पैसन ....

on Monday, January 25, 2010
पहला प्यार ??? सबको याद होगा कुछ न कुछ मुझे भी याद है भलीभांती !!
..स्कूल के दिन ,जल्दी पहुँचने की लालसा ! प्रेयर(प्रार्थना ) से पहले कुछ समय के लिए ही सही केवल दर्शन ही हो जाए बस यही एक विचार उस बाल मन को रोमांचित कर देता था ! करीब 4 -5 किमी. के पैदल यात्रा क बावजूद इतनी ऊर्जा रहती थी कि ग्राउंड में जाकर पूरी जी जान से खेल सकूं ! जी हाँ "क्रिकेट" मेरा पहला प्यार ! मैं शायद 8 - 9 साल का था और मुझे चाचा लोगों के बीच क्रिकेट से सम्बंधित गुफ्तगू में जो मजा आता था वो सोचकर अभी तक मन हर्षित हो जाता है ! वैसे हिन्दस्तानी होकर क्रिकेटर बनने का सपना कौन नहीं रखता है, इस से सस्ता सपना बिकता भी नहीं शायद :) ! मगर इसमें गलत क्या है ,हमें यानि किसी भी भारतीय को " और किस क्षेत्र का इस से ज्यादा एक्सपोजर मिलता है ? "  

    एक बात तो है कि क्रिकेट ग्राउंड के भीतर पहुंचते ही जैसे एक अद्धभुत सी स्फूर्ति पुरे दिलो-दिमाग और शरीर पर छा जाती थी ! मुझे सीनियर टीम  में आने की जल्दी थी और मेरे व्यक्तित्व में हमेशा ये रुख रहा कि किसी भी टीम में वो जगह लो, जहां सबसे ज्यादा काम करना पढ़ता हो और जहां सबसे ज्यादा महत्ता मिले :) .बैटिंग पर ध्यान दिया और विकेट कीपिंग के दस्ताने पहने ! सच में जो लगन थी इस गेम क लिए उसने जादू कर डाला ! बहुत जल्दी सीनियर टीम का सदस्य बन गया और इसी क्रम में एक दिन किसी लोकल टूर्नामेंट में खेलने वाली बड़ों की टीम में मेरा भी नाम आ गया ! 
             मैच से कुछ ३-४ दिन रोज से सपने भी क्रिकेट ग्राउंड के ही आने लगे ! मैं 11-12  साल की उम्र में बढों की टीम से पहली बार किसी टूर्नामेंट में खेलने वाला था ! कपिल देव को शायद तिरासी का वर्ल्ड कप जीतने के इतनी खुशी न हुई हो जितना में अपने इस मैच के लिए खुश था :) ! इससे पहले एक बात और जानने की है कि एक बार मेरे बड़े भाई ने एक जूनियर टूर्नामेंट में खेलने वाली टीम से मेरा और मेरे चचेरे भाई का नाम आख़िरी समय पर  केवल इसलिए कटवा दिया था, क्योंकी 11 की टीम में 4 लोग हमारे ही परिवार से हो रहे थे ! करीब डेढ़ घंटे की मैराथन दौड़ने  के बाद जब हम क्रिकेट ग्राउंड पर पहुंचे तो बहुत रोये पुरे मैच में रोये ,और मन ही मन ये भी प्रार्थना करते रहे कि भगवान् मेरे भाई कि टीम(जो कि इस मैच से पहले मेरी भी थी) हार जाय और हुआ भी ऐसा ही :) ! 
               2 दिन बचे थे सीनियर टूर्नामेंट के और एक दुर्घटना घटी ,शायद मेरी व्याकुल "उत्सुकता" को ये सबक सिखाया गया था कि "जमीन पर रहो बेटा " ! राह चलते हुए मुझे किसी पत्थर से ठोकर लगी और मेरी चप्पल जा निकली और शायद पिछली रात के किसी "देवदास" द्वारा तोडी गयी बोतल के कांच को मेरे पैर के नीचे आने का बहाना मिल गया ! घाव गहरा था ,खून बह रहा था ,दर्द इस बात का ज्यादा था कि परसों मेरा मैच है और मुझे विकेट कीपिंग करनी हैं ! मनुष्य की आख़िरी शरण ईश्वर ही होता है चाहे कोई अपने को आस्तिक कहे या नास्तिक ! "दीवार " के अमिताभ को भी आखिरकार जाना ही पडा था मंदिर में और उसकी ही परिणिती है कि हर भारतीय के पर मुख जाने-अनजाने ये डायलाग आ ही जाता है  "खुश तो बहुत होगे तुम आज :) " ! मैंने भी प्रार्थना की,कि भगवान् 2 दिन में घाव ठीक कर दे ! मगर ऐसा होना कहाँ था !  प्रकृति अजेय है, मनुष्य कितनी भी कोशिश कर ले प्रकृति को हरा पाना न ही कभी संभव था न ही कभी होगा !  पर निष्ठा और लगन में मैंने कमी न होने दी और पैर पर पट्टी बंधे हुए और "पेन किलर" लेकर ही वह मैच खेला !जिसके बाद घाव ऐसा बिखरा कि हफ्ते भर के लिए लंगडी टांग(एक पैर पर चलना) करते हुए सारे दिन निकाले गये ! २ दिन तक तो बहुत ज्यादा बुखार रहा ! घर पर मरहम और प्यार तो मिला मगर बहुत डांट भी पडी ! मगर प्यार तो प्यार है उसमें छोटे मोटे गम क्या मायने रखते हैं ?

क्रिकेट और उसका जूनून ही था क्लास 3rd या 4th में सुबह के 3 बजे उठकर ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के 92 का वर्ल्ड कप के मैच देखने बैठ जाता था !सर्दियों की छुट्टियों में सुबह 8 बजे ग्राउंड में पहुँच जाते थे और कम से कम 3 मैच जरूर खेले जाते थे ! शाम के 5 बजे तक हालत यह होती थी कि खुद के शरीर को ढोना भारी पढता था मगर खेल का जूनून कम न होता !शरीर एक अजीब सी थकावट महसूस करता था मगर दिमाग का ये सिग्नल समझ नहीं पाता था कि "भूख काफी जोर से लगी हुई है " !
      
          बाद में स्कूल से कालेज और कालेज से आफिस ये क्रिकेट प्रेम का सिलसिला कभी थमा नहीं ! वैसे सच कहूं तो स्पोर्ट्स एक ऐसे विधा है जो संगीत की ही तरह विशुद्ध है ! ग्राऊंड के अन्दर पहुँचते ही जिस किस्म का फोकस और लगन होती हैं वो शायद कभी भी नहीं,कहीं भी नहीं होती ! भाग्यशाली हूँ की ऐसी जगह काम करता हूँ जहां स्पोर्ट्स को बहुत महत्ता मिलती हैं राष्ट्रीय टेनिस टूर्नामेंट को मेरी ही company करवाती है तो साल में एक क्रिकेट टूर्नामेंट जरूर होता है ! पिछले 3 वर्षों से हमारी ही टीम फाईनल जीतेते आ रही है !  मैंने विकेट कीपर के दास्ताने कब के त्याग दिए और पिछले साल पूरी टूर्नामेंट का बेस्ट फिल्डर का आवार्ड "पॉइंट" की फिल्डिंग करके लिया ! इस वर्ष के पहले ही मैच में दायीं ओर कूंद  मारते  ही दांया कंधा तुड़वा लिया और दूसरे मैच में टूटे कंधे से ही खेला और फिर दुर्भाग्य से बांया कंधा तुड़वा लिया ! मेरी टीम फाईनल तक भी नहीं पहुँच पायी मेरा फिट न होना भी एक बड़ा कारण बना ! दिल टूटना जायज था ! मगर प्यार तो प्यार होता है ! 

लेकिन ये क्या हुआ ,मेरे ऑफिस की मेल में मुझे टॉप 14 खिलाड़ियों में चुना गया था जो के "Turf Management  Tournament " में कंपनी की टीम में खेलेंगे ! मेरे आफिस से 3 खिलाड़ी और थे ! शनिवार के सुबह प्रेक्टिस सेसन तय था और मुझे काफी सारे  मिस्काल  आये हुए थे ! मूड काफी खराब था ,काफी सोचने के बाद निर्णय लिया कि फिटनेस जरूरी है ! दोनों कंधे अभी भी दर्द कर रहे हैं ! सो एक SMS ही करना था और वो कुछ इस किस्म का था  " due to fitness problem  I  will  not participate in inter corporate cricket tournament :( " .

और इसके साथ ही दिल टूट गया :( .....

मुफ्त की सलाह :- "जिन्दगी की खुशहाली और जिन्दादिली के लिए पागलपन की श्रेणी  के Passions और दिल के  गहराइयों में उतर सकने वाले Relations होना उतना ही जरूरी है,जितना कि जीने के लिए हवा ! " 

8 comments:

Unknown said...

Darshan.. as always good one.Etne asani sai Jindgi ki gujri baaton ko tum phir sai khushnuma kar daitai ho.. it is really a gift ..
keep it up dude.

डॉ .अनुराग said...

चीजे ओर उनका जनून उम्र के साथ बदलता है .पतंग....कंचे .बेडमिन्टन....बसंत पर सूरज के छिपने पर बड़ा दुःख होता था इ काश सूरज को पकड़ कर रोक दे एक क्रिकेट ही ऐसी चीज़ रही जो एक उम्र तक उसी जनून के साथ साथ रही ....फिटनेस का आलम यूँ है की श्रीनगर घूमे गए .गुलमर्ग में सोचा ऊपर तक चढ़ेगे .....कुछ ऊपर जाकर हांफ गए ...साथ में बूढ़ा गाइड था .....उसने संभाला तो बड़ी शर्म आई के बेटे अब संभल जायो.....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kuchh-kuchh main bhi yaad kar rahaa hun....yaad aate hi yaad karungaa....!!

selva ganapathy said...

cricket almost saare school boys ka passion hota hai. I still remember those days when we quickly eat lunch in 5 mins and run to the ground daily to play for more than 50 mins..

hard luck that you are not able to participate in the tournament because of fitness!.. hope you'll recover soon and participate.

Vidhya said...

Hi Darsh, Really written in an awesome way (as always :)

Gudgudattey huee ye Cricket Prem ki Gajab kahani bahut hi mast hai...

PD said...

क्रिकेट ने तो हमे भी खूब नचाया है.. पटना में मई के महिने में, 45 डिग्री तापमान में, उस पर भी कड़ी में.. अब तो सोच कर ही लगता है कि कैसे कोई खेलता होगा..

कुछ कुछ वैसा ही है जैसे कि किसी समय पटना के गांधी सेतु पुल पर वेस्पा स्कूटर को 105 कि रफ़्तार से भगाना.. अब् नहीं हो सकता.. वैसे तो अभी भी 135 कि रफ़्तार से चेन्नई-बैंगलोर हाईवे पर भगा चुका हूं, मगर स्कूटर पर अब संभव नहीं है मुझसे.. दिवानगी भी एक चीज होती है भाई.. :)

कुश said...

इस से सस्ता सपना बिकता भी नहीं शायद..

ये सपना तो मुफ्त में मिलता था..

Poonam Nigam said...

तुम्हारी ये प्रेम कहानी ....बड़े ही प्यार से लिखी गयी है ये तो पता चलता है पढते हुए.....तुम्हारे विशुद्ध प्रेम की गाथा गाती ये पोस्ट...पढने में बड़ा आनंद आया.जितना मैंने तुमे देखा है एक बात जो अच्छी है तुममे...वो यही,इस पोस्ट का शीर्षक.."पैशन"...दिखता है तुम्हारे व्यक्तित्व में...तुम्हारी सोच में...और तुम्हारी रचनाओ में भी...और ये जाने वाला नहीं है :) जोकि सबसे अच्छी बात है. रही क्रिकेट की बात तो...मुझे ज्यादा पता नहीं,पर बड़े सारे लोग दीवाने हैं इसके....तो कुछ तो बात होगी :P और एक सलाह ...खेलो पर हड्डियाँ सलामत रखो :D

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