मेरे लिये सप्ताह के पाँच दिन दिल्ली मैट्रो से यात्रा करना एक आदत ही है ,परंतु ये क्या ? आज तो रविवार है और आज भी मैट्रो से यात्रा ? और वो भी मै अकेला नहीं मेरे साथ दो और लोग !
मुझे याद नहीं कि किस बात से हम तीनों बचपन की यादों में चले गये ! और शुरू हुआ दौर, बचपन में स्कूल में की गई गलतियों का वर्णन करने का :) !!
मुझे याद है कि कक्षा 9 में समाजिक विज्ञान में एक प्रश्न था ! प्र. आपरेशन फ्लड क्या होता है ?
मेरा उत्तर था, जिस कक्ष में घातक बीमारीयों से सम्बन्धित सामान जो आप्रेशन के समय काम आये रखे जाते है ,उस कक्ष को आपरेशन फ्लड कहा जाता है ,इस कक्ष में ही घातक बीमारीयों के आपरेशन भी किये जाते है :) ! वास्तव में आपरेशन फल्ड भारत में आयी दुग्ध क्रांति (श्वेत क्रांति ) को बोला जाता है ! हा हा :)
ऐसा ही जवाब था चौहान के सह्पाठी का
प्र. कबीर के जीवन पर प्रकाश डालिये ?
उसने कुछ लिखे बिना एक चित्र बनाया जो कुछ नीचे बने चित्र जैसा था शायद आप खुद ही समझें :) :)
फिर एक बच्चे की कापी याद आयी जिसने लिखा था
प्र. गाँधीजी कहाँ पैदा हुए थे ?
उ. गाँधीजी गाँधी चौक पर पैदा हुए थे :) :)
प्र. गाँधीजी कहाँ पैदा हुए थे ?
उ. गाँधीजी गाँधी चौक पर पैदा हुए थे :) :)
इन सब मस्ती भरे और हास्यास्पद किस्सों पर ठहाके मारते हुए ,हँसते हुए हम तीनों (मैं ,सेल्वा और अरुण ) दिल्ली विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन पहुँचे ! वहाँ से साईकल – रिक्शा से तीमारपुर के एम.सी.डी. गोदाम पहुँचे,जहाँ AID-आशायें नाम से युवाओं का एक संगठन एक समुदाय के बच्चों की शिक्षा के लिये कार्यरत हैं !
अरे यह मेला सा क्या लगा हुआ है ? टेन्ट वाले ने उस छोटे सी जगह को एक अच्छा सा मंच बनाने में अच्छी कोशिश की थी !
ना होली है,ना दीवाली,ना ही 15 अगस्त और ना तो 26 जनवरी,तो ये कैसा मेला है ? इतने सारे बच्चे और बच्चों का उत्साह, देखने योग्य था , और किसी भी त्यौहार से बेहतर लग रहा था ! पूरे समुदाय के ढेर सारे बच्चे इंतजार में थे कि कब उनकी जिज्ञासा का अंत होगा कि आखिरकार यहाँ क्या होने वाला है !स्वयं में एक प्ररेणा, विजय भैया सपरिवार मुख्य द्वार पर खडे थे ! मैने बचपन में किताबों में पढा हुआ है कि महान लोगों का ललाट (माथा) ओजस्वी और तेजपूर्ण होता है, और भैया से मिलकर मुझे बचपन की वह बात बार-बार याद आती है !
ना होली है,ना दीवाली,ना ही 15 अगस्त और ना तो 26 जनवरी,तो ये कैसा मेला है ? इतने सारे बच्चे और बच्चों का उत्साह, देखने योग्य था , और किसी भी त्यौहार से बेहतर लग रहा था ! पूरे समुदाय के ढेर सारे बच्चे इंतजार में थे कि कब उनकी जिज्ञासा का अंत होगा कि आखिरकार यहाँ क्या होने वाला है !स्वयं में एक प्ररेणा, विजय भैया सपरिवार मुख्य द्वार पर खडे थे ! मैने बचपन में किताबों में पढा हुआ है कि महान लोगों का ललाट (माथा) ओजस्वी और तेजपूर्ण होता है, और भैया से मिलकर मुझे बचपन की वह बात बार-बार याद आती है !
तकरीबन 8-9 साल की एक छोटी सी बच्ची विजय भैया के गोद में बैठने को आतुर हो रही थी ,मुझे लगा वह बच्ची भैया को पूर्व से जानती है ! भैया ने थोडी देर उसको गोद में बैठाकर नीचे उतारा,फिर वो मेरी गोद में आने लगी, सेल्वा ने बताया कि यह बच्ची हमेशा ही किसी ना किसी की गोद में बैठने का प्रयत्न करती है ! पहले थोडा अजीब लगा मुझे पर बाद में उस बच्ची की लालसा देख कर मैंने उसे गोद में ले लिया!
मैंने उससे नाम पुछा तो वो कुछ नही बोली ! मेरे चेहरे को छुने लगी, मुझे धीरे से थप्पड मारने लगी ! यद्यपि सभी बच्चे प्यार और अपनेपन की भाषा को बहुत खूब समझते हैं मगर ये बच्ची तो स्वयं में ही प्रेम के दीप के समान थी ! उसे इस बात की परवाह नही थी की वो किस के गोद में हैं ,उसे यह भी नहीं पता था कि मैं कौन हूँ !
उसे परवाह थी तो यह की वो कैसे प्यार करे और उसे कैसे प्यार मिले !
मैंने उससे नाम पुछा तो वो कुछ नही बोली ! मेरे चेहरे को छुने लगी, मुझे धीरे से थप्पड मारने लगी ! यद्यपि सभी बच्चे प्यार और अपनेपन की भाषा को बहुत खूब समझते हैं मगर ये बच्ची तो स्वयं में ही प्रेम के दीप के समान थी ! उसे इस बात की परवाह नही थी की वो किस के गोद में हैं ,उसे यह भी नहीं पता था कि मैं कौन हूँ !
उसे परवाह थी तो यह की वो कैसे प्यार करे और उसे कैसे प्यार मिले !
मुझे कुछ – कुछ असाधारण सी लगी यह बच्ची ,वह केवल किसी से भी प्यार पाने को उत्सुक रह्ती थी ! मुझे सेल्वा ने बताया कि उस बच्ची का नाम “ क़विता “ है और वह मानसिक रूप से कमजोर है !! एक पल के लिये मेरा मन दुखी हुआ लेकिन फिर मैंने सोचा कि सही में इस दुख का कोई वास्तविक कारण है भी या ये एक मिथ्या है ! जितने भी लोग इस आयोजन में सम्मिलित थे उनमें से “कविता” एक मात्र इंसान थी जिसे केवल एक ही भाषा का ज्ञान था ,प्यार की भाषा !!! क्या यह दुखी होने का कारण हो सकता है ? कदापि नहीं !! और मैं पून: खुश हो गया !
"" मेरे विचार से क़विता हम सब में श्रेष्ठ थी !""
"" मेरे विचार से क़विता हम सब में श्रेष्ठ थी !""
जैसे ही मंच पर कार्यक्रम शुरू हुआ , एक बहुत सुंदर नाटक का मंचन किया गया, और यह नाटक भी “कविता” के उपर आधारित था ! कहानी का सारांश यह था कि हमें कविता के साथ भी एक साधारण इंसान के समान व्यवहार करना चाहिये ! काफी प्रभावशाली मंचन था बच्चों के द्वारा !!
कविता अभी भी मेरे गोद में बैठी हुई, मंच पर अलग – अलग कार्यक्रमों को देखती और अंत में मेरे साथ तालियाँ जरूर बजाती ! अचानक से एक धमाकेदार गीत(आजा नच ले....) चला जिस पर 3-4 छोटी लडकियाँ मंच पर नाच रही थी ! कविता मेरे गोद से तुरंत उतरी और मंच की तरफ भागने लगी ! पहले तो सारे लोगों ने उसे रोकना चाहा जबकि मैं चाह रहा था कि उसको मंच पर जाने दिया जाये , थोडी देर में वो मंच पर नाचने लगी :) ! उसकी खुशी का आलम नहीं था ! अगर अतिश्योक्ति का प्रयोग करूँ तो
कविता अभी भी मेरे गोद में बैठी हुई, मंच पर अलग – अलग कार्यक्रमों को देखती और अंत में मेरे साथ तालियाँ जरूर बजाती ! अचानक से एक धमाकेदार गीत(आजा नच ले....) चला जिस पर 3-4 छोटी लडकियाँ मंच पर नाच रही थी ! कविता मेरे गोद से तुरंत उतरी और मंच की तरफ भागने लगी ! पहले तो सारे लोगों ने उसे रोकना चाहा जबकि मैं चाह रहा था कि उसको मंच पर जाने दिया जाये , थोडी देर में वो मंच पर नाचने लगी :) ! उसकी खुशी का आलम नहीं था ! अगर अतिश्योक्ति का प्रयोग करूँ तो
“ कविता ऐसे नाच रही थी जैसे बेसुध होकर मीरा कृष्ण-प्रेम में नाचती होगी “ लेकिन कविता जीवन प्रेम में नाच रही थी शायद ! हमारी तरह उसके मस्तिष्क की सीमायें ,परिवार ,स्कूल,समाज,देश,ज्ञान और विद्या के दायरे में खत्म नही हो जाती ! उसका जीवन अनंत सीमाओं को छू सकता है !
इस छोटी सी बच्ची को मानसिक कमजोर बोलना गलत होगा चूँकि ये लडकी तो ईश्वर के सबसे करीब है !
सारे कार्यक्रम को AID-Aashayen ( आशायें ) के सदस्यों ने बहुत ही प्रभावशाली बनाया था ,समुदाय के छोटे और कुशाग्र बच्चों का कुशल अभिनय,नृत्य और आत्मविश्वास देखने योग्य था ! बच्चों ने मंच पर आकर अपने भविष्य की आकाँक्षायें बतायी कि कोई ईंजीनियर बनना चाहता है तो कोई पूलिस वाला,यह सब सुनना निसंदेह सुखद था,बहुत प्रेरक था !
यद्धपि कविता नही बता सकती है कि वो क्या बनेगी या क्या बनना चाहती है लेकिन क्या उसे इन समाजिक महत्तवकाक्षाओं और भौतिकता वादी लक्ष्यों की आवश्यकता है भी ?
उसके लिये जीवन में खुशी और प्यार ही काफी है बल्कि काफी हद तक हमारे लिये भी ये दोनों चीजें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जो शायद हम भूल जाते है !!
इस छोटी सी बच्ची को मानसिक कमजोर बोलना गलत होगा चूँकि ये लडकी तो ईश्वर के सबसे करीब है !
सारे कार्यक्रम को AID-Aashayen ( आशायें ) के सदस्यों ने बहुत ही प्रभावशाली बनाया था ,समुदाय के छोटे और कुशाग्र बच्चों का कुशल अभिनय,नृत्य और आत्मविश्वास देखने योग्य था ! बच्चों ने मंच पर आकर अपने भविष्य की आकाँक्षायें बतायी कि कोई ईंजीनियर बनना चाहता है तो कोई पूलिस वाला,यह सब सुनना निसंदेह सुखद था,बहुत प्रेरक था !
यद्धपि कविता नही बता सकती है कि वो क्या बनेगी या क्या बनना चाहती है लेकिन क्या उसे इन समाजिक महत्तवकाक्षाओं और भौतिकता वादी लक्ष्यों की आवश्यकता है भी ?
उसके लिये जीवन में खुशी और प्यार ही काफी है बल्कि काफी हद तक हमारे लिये भी ये दोनों चीजें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जो शायद हम भूल जाते है !!
Darshan Mehra
PS: your feedback always motivates to write better ,so give it now on COMMENT section :)
Together we can and we will make the difference!! http://aidnoida.blogspot.com/
23 comments:
Agar is jeevan ke chand lamhe kise ko khuse dene ke kaam aa jaye too mai samazta hooi to yeh Jeevan Safal ho gayega .
Prayas --AID INDIA , Dwara keye jane wale har ek prayas ko mera sat -sat pranaam .
En bacchoo to ek naye umeed ke raha per dalne wale samast Volenters ko mera salam.
Darshan ----You have got the skills to penn down the things those were happened in reality .
Your blogs always gives be a deep thoughs about the missing part of my like .
daju start mai badi hansi aayi thi ( operation flood,kabir n gandhiji):). Pata nahi tha ki ye sab likhne wala hai tu.
All are good n also describe in nice way.
sahi kaha we most of the people are hunger for luxuries life and forget the value of luv.
nice article n nice job. You all AID people are doing great prayas.
All the best...
this is beautiful..& very touching...i also feel it sometimes- ki mansik roop se zyaada kamzor vo log nahin jinhone apne dilon ke darwaze jealousy, greed & selfishness se band kar rakhe hain...its all about perspective..
badiya hai Darshan!...I'm proud of you because you have written whatever I said you to write without missing any word :D
hay,
what ever u have written is very touching. Usually i don't like to read blogs (as u know) but today i read. Not because of your new article but because of the name u have given to the article.
But after reading, i found myself somewhere miles behind you and u are far far away from me. i am living for myself, its my fate , i don't know what ever u want to say u can say, but what to do. i too have emotions, simply i can say carry on man, if i can help u somewhere please let me know then and there. I will try my best.
I hope Kavita will surely find a good destination and path. i can understand u, your intention and that Kavita's life also.
All the best to u and AID
अगर महसूस कर सकना भर ही जिंदगी है तो बेहतर ... वर्ना शायद जीने के हक़ खो चुका हूँ मैं.
ये पहली बात थी जो ये पूरा विवरण पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में आई.
सुबह पढ़ा था.. मन पर कविता छाई थी , तेरी लेखनी में लगता है एक अजब सी कशिश आ गई है , पर उस लेखनी की चमत्कृत करने की क्षमता से ज्यादा विषय की सवेंदंशीलता कहीं अन्दर तक मानवता की कशिश को निचोड़ गयी.
खैर.. कविता छाई थी सुबह मन में, दिन भर जीवन के विभिन्न पहलुओं को फ़िर छूने की कोशिश की, हर उस बेईमानी में ख़ुद को पाने की कोशिश की , जो मजबूरी बन गयी है, कहीं ख़ुद को ठगा सा पाया तो कहीं टूटता हुआ... बस इसी जद्दोजहद में कविता खो सी गई.. और मेरी ख़ुद की प्रतिछाया ने मेरी सोच में कविता की जगह ले ली..
चिर अनंत काल की मजबूरी , फ़िर वही मैं, कटघरे में, ख़ुद के ही सामने,
ये विडम्बना है भाई, मानसिक तौर पे सक्षम कहे जाने वाला सभ्य समाज दरअसल ज्यादा तरस का हक़दार है..
अपनी सोच की विकलान्गिता के लिए...
This is really a touching story..in this world there are very small number of peoples who understand others feeling and in my opinion you are the one...great job darshan...
"काफी समय इंतजार करने के बाद आज फ़िर से दाजू (दर्शन) का ब्लॉग पढने को मिला..जैसे हे आपने कहा की रीड माय न्यू ब्लॉग, सबसे पहले मेरा मन में ये ख्याल आया की चलो आज काफी समय बाद फ़िर से कुछ आपनी मात्र भासा में पढने को मिलेगा..लकिन ये क्या आज तो दाजू के तेवर कुछ नए से हैं कुछ संवंदन शील लेख की आशा में ये क्या कुछ हशय प्रद सा लेख पढने को मिल रहा है, लकिन पूरा लेख पढने के बाद लगा की नही ये तो जीवन की वास्तिवक्ता का विवरण है...आप (एड ग्रुप) के सभी सदस्यों के सफल प्रयास के लिए दिल से सलाम..''
Quite touching!!
very beautiful and emotional write up....it has the 'feel good' quality inherent in it..padkar bahut achcha laga..especially the concluding lines where u hav said two things are basic for survival -Happiness and Love!!!
It made me think...
Happiness is the state of mind which we most of the time fail to recognize...
and love is something u get...when u giv it to others!!!
God grant us the wisdom, to appreciate the true nature of both these virtues!!!
Cheers to u DM!!!
Keep it up!!!
Hi Darshan
I missed out your previous blogs, but am realy happy i could catch up with this one
Am realy pround not just of you but also of all the volunteers who are utilizing their time for the benefit of children who are not as lucky as us
In this era when people are too busy to feel anything even for their closed ones, you and your friends are working towards making this world a better place to live.
As you rightly said, the spastic kids are probably a gift of god as they are untouched from the general flaws prevelant in the society today.Emotions like treachery, jealousy etc are not known to them.
I wish Kavita all the best in her life and hope the people around would learn few things from her spirit
Darshan, you have articulated it very well. Keep writing...
कभी कभी मैं सड़क पे खड़े पागल को चिल्लाते हुए देखता हूँ तो सोचता हूँ कि हम क्यों नही वैसे ही चिल्ला सकते बस इस लिए कि हमने कुछ किताबें पढ़ ली हैं और थोड़ा सा जीने का रंग ढंग जान लिया है | कुछ भी करने से पहले दस तरीको से सोचने कि आदत हो गयी है हमारी , और इसी लिए शायद हम सोच भले दस तरीकों से लें कुछ भी एक तरीके से भी नही कर पाते |
अच्छा ही है कविता हो जाना क्यूंकि उसके जीवन मैं कोई लकीर नही है , कुछ सही कुछ ग़लत नही है | हम लोग बस लकीरे खीचना सीख पाएं है ,जो कभी परिवार मैं , कभी राज्यों मैं और कभी राष्ट्रों मैं , कभी अपने धर्मों मैं खीच कर तसल्ली कर लेते हैं कि हाँ हम लकीर कि सही तरफ़ हैं ,|
दर्शन भाई सही मैं बड़ा अच्छा लगा कि कम से कम उस भावना को जो शाश्वत है ,सत्य है , उसको पूर्ण रूप से उसकी आत्मा के साथ ,शब्दों मैं ढालकर लिख रहे हो | आगे भी ऐसा ही ईमानदार लेखन करते रहना | बहुत बहुत बधाई ,और कविता से परिचय कराने के लिए धन्यवाद ,क्यूंकि ये अल्हड़पन ही हमारे सबके बीच कि कविता है |
hai'daju
mene blog pra to phle laga ke tune kuch kavita likhi hogi'pr jab ese pura padha to sach me bhut acha laga.kavita naam se etna acha artical with ur own filling.realy fantastic
Hey!Thanx for visiting.
i believe this blog actually reflect best emotion called " campassion"
i m actually very happy to see the merger of new age tecnology ( i,e blog ) + hindi
very nicely written post .. :)
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Webcam, I hope you enjoy. The address is http://webcam-brasil.blogspot.com. A hug.
Now its my turn again :)
.
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I am sincerly thanks you all the guys who have read my blog or commented ..
these comments always gives an insipiration to write something better ...
for new articles keep checking the blog
darshan
तुम्हारे सभी लेखो मे एक कशिश सी है,
लगता है तुमने जिंदगी को काफी करीब से देखा है!
क्या इसी कोई बात है दर्शन बाबू?
Life is like a coin. Pleasure & pain are the two sides. Only one side is visible at a time. But remember that the other side is always there.
आप जिंदगी मे काफी ऊपर जाओगे, क्योकि आप जो अभी कार्य कर रहे हो, इसे करने के लिए काफी सहन सकती और समय की आवश्यकता होती है, जो आज के युग मे बहुत कम लोगो के पास होती है! अंत मे मैं यही कहूँगा....
Fact of Life- Impossible doesn't mean tat it’s not possible .It actually means tat nobody has done it so far nd v r born to break the Limits. Keep rocking...
Manoj Pandey
Beautiful.Kavita.Your post.Your feelings.
It was quite touching.Totally convinced to wt pankaj says in his last line.
Simply Amazing Darshan, I did not just read it, I saw it with your eyes.
God Bless :)
शुरू में पोस्ट एक डायरी का पन्ना लगती है जो कि सिर्फ आपका निजी सरोकार सा हो जैसे..बात कविता तक पहुंची तो दूर तक ले गयी...हमारा सब का सरोकार बन गयी...ख़ुशी और प्यार से ज्यादा कुछ मायने नही रखता जबकि ज़िन्दगी बहुत छोटी है...
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