर होली खेलने के लिये पूरी तरह से तैयार था ,सेल्वा का ये जज्बा काबिले-तारीफ था , इंसाह-अल्लाह !! :) ! डी-51 की होली में हम 5 योद्धाओं (सेल्वा,अरूण रैम्बो,चौहान और मैं (दर्शन)) के अतिरिक्त हमेशा कुछ मेहमान जरूर शामिल होते हैं नीरज ,राज शोभित इस साल की होली के भागीदार थे ! हमेशा कि तरह पानी की निकासी बंद कर दी गई और शूरू हुआ गुलाल,रंग ,गुजिया,मस्ती ,और पानी का दौर ! जब यह दौर शुरू होता है तो मस्ती अपने उच्चतम शीर्ष पर होती है ,हमारे पानी वाले रंगों का स्टाक खत्म हो गया तो पून: केवल पानी वाले रंग के लिये शर्माजी की दुकान पहुँचे ! बहुत देर होली खेलने के बाद भाँग की याद आई :) ! मैंने और रैम्बो ने ठंडाई बनाने का कार्य शूरू किया ! करीब -2 पूरी भाँग डाल दी थी हमने ठंडाई में ! रात को अरूण अपने PDA पर Google पर भाँग पीने के तरीके खोज रहा था ! जो कि केवल एक निरर्थक प्रयत्न था !मगर हम सब लोगों को वाकई नहीं पता था कि कितनी मात्रा में इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिये !! 5 ग्लास ठंडाई के जब आपस में टकराये तो बडी जोर से पाँच् आवाजें भी आई - Cheers !!भाँग पीने और उसके उपरांत होने वाले नशे की कल्पना मात्र काफी उत्साहजनक थी ! हम लोग पीने के बाद फिर से बाहर बैठ गये और जब 10-15 मिनट तक कुछ भी नहीं हुआ तो सबका एक ही कथन था वो ये कि “कुछ भी नहीं होता भाँग पीकर नशा तो कुछ भी नहीं हुआ” मगर इस दौरान मुझे झपकी सी आने लगी तो मह्सूस हुआ कि कुछ असर होने लगा है ! सभी लोग कालोनी के होली महोत्सव के स्थान पर पहुँचे मगर मैंने सबको मना कर दिया ! लेकिन बाद में राज के आग्रह पर मैं भी चला गया ! इस समय तक नशा बहुत अच्छा मह्सूस हो रहा था ! मैं बिना किसी वजह के मुस्कुरा रहा था ! एक बार जब मैंने चौहान और रैम्बो को देखा तो हँसी खुद ब खुद आ रही थी ! अपने आप से नियंत्रण खोते हुए जान कर मैं स्वयं वापस आ गया था और मेरे पीछे-2 सभी लोग वापस आ गये ! डी-51 में प्रवेश करने के पश्चात सबसे पहला काम यह किया कि घर को अन्दर से ताला मार दिया गया! राज और शोभित के जाने के बाद अजय और उसके दोस्त भी चले गये ! मैं एक तरफ तो हँस रहा था और एक तरफ यह बोल रहा था कि Yesssssss मुझे चढ गई finally !! :) अभी तक तो केवल मैंनें हँसना शूरू किया था पर देखते ही देखेते सब लोग हँसने लगे ! बहुत जोर-2 से हँसने लगेगी हम सब और हम पाँचो के बीच अकेला नीरज ! उन कुछ 4-5 मिनटों के लिये तो ऐसा लगा जैसे चाह्ते हुए भी हँसी नहीं रूक रही है और यह अवस्था बहुत ही खूबसूरत है ! यह सब देखकर मैं सबके सामने बोल ही पडा “ Mission Bhang accomplished !! “ !
यह सबकुछ जितना मनोरंजक लग रहा था अचानक से यह मनोरंजन खत्म होने लगा ! हृदय गति तेज होने लगी शरीर में जकडन शूरू होने लगी ! मुझे कहीं न कहीं ये अह्सास और डर था कि भाँग की मात्रा अधिक हो गयी थी और ये शरीर की जकडन और दिमाग का दर्द उसी का परिणाम था शायद ! मैंने सबसे पहले सबको आगाह किया कि दोस्तो ज्यादा मत हँसो क्योंकि जैसी हालत हम लोग मह्सूस कर रहे थे वह् पहले कभी भी मह्सूस नहीं हुई थी ! लग रहा था जैसे आज दिमाग फट जायेगा , ब्लड प्रेशर ( रक्तचाप) इतना तीव्र था कि मेरे कानों के पीछे एक अजीब सी आवाज सुनाई दे रही थी जैसे बहुत सारी मधुमक्खियाँ भन्ना रही हैं ! कुछ लोगों ने उल्टियाँ करनी शूरू की तो उस पल के लिये मुझे नीरज का ध्यान आया ! एक क्षण के लिये दिमाग को नियंत्रण करके मैंने नीरज को सब लोगों की ओर से माफी माँगी ! मगर इतना भयावह मैंने पूर्व में कभी भी मह्सूस नहीं किया था ! पाँचो चेहरे ऐसे डरे हुए थे जैसे मौत सामने खडी हो ! शरीर और मस्तिष्क का कहीं भी कोई संपर्क नहीं था ! शरीर को इतना कष्ट और दर्द सहते हुए पहले कभी भी नहीं पाया था :( !
किसी तरह से पानी के नल के नीचे पहले अपना सिर धोया फिर चौहान और रैम्बो का ! सेल्वा सो चुका था और अरुण किसी गहरी सोच में था ! मैं एक –एक पल को जैसे गिन रहा था कि जल्दी खत्म हो जाये ये सब ! मैं पूरे दो घंटे बाथरूम से लेकर बाहर के कमरे तक घूमता रहा और केवल दो-तीन बातें ही सोचता रहा एक तो यह कि ऐसी बुरी मौत नहीं मरना चाहता था ! घर वाले बार-2 याद आ रहे थे कि अगर ऐसे मर गये तो घर वालों के लिये कितनी शर्म की बात होगी ! दूसरी जो सबसे मह्त्तव्पूर्ण बात याद आ रही थी वो ये कि हमें अपनी हदें पार नहीं करनी चाहिये ! हर चीज का प्रयोग करके ही हम सबक नहीं सीख सकते ! कभी-2 पहला प्रयोग ही भयानक और जानलेवा हो सकता है !
नीरज ने दो-तीन बार बोला कि भैया आप सो जाओ मगर जैसे ही सोने की कोशिश की तो पूरा शरीर नीला नजर आन लगा ! मुझे डर लगने लगा था कि अगर हम पाँचो में से किसी एक की भी मृत्यु हो गयी तो डी-51 का ये प्यारा संसार तो बर्बाद हो जायेगा ! आखिरी मुक्ति का साधन हमेशा कि तरह कुल-देवता की शरण नजर आने लगी तथा आखिरी प्रार्थना कि “हे ईश्वर आज हम पाँचों को बचा ले और जीवन में कभी भी ऐसी राह नहीं चुनेंगे” ! मेरे हृदय के उपर ऐसा मह्सूस हो रहा था जैसे कुछ आग का गोला जल रहा हो ! जब शरीर के लिये यह कष्ट असहनीय हो गया तो बीच में मैने अरूण और रैम्बो से यह तक पूछ डाला कि क्या हमें एम्बुलैंन्स बुलाना चाहिये ! मगर दोनों ने ही मना कर दिया ! चौहान ने तो माताजी और पिताजी को याद कर लिया था जैसे मृत्यु समीप आ चुकी होगी ! अरूण ओशो कि कोई किताब लेकर पढने की कोशिश कर रहा था मगर ऐसी हालत में पढ पाना सम्भव ही नहीं था सो उसने पढना भी छोड दिया ! एक बात सच है कि कभी भी ऐसा नहीं लगा कि हम लोग धरती पर हैं कहीं धरती और आसमान के बीच में जैसे जान अटकी पडी थी जैसे ! अरूण कह रहा था कि “this is a spiritual phase” .सच में घर के बाहर के वातावरण और अन्दर चल रहे गीत दोनों ही अलग-2 दुनिया के हिस्से लग रहे थे ! परंतु शरीर और मस्तिष्क का इतना विक्षित रूप कभी कल्पना भी नहीं की थी !
किसी तरह 5-6 घंटे में जब मुझे अपनी बाल्कनी से नीचे सडक पर खेलते बच्चों की आवाज सुनाई देने लगी उसके बाद ही मैं यह मह्सूस कर पाया कि शायद हम सब की जान बच गई ! भाँग पीने के अपने इस निर्णय पर बहुत ही शर्म व ग्लानि मह्सूस होने लगी थी ! अगर सच बोला जाय तो अपने जीवन के सबसे बडी गलती बोल सकता हूँ इस घटना को मैं ! भाँग का यह नशा हम सब पर कम से कम 24 घंटे हावी रहा ! एक बात जो कि अवश्यंभावी थी वो यह कि हम पाँचों तो जिन्दगी में ऐसा कभी फिर नहीं करेंगे !
इस लेख को लिखने का मक्सद भी केवल इतना था कि एक संदेश दे सकें कि अपनी हदों को खुद ब खुद पहचानना जरूरी है और ऐसा कोई भी प्रयोग ना करें जो आपको ग्लानि से भर दे या जो आपको उस प्रयोग का विवरण करने तक का मौका न दे ! और जीवन साधारण अवस्था में जितना खूबसूरत है उतना खूबसूरत कहीं नही !
Darshan Mehra
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