18th अक्टूबर ..

on Friday, December 11, 2015
कुछ तो स्पेशल है इस डेट में .. 18th अक्टूबर ..अगर आपको पूछा जाय की जिंदगी का एक दिन बताओ जो सबसे बड़ा माईल स्टोन हो तो हमारे लिए तो यही दिन रहा ..18th अक्टूबर .. 14 साल पहले इसी दिन उस गेट के अंदर एंट्री ली जिसने न केवल प्रोफेशनल जिंदगी के बीज बोये परन्तु व्यक्तिगत जिंदगी के आसमाँ के विस्तार को बढ़ा दिया ..
कंप्यूटर लैब में सहपाठी ने यहीं ये सीखाया की "भाई अगर कहीं पर भी फँस जाओ तो "Escape" बटन दबा दो :)" , यहीं ये भी आभास हुआ की कुछ हो जाए मगर सन्डे ...का ब्रेकफास्ट मिस नहीं करना वरना मेस में इकलौते खाने लायक भोजन अर्थात आलू के परांठे सीधे अगले हफ्ते मिलेंगे .. दोस्त के बीमार पढ़ने पर उसके लिये मेस से खाना ले जाने का अघोषित नियम आपको और कहीं नहीं सिखाया जा सकता ..उस हॉस्टल में माँ-बाप भाई (बहन नहीं बोल सकता ;)) सबकुछ तो ये कमीने दोस्त ही होते थे .. सुबह के 3 बजे उठकर बमुश्किल खाली मिली टेबल पर टीटी सीखना हो या कालेज की बाउंड्री लाँद कर बाहर के ढाबे पर डिनर करना .. एक दोस्त का दूसरे दोस्त को सेमेस्टर एग्जाम से पहली रात को ये पूछना की " यार सेलेबस बता दे क्या-2 पढ़ूँ ताकि पास हो जाऊँ " ये भी इस कालेज की सामाजिक संस्कृति का हिस्सा था .. वैसे शुरुवाती दिनों में सबसे अच्छी बॉन्डिंग होने के पीछे अगर किसी चीज का सबसे अहम् रोल था तो वो था शुद्ध (अ) शाकाहारी जोक्स ..देहरादून से लेकर दिल्ली ,मुरादाबाद से लेकर खटीमा ,रानीखेत से लेकर हल्द्वानी ,और हरिद्वार से लेकर टिहरी हर शहर के शुद्ध जोक्स वरना आपस में कैसे मिल पाते अकल्पनीय है ;) ..


मुहब्बत की बारीकियां हो या लगातार 3 दिनों तक चलता कानफोडू स्वर में बजता गीत " हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी " , ग़ज़लों के लिरिक्स का ज्ञानपूर्ण एनालिसिस हो या फिर ऑडिटोरियम में परदे पर चल रहे 2003 वर्ल्ड कप के मैच में शोएब और वकार पर थर्ड मैन की ओर सचिन और वीरू द्वारा लगाए छक्के और उसके बाद कुर्सियों पर चढ़कर किया गया पागल नृत्य .. कितनी सारी विधाओं में आपको कालेज पारंगत कर देता है .. कुछ मित्र कालेज में ही करवा चौथ का व्रत लेना और गर्ल्स हॉस्टल के सामने अपने प्रियतम को पानी पीलाने की विधा भी सीख गए और कुछ तो अबब एस्पेक्टशन की हर वर्ष नया प्रियतम ;) ..
साले सारे खुद को हीरो समझने वाले लौंडे ( ;) ) आख़िरी दिन ऐसे गलाफोड़ रोते हैं जैसे जीवन का अंत सामने हो .. वैसे लगता ये ही था .. खैर वक्त अपने पहिये को समान गति से आगे बढ़ाता चलता है .. प्रियतमों ने नये शौहर पा लिए ,दोस्तों में कुछ ही हैं जो आपके आसमाँ के नीचे संग धूप सेकते मिलते हैं.. टीटी की टेबल देखे ज़माना हुआ और संडे के आलू के परांठे अब उतने कच्चे नहीं होते , गजलें कभी-2 अपनी बोलों से आपको उन टेबल लैम्पों के उजाले की याद दिला देती है..पर एक विश्वास जो हमेशा से था और रहेगा और शायद नए बच्चे ये जान लें की "कालेज और उसके ऊपर हास्टल में जीवन का वो हिस्सा पलता है जो हर किसी को जरूर मिलना ही चाहिए ..सौभाग्य ही होगा .. व्यक्ति विकास की सबसे अहम् सीढी है वो "

आज के ही दिन वो दौर 14 साल पहले शुरू हुआ था , ऐ खुदा एक बार कभी फॉलो ओन ही सही पर सेकंड इनिंग्स खेलना का मौक़ा तो दे डाल :). 

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