इरा ...

on Friday, December 11, 2015
कुछ अजनबी आपको जीवन के कई गुर देकर जाने कहाँ ग़ुम हो जाते हैं .. जहाँ हम क्लाइंट के डेटा को सिक्योर करने की बात कर रहे होते अचनाक वो बोला " दर्शन माय फ्रेंड ,किड्स आर द मोस्ट ब्यूटीफुल पार्ट ऑफ़ ए मैरिज " , उसके घर "सरस्वती ने जन्म लिया है .. लक्ष्मी कहना थोडा खटकता है मुझे ..बच्चे के जन्म से ही धन-धान्य का प्रतीक बनाना खटकता सा है ..वैसे भी हॉस्टल पहुँचने के बाद जब पापा जी ने पूछा की कल वापस जाते व...क्त एक बार फिर आऊंगा तो कुछ और सामान लाना तो नहीं है ...??
हाँ ले आईयेगा "एक छोटी सीे माँ सरस्वती का फ़ोटो फ्रेम और एक लोहे का संदूक " .. माँ सरस्वती तब से अपने लिए इक कोना उसके बाद से मेरे हर घर में ढूंढ़ के विराजमान हो हीं जाती हैं ..मैं कहना चाह रहा था की सरस्वती जी के लिए मैं थोड़ा बायस्ड हूँ ..

सच है बच्चे शादी का सबसे सुन्दर हिस्सा हैं बल्कि जीवन का भी.. कई सालों के निरर्थक विचारों का एन्ड-प्रोडक्ट ये निकला की जीवन के शायद ये तीन मूल उद्देश्य हैं ..

i. क्वालिटी सर्वाइवल ( जीवन शैली-सिर्फ भौतिक मापदंडों से मतलब नहीं ) 
ii. री-प्रोडक्टिविटी ( प्रकृति को ऋण वापसी ;))
iii. ब्रह्म प्राप्ति ( वो क्या कहते हैं हां ,आत्मा से परमात्मा का मिलन )

अब प्रभु तो कैसे मिलेंगे इसका प्रयास परस्पर जारी है और अनिश्चित है , बाकी दो टिक लगते नजर आ रहें हैं यहाँ .. जी हाँ सही समझे , शादी का सबसे सुन्दर हिस्सा यानि बच्चे और एक ऐसे ही ईश्वरीय देन का जन्म हुआ है मेरे यहाँ .. अभी खुशी और नई जिम्मेवारी की द्वीतरफा ढोलकी बजा रहा हूँ मैं .. ईश्वर के बाद अगर किसी को सबसे ज्यादा धन्यवाद मैं कहना चाहता हूँ तो वो है मेरी आत्मीय दोस्त ,हमसफ़र और पत्नी Poonam ..
 
जितनी सिंसरिटी और आत्मीयता से तुमने पिछले 8-9 महीनों में खुद का और इस नये जीवन का ख्याल रखा है उससे मेरा सभी "माँओं " के लिए कर्तज्ञता व सम्मान कई गुना बढ़ गया है ...
मौक़ा दार्शनिक होने का कपितु नहीँ है पर विचारों को जिन्न की तरह बोतल में समेट कर रखना नामुमकिन है  :)...

"मेघालय" में "गारो" कम्युनिटी अचानक से सबसे ज्यादा बुद्धिजीवी लगने लगे हैं मुझे.. इस कम्युनिटी में "माँ" परिवार की मुखिया होती है ..और पुरुष-प्रधान समाज के एकदम उलट जीवन शैली .. बरसों पुराने लोहे के संदूक के एक कोने पर छिपा के रखा हुआ यक्ष-प्रश्न है ये .. "पुरुषों को क्यों और किसने परिवार का मुखिया या फिर डिसीजन-मेकर का ओहदा दिया होगा ?? ओबएश्ली पुरुषों ने खुद ही दिया होगा ..
माँ न केवल 9 महीने तक अपने गर्भ में बच्चे को बाहरी दुनिया की चिलचिलाती धूप समान यथार्थ के ताप से छाया प्रदान करती है वरन उस बच्चे के बडे होने तक हर पल उसका दुखहर्ता-सुखकर्ता बनके "जगदीश हरे" बनी रहती है .. पुरूषों से कोई शत्रुता नहीं है मेरी,पर पारिवारिक जिम्मेदारी का जितना लोड महिला उठाती है पुरुष उस अनुपात में कहीं कम .. और जब दोनों पति-पत्नीे प्रोफेशनल हैं तो समान आर्थिक जिम्मेदारी भी महिला निभातीे है तो ये और भी आवश्यक सा लगता है की क्यों ना "गारो जनजाति" सा महिला प्रधान समाज का शुभारम्भ किया जाय :)..फेमिनिस्ट नहीं बोलिए जस्ट निजी विचार ..खैर इस विषय पर फिर कभी .. अभी तो सिर्फ इतना " मेरे घर आयी एक नन्ही परी "

शुक्रिया खुदा और पूनम :)

( .."अब ये मत समझना की इस मुश्किल क्षण में मैं ये सब लिख रहा हों कुछ दिन पहले ही तैयारी कर ली थी" ..

0 comments:

Post a Comment