

Darshan Mehra
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पहला दिन था मैं ट्यूशन लेने के लिये पहुँचा,शिक्षक से भिज्ञ भी नहीं था मैं,बस ये जानता था कि उनका नाम “श्री महेश तिवारी” हैं और वो मेरे बडे भाई के स्कूल में पढाते हैं ! उनके घर पहुँचा तो शिक्षक कम “शास्त्रीय संगीतकार” ज्यादा लग रहे थे ! उनके 12 X 10 के कमरे में एक छोटी सी चारपाई और उस पर तबला ,एक हार्मोनियम बहुत सारी संगीत से सम्बन्धित पुस्तकें और एक “टेप रिकार्डर” और काफी सारी कैसेट,ये सारा सामान पडा था ! एक अजीब सी परम्परा थी यहाँ पर , सारे छात्र तब तक चुपचाप से बैठ जाते थे जब तक कि सवा आठ न बज जाये ! “तिवारी सर” आंखें बन्द किये शास्त्रीय संगीत में मुग्ध उसी धुन पे तबला या फिर हार्मोनियम बजा रहे होते जो धुन “टेप रिकार्डर” पर चल रही होती थी ! “तिवारी सर” की तल्लीनता देख कर ये बात जरूर समझ आती थी कि वो परालौकिक आनन्द की अनुभूति कर रहे हैं इस लोक की करनी और कर्ता से उनको कम से कम उस वक्त कोई भी फर्क नहीं पडता था !
कई दिनों से गणित में गुणनखंड (factors) के आखिरी अध्याय में फँसा हुआ था मैं ! शेषफल प्रमेय (Remainder theorem ) का तोड निकालने की बहुत कोशिश कर चुका था मगर हर बार नई परेशानी आ जाती थी ! ये सौभाग्य था या नहीं कि टयूशन के पहले दिन ही “शेषफल प्रमेय” पर कक्षा चल रही थी ! मैं तो “तिवारी सर” की सादगी से बहुत प्रभावित हुआ और जैसे ही उन्होने पढाना शुरू किया तो इतने दिनों कि मेरी परेशानी यनि “शेषफल प्रमेय” का ऐसा निदान दिया कि मैं कभी भी नहीं भूल सकता था ! बात यहाँ पर केवल एक शिक्षक की नहीं है वरन एक ऐसे इन्सान की है जो कि आपको सही राह भी दिखाये ,जो स्वयं में “बहुत अच्छा इंसान “ भी हो ,जो आपको सही मार्गदर्शक की तरह सच्चे पथ पर अग्रसर भी करे ! तिवारी सर सबके “परिजनों “ से मिलते ,बच्चे की अच्छी – बुरी-बातों पर ध्यान आकर्षित करते !

उनकी निगरानी केवल उस एक् घंटे के अंतराल पर ही नहीं रहती थी जब कि वो पाठन कराते थे ,मगर घर में हम कितना पढते हैं,क्या पढते हैं इस सब पर भी निगरानी रहती थी ! पापाजी से उस काँलम पर हस्ताक्षर करवाने होते थे जहाँ हमारे सुबह उठने से लेकर रात्री सोने तक का विवरण होता था !
    सबसे प्रभावी बात जो मुझे लगती है वो यह थी कि “ज़ितना विश्वास  सर को हमारी काबिलियत पर होता था वो हमारे खुद के विश्वास से कहीं अधिक होता था “ और कहीं ना कहीं ये प्रबल इच्छा रहती थी कि उनके विश्वास के लिये ही सही “कुछ कर दिखाना है  “ :) ! 
   दो  वाक्य हमेशा याद रह्ते हैं सर के !
o        यार तुम लोग सफल हो जाओ तो मुझे तो बस एक “बताशा” खिला देना बस ! 
o        “मेहरा” 100 नम्बर की मत सोचो 120 नम्बर की सोचो तब कहीं 100 नम्बर आयेंगे !
        स्कूल की शिक्षा और कालेज के दिनों में एक स्पष्ट अंतर नजर जो  आता है तो वो ये कि “स्कूल के दिनों के वो प्रेरक शिक्षक कालेज पहुँचते हुए गायब से हो जाते हैं “ ! कम से कम मेरा अनुभव तो यही बोलता है ! स्कूल के समय में “तिवारी सर” जैसे कई गुरूजन हुए जैसे “नन्दनी मैडम” ,”अग्रवाल सर” ,”शर्मा सर” ,”कडाकोटि सर“ और “चौधरी सर” जिनके विचार आज भी प्रभावित करते हैं ! मगर ऐसे शिक्षक आगे न मिले !
कुछ छात्रों को एक दिन “तिवारी सर” समझा रहे थे कि “ खुद को कम महसूस करोगे तो कम ही रहोगे,खुद को शेर समझो , हर इंसान किसी चीज को दो तरह से पा सकता है , या तो उसमें सम्बन्धित गुर हो या फिर वो मेहनत करे उस गुर को हासिल करने के लिये ! तो एक मनोधारणा तो बना ही लो कि आप सब “सर्वश्रेष्ठ” हो लेकिन ध्यान रहे आप अहंकारी न हो जाओ ! “ कहीं न कहीं ये कथन पथप्रदर्शक बना हुआ हमेशा उन पलों में मेरी मदद करता है जब मेरी उर्जा कम होती है!मुझे लगता है कि ये सौभाग्य ही था कि ऐसे गुरु हमें मिले जिन्होंने सही मायने में “कुम्हार की तरह कच्चे घडे का आकार देने का कार्य “ किया ! शिक्षा का मतलब “तिवारी सर” के लिये केवल अच्छा पेशेवर बनना नहीं था बल्कि एक अच्छे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण सर्वोपरी था !
तिवारी सर की “गुरू दीक्षा” और प्रेरणा का ही ये परिणाम रहता है कि एक साधारण छात्र / छात्रा बोर्ड के पेपरों में कमाल का परिणाम देने में सफल हो जाता हैं और मैं खुद उनकी इस गुरू दीक्षा का भोगी हूँ :) !
    “तस्मै श्री गुरूवै नम: “ वाक्यांश असल में “तिवारी सर” सिद्ध करते आये हैं !
आज तिवारी सर से मिलो तो सहर्ष ही सम्मान में उनके आशिर्वाद लेने में जो हार्दिक खुशी होती है वो अवर्णीय है और वो अपने "कुम्हार" रूप में नये घडों को आकार देने के मुहिम में सदैव की तरह अडिग होकर कार्यरत रहते हैं !
आप इस लेख को पढने के बाद उन सभी गुरूओं के लिये कृतज्ञता मह्सूस करें जो आपके जीवन में बहुत अहम थे जिन्होनें आपके व्यक्तित्व और चारित्रिक निर्माण में “कुम्हार” के समान योगदान दिया !
आप सभी को “शिक्षक दिवस “ की ढेर सारे शुभकामनायें !!
Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com
 मैंने  उसकी अनुरोध पर विश्वास करते हुए अपना धन्यवाद प्रकट किया और अपनी सीट से उठा और चलने को बना ही था की पीछे से उस युवती की आवाज आयी " Happy New Year Sir" "आपका नया साल शुभ हो " ! उस क्षण के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे पूरे दिन भर का बुरा अनुभव ख़त्म हो गया ! जैसे हमें कभी-कभी किसी अनजान इंसान से मिलने के बाद अपार खुशी होती है ! बाद में मेट्रो से आते हुए मैं बस यही सोचता रहा की कभी-कभी हम किसी अनजान इंसान से भी काफी कुछ पा जाते हैं और काफी कुछ सीख भी जाते हैं  ! ठीक आधे घंटे में मेरा फोन चल गया और घर (D-51) आकर मैंने चौहान और रैम्बो को उस युवती और आज के दिन का वर्णन किया और उनको ये भी बताया की मेरे नए साल की पहली शुभकामना भी मुझे मिल चुकी ! और मुझे यकीन है की मेरा नया साल अवश्य शुभ होगा !!
          मैंने  उसकी अनुरोध पर विश्वास करते हुए अपना धन्यवाद प्रकट किया और अपनी सीट से उठा और चलने को बना ही था की पीछे से उस युवती की आवाज आयी " Happy New Year Sir" "आपका नया साल शुभ हो " ! उस क्षण के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे पूरे दिन भर का बुरा अनुभव ख़त्म हो गया ! जैसे हमें कभी-कभी किसी अनजान इंसान से मिलने के बाद अपार खुशी होती है ! बाद में मेट्रो से आते हुए मैं बस यही सोचता रहा की कभी-कभी हम किसी अनजान इंसान से भी काफी कुछ पा जाते हैं और काफी कुछ सीख भी जाते हैं  ! ठीक आधे घंटे में मेरा फोन चल गया और घर (D-51) आकर मैंने चौहान और रैम्बो को उस युवती और आज के दिन का वर्णन किया और उनको ये भी बताया की मेरे नए साल की पहली शुभकामना भी मुझे मिल चुकी ! और मुझे यकीन है की मेरा नया साल अवश्य शुभ होगा !! हमको जब यह पता चला कि भाँग के भी सरकारी ठेके होते हैं तो मेरे दिमाग में तो यह खयाल आ रहा था कि हम कई दिनों से ढूँढ रहे थे मगर यह तो बहुत आसानी से हासिल हो गया ! यहाँ पर यह बताना बहुत जरूरी है कि हम लोग यानि डी-51 के योद्धा केवल एक बार इस भाँग पीने के प्रयोग से गुजरना चाहते थे वरना हम भँगेडी नहीं हैं :) ! आखिरकार हमको भाँग का ठेका तो मिल गया मगर पता नहीं था कि कितनी मात्रा में लेना चाहिये और कैसे ! एक अजीब सी झिझक थी दुकानदार से पूछने के लिये मगर थोडी देर सारे ग्राहकों को ध्यान से देखने के बाद हमको भी समझ आ गया कि “हाथों कि मेंहन्दी के समान ” यह हरे से पत्तों का पिसा हुआ मसाला ही भाँग है जो कि 20-20 रू में एक ढेली मिल रही थी ! लोगों को देखने के और सोच विचार् के पश्चात हमने रू 50 की भाँग ली और खुशी से रैम्बो को फोन पे बताया ! हमेशा की तरह रैम्बो की असंतुष्ट आत्मा नही मानी और् उसके कहने पर हमने फिर से रू 50 की भाँग ले ली ! एक अंकल जी से पूछा कि भाँग कैसे खाते हैं तो उन्होने बहुत ही दयालु व सरल भाव से बताया कि “मैं तो भाँग को ऐसे ही खा जाता हूँ और उसके पश्चात पानी पी लेता हूँ” यह तरीका मुझे तो अच्छा नहीं लगा किसी भी तरह से उपर से हँसी और आ गयी इस बात पर :) !
हमको जब यह पता चला कि भाँग के भी सरकारी ठेके होते हैं तो मेरे दिमाग में तो यह खयाल आ रहा था कि हम कई दिनों से ढूँढ रहे थे मगर यह तो बहुत आसानी से हासिल हो गया ! यहाँ पर यह बताना बहुत जरूरी है कि हम लोग यानि डी-51 के योद्धा केवल एक बार इस भाँग पीने के प्रयोग से गुजरना चाहते थे वरना हम भँगेडी नहीं हैं :) ! आखिरकार हमको भाँग का ठेका तो मिल गया मगर पता नहीं था कि कितनी मात्रा में लेना चाहिये और कैसे ! एक अजीब सी झिझक थी दुकानदार से पूछने के लिये मगर थोडी देर सारे ग्राहकों को ध्यान से देखने के बाद हमको भी समझ आ गया कि “हाथों कि मेंहन्दी के समान ” यह हरे से पत्तों का पिसा हुआ मसाला ही भाँग है जो कि 20-20 रू में एक ढेली मिल रही थी ! लोगों को देखने के और सोच विचार् के पश्चात हमने रू 50 की भाँग ली और खुशी से रैम्बो को फोन पे बताया ! हमेशा की तरह रैम्बो की असंतुष्ट आत्मा नही मानी और् उसके कहने पर हमने फिर से रू 50 की भाँग ले ली ! एक अंकल जी से पूछा कि भाँग कैसे खाते हैं तो उन्होने बहुत ही दयालु व सरल भाव से बताया कि “मैं तो भाँग को ऐसे ही खा जाता हूँ और उसके पश्चात पानी पी लेता हूँ” यह तरीका मुझे तो अच्छा नहीं लगा किसी भी तरह से उपर से हँसी और आ गयी इस बात पर :) !  भाँग पीने और उसके उपरांत होने वाले नशे की कल्पना मात्र काफी उत्साहजनक थी ! हम लोग पीने के बाद फिर से बाहर बैठ गये और जब 10-15 मिनट तक कुछ भी नहीं हुआ तो सबका एक ही कथन था वो ये कि “कुछ भी नहीं होता भाँग पीकर नशा तो कुछ भी नहीं हुआ” मगर इस दौरान मुझे झपकी सी आने लगी तो मह्सूस हुआ कि कुछ असर होने लगा है ! सभी लोग कालोनी के होली महोत्सव के स्थान पर पहुँचे मगर मैंने सबको मना कर दिया ! लेकिन बाद में राज के आग्रह पर मैं भी चला गया ! इस समय तक नशा बहुत अच्छा मह्सूस हो रहा था ! मैं बिना किसी वजह के मुस्कुरा रहा था ! एक बार जब मैंने चौहान और रैम्बो को देखा तो हँसी खुद ब खुद आ रही थी ! अपने आप से नियंत्रण खोते हुए जान कर मैं स्वयं वापस आ गया था और मेरे पीछे-2 सभी लोग वापस आ गये ! डी-51 में प्रवेश करने के पश्चात सबसे पहला काम यह किया कि घर को अन्दर से ताला मार दिया गया! राज और शोभित के जाने के बाद अजय और उसके दोस्त भी चले गये ! मैं एक तरफ तो हँस रहा था और एक तरफ यह बोल रहा था कि Yesssssss मुझे चढ गई finally !! :) अभी तक तो केवल मैंनें हँसना शूरू किया था पर देखते ही देखेते सब लोग हँसने लगे ! बहुत जोर-2 से हँसने लगेगी हम सब और हम पाँचो के बीच अकेला नीरज ! उन कुछ 4-5 मिनटों के लिये तो ऐसा लगा जैसे चाह्ते हुए भी हँसी नहीं रूक रही है और यह अवस्था बहुत ही खूबसूरत है ! यह सब देखकर मैं सबके सामने बोल ही पडा “ Mission Bhang accomplished !! “ !
भाँग पीने और उसके उपरांत होने वाले नशे की कल्पना मात्र काफी उत्साहजनक थी ! हम लोग पीने के बाद फिर से बाहर बैठ गये और जब 10-15 मिनट तक कुछ भी नहीं हुआ तो सबका एक ही कथन था वो ये कि “कुछ भी नहीं होता भाँग पीकर नशा तो कुछ भी नहीं हुआ” मगर इस दौरान मुझे झपकी सी आने लगी तो मह्सूस हुआ कि कुछ असर होने लगा है ! सभी लोग कालोनी के होली महोत्सव के स्थान पर पहुँचे मगर मैंने सबको मना कर दिया ! लेकिन बाद में राज के आग्रह पर मैं भी चला गया ! इस समय तक नशा बहुत अच्छा मह्सूस हो रहा था ! मैं बिना किसी वजह के मुस्कुरा रहा था ! एक बार जब मैंने चौहान और रैम्बो को देखा तो हँसी खुद ब खुद आ रही थी ! अपने आप से नियंत्रण खोते हुए जान कर मैं स्वयं वापस आ गया था और मेरे पीछे-2 सभी लोग वापस आ गये ! डी-51 में प्रवेश करने के पश्चात सबसे पहला काम यह किया कि घर को अन्दर से ताला मार दिया गया! राज और शोभित के जाने के बाद अजय और उसके दोस्त भी चले गये ! मैं एक तरफ तो हँस रहा था और एक तरफ यह बोल रहा था कि Yesssssss मुझे चढ गई finally !! :) अभी तक तो केवल मैंनें हँसना शूरू किया था पर देखते ही देखेते सब लोग हँसने लगे ! बहुत जोर-2 से हँसने लगेगी हम सब और हम पाँचो के बीच अकेला नीरज ! उन कुछ 4-5 मिनटों के लिये तो ऐसा लगा जैसे चाह्ते हुए भी हँसी नहीं रूक रही है और यह अवस्था बहुत ही खूबसूरत है ! यह सब देखकर मैं सबके सामने बोल ही पडा “ Mission Bhang accomplished !! “ !