नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ..

on Monday, January 14, 2008



On 5 July 1943,
Netaji took over the command of the Indian National Army, and then
christened Azad Hind Fauj (Free India Army). Arrived from Manila in time to review the
parade of troops standing alongside with Rashbehari Bose, the founder of Indian National
Army. Addressing the soldiers, Netaji said:

अपने पूरे जीवन से मैं सीखा हूँ कि-
हिन्दुस्तान के पास वो हर एक चीज है जो आजादी के लिये आवश्यक है ,अगर कोई कमी है तो वो है एक सेना की, “आजादी की सेना” !!!
वाशिंगटन ने अमेरिका को ऐसी ही सेना के बल पर आजाद करवाया ,इटली को आजादी ऐसी ही सेना ने दिलवायी ! आप खुद को सौभाग्यशाली समझो कि “आजाद हिन्द फौज“ बनाने में आप लोग सबसे पहले आगे आये !
जवानो ,मुझे नही मालूम की हम में से कितने लोग इस आजादी की लडाई के बाद जीवित बचेंगे ! पर मैं इतना जरूर जानता हूँ कि, आखिरकार जीत हमारी होगी !
हमारा मक्सद तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि हम में से जीवित बचे हुए योद्धा दिल्ली में बैठे अंग्रेजी कुशासन को कुचल कर जीत का बिगुल न बजा दें !

जवानों दिल्ली चलो, तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूँगा ! जय हिन्द !!!!

सच कहुँ तो उपरोक्त लेख मैने AID-Aashayen के बच्चों के Fancy Dress Competition के लिये तैयार किया था, या ये कहना चहिये कि मैने हिन्दी रूपांतरण किया ,परंतु Internet से काफी कुछ पढ्ने को मिल गया ! Internet के द्वारा महान राष्ट्रवादी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महनायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन का विस्तुत ज्ञान हुआ!

काफी कुछ पढने के पश्चात दो विचार मेरे जहन में उठे !!!
1. क्या प्रत्येक भारतीय जनमानुष सही मायनों में स्वतंत्र हो चुका है ?
अगर हाँ तो, क्या ऐसी ही स्वतंत्रता को हासिल करने के लिये इतना संघर्ष किया गया था ? आशय यह है कि हम स्वतंत्र तो हैं इसमे कोई शक नही है परंतु हम में से कितने लोग स्वतंत्र हैं ?
देश के 37 % लोग आज भी दो जून की रोटी के लिये मोह्ताज हैं और एक तिहाई जनता प्राथमिक शिक्षा तक नही पाती है !

2. लेकिन असल सवाल जो मेरे दिमाग को परास्त कर गया वो यह कि सही मायनों में इतने बडे देश को इतने सूक्ष्म साधनों के दम पर,
कैसे देश को हमारे महानायकों ने स्वतंत्र कराया होगा ?
नेताजी ने तो देश से बाहर रह्कर ही “आजाद हिन्द फौज” को नेतृत्व प्रदान किया ! सच बोलूँ तो शायद यह कहना कतई अतिशयोक्ति नही होगा कि हमें पूनः एक और क्रांति की जरूरत है जो आजादी की लडाई के समान एक बार फिर से, देश के प्रत्येक नागरिक को अशिक्षा और भूख की दासता से मुक्त करें !
क्या ऐसी क्रांति के लिये आज हमारे पास नेताजी जैसे सशक्त महानायक हैं ?

नेताजी को समर्पित ..


Darshan Mehra

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लेख..

on Friday, November 30, 2007




मुझसे हिन्दी में कुछ लिखने को कहा गया है ,मैं लिखना भी चाहता हूँ ,परंतु अपने विचारों को कलमबद्ध करने में एक बाधा आ रही है और वह है एकाग्रता !
ऐसा नही है कि मैं इस अवसर का सदुपयोग नही करना चाहता लेकिन मेरे मष्तिस्क मे तीन अलग-2 विषय चल रहे हैं !
i.) हिन्दी और पाश्चात्य सभ्यता का हिन्दी पर प्रभाव
ii.) मेरा AID के साथ अनुभव
iii.) Volunteering का मक्सद - एक सच

फिर सोचा,क्यों न तीनों विषयों पर अपना दृष्टिकोण पेश करूँ !
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि मुझे अंग्रेजी (English) भाषा के प्रयोग से कोई व्यक्तिगत दुख हो ,बल्कि मेरा तो मानना है कि अंग्रेजी सर्वमान्य वैश्विक (ग्लोबल ) भाषा का दर्जा पा चुकी है ! और आज जब तकनीक और विकास ने राष्ट्र की सीमाओं को समाप्त सा कर दिया है तो एक सर्वमान्य वैश्विक भाषा का उदगम अवश्यंभावी है !
इस दृष्टिकोण से अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य सा लगता है ,लेकिन याद रहे कि “हिन्दी” हमारी मातृ भाषा है ! और अगर बडे शहरों के तथाकथित बडे शिक्षा संस्थान से पढा-लिखा नौजवान/ नवयुवती यह कहे कि “ मुझे हिन्दी पढने,लिखने या बोलने में कठिनाई होती है “ तो यह हमारी राष्ट्रीय सभ्यता व संस्कृति पर आघात है !
मैं कई ऐसे व्यक्तियों को जानता हूँ जो हिन्दी का उच्चारण भी अंग्रेजी की तरह करते हैं , और अंग्रेजी को उच्च भाषा का दर्जा देते हैं ! जबकि मेरा ऐसा मानना है कि
प्रत्येक भाषा अपने आप में महान होती है चाहे वह मूक – बधिर व्यक्ति की “ इशारों वाली भाषा “ ही क्यों न हो !
उपरोक्त वर्णित द्वितीय विषय के बारे में मेरा मत है कि AID (Association for India’s Development – हिन्दी में “भारत विकास संगठन” ) के साथ कार्य करके एक सबसे बडी बात मैं जाना हूँ ,कि हम AID से जुडे युवा, जो कि शिक्षा ,रोजगार,परिवार और समाज के दबावों को ढोते हुए ,हर क्षण अलग-2 सैकडों प्रतियोगिताओं और बाध्यताओं के बावजूद ,एक सकारात्मक मानसिकता से ग्रसित हैं ! ऐसी मानसिकता जो समाज और राष्ट्र के लिये हितकारी है ! यह मानसिकता है “ विकास की मानसिकता “ , “ समाजिक परिवर्तन की मानसिकता “, और अगर सही शब्दों में बोला जाय तो यह मानसिकता
“कमाल” कर सकती है अगर राष्ट्र का हर नागरिक इस मानसिकता का अनुग्रहण करे !
मैं AID का धन्यवाद करूँगा कि मुझे ऐसा मंच प्रदान किया,जहाँ मैं कई ऐसी मानसिकता वाले युवाओं से मिला ! लेकिन एक बात की तरफ मैं ध्यान खींचना चाहुँगा, कि मानसिकता से ज्यादा मह्त्त्वपूर्ण हमारे कृत्य ( या कर्म ) हैं जिनसे हम सही मायनों में एक “समाजिक परिवर्तन “ बन सकते हैं


Volunteering हमें वह मंच प्रदान करता है, जहाँ हम इस मानसिकता के साथ अपने कर्मों से, समाज के उस वर्ग के लोगों के जीवन में “एक परिवर्तन” बन सकते हैं जिस वर्ग को सत्ता और समाज अनदेखा कर देता है ! यह वर्ग जिसे हमारे जैसे युवा हाथों के सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत है ! वैसे भी सच ही कहा गया है कि

“Helping hands are better than praying lips!!!! “

अगर सारांश निकालूँ तो यही कहुँगा कि Volunteering करने की पीछे हमारा असल मक्सद केवल हम ही जानते हैं परंतु अगर हम “ समाजिक परिवर्तन “ बनने में सूक्ष्मतम भागीदार भी न बन सके तो यह एक Volunteer की सफलता नही मानी जा सकती !!




Darshan Mehra

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अनुभव

on Thursday, November 1, 2007



दिन शनिवार,तारीख 20 अक्टूबर 2007 ,समय दोपहर के 12:30 बजे
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लम्बा कुर्ता और जींस पहने हुआ यह् युवक, शायद 3-4 दिनो से दाडी नही बनायी थी उसने,वो चल दिया अपने एक मित्र से मिलने ! दोनों ही एक संस्था के लिये काम करते हैं,कई मामलों में सिद्धांत: दोनों की विचारधारा एक समान है ! उसका मित्र दिखने में दुबला-पतला है पर उसके विचार बहुत सशक्त्त हैं, और दोनों ही इस संस्था के जरीये व्यवस्था को झकझोरना चाह्ते हैं !

आज की मुलाकात एक खास मकसद से है,जिस संस्था के लिये ये दोनो काम करते हैं एक युवती उस संस्था के बारे में जानना चाहती है ताकि वो देश-विदेश से इस संस्था के लिये पैसा इकटठा करने में इन दोनों की मदद कर सके ,लेकिन इससे पहले की वो इस संस्था के लिये काम करे वो इन लोगों की विचारधारा से अवगत होना चाहती है ! इनके कार्य की विश्वसनीयता से वाकिफ होना चाहती है !
इस युवक के मित्र ने उस युवती को 11:00 बजे एक बडे से शापिंग काम्पलेक्स (मॉल ) में बुलाया था ,सभी युवतीयाँ अक्सर सही समय में पहुँच जाती हैं लेकिन लडके वो तो हर जगह देरी से पहुँचना अपना धर्म समझते हैं शायद J ,और वो दुबला युवक अभी तक नहीं पहुचा था !
इस माँल में सुरक्षा की कडी व्यवस्था है, और इस सुरक्षा को भेदना काफी कठिन है पिछले एक घंटे से वो युवती इस माँल के प्रथम-तल के कई चक्कर लगा चुकी है ,और इस बीच कई लोगों से लगातार फोन पर बातें भी कर रही है ,शायद समय बिताने का इससे अच्छा तरीका उपलब्ध भी नही था ! लेकिन इस बीच इस युवती की कुछ करीबी मित्रों से बात होने लगी, बात करते-2 युवती इस माँल के पूरे निचले तल का मुआयना कर चुकी थी ! निचले तल पर महिला शौचालय में जाते समय युवती अपने किसी मित्र को कुछ समझा रही थी,
वो युवती ये सारी बातें बकायदा आज की ग्लोबल भाषा “ENGLISH “ में कर रही थी , मेरे विचार से इस भाषा का ज्ञान होना उचित है परंतु आज की मैट्रो शहरों की युवा पीढी का ये हाल है कि उन्हें यह कह्ते हुए फक्र होता है कि “ मुझे हिन्दी पढ्ना- लिखना ठीक से नहीं आता “ और यही उदगार हमारे प्रिय “विजय भैया ” के भी हैं ! खैर ...
शौचालय जाते समय उस युवती का दो निगाहें पीछा कर रही थी ,जैसे ही युवती ने पीछे देखा,एक महिला नीले और सफेद रंग की धारीदार सलवार-कमीज पहनी हुई ,इस युवती को घूर रही थी,युवती ने महिला को देखते ही ,अकस्मात ही मोबाईल से बातें करना बन्द कर दिया ! युवती ने ध्यान दिया की ये महिला इस माँल की प्राईवेट सुरक्षा ऐजेंसी की सदस्या है ! महिला पाँचवी (5th class) से ज्यादा पढी-लिखी भी नही होगी !
तकरीबन 10 मिनट के बाद वह दुबला-पतला युवक इस युवती से माँल के निचले तल पर बने हुए काँफी-शाँप पर मिला! प्रारम्भिक परिचय के बाद दोनों उस संस्था के बारे में बातें करने लगे ! युवक जुकाम से परेशान था इसलिये बोलने मे भी कठिनाई हो रही थी उसे ! इसलिये उसने अपने उस मित्र को बुला लिया ताकि वो संस्था के बारे में
विस्तार से बता सके ! करीब 12:45 बजे उसका मित्र पहुँचा ! लम्बा कुर्ता और जींस पहने हुआ यह् युवक संस्था को मजबूत करने के विषय में वार्तालाप करने लगा ! पतले युवक के पास एक काला बैग था जो कि टेबल के नीचे रखा हुआ था !
अभी 15 मिनट भी नही हुए थे इन तीनो को बातें करते हुए कि एक पुलिस इंस्पेक्टर और कुछ सुरक्षा कर्मी उस काले बैग को देखते हुए इन तीनों की टेबल की तरफ बढे ! माँल के सुरक्षा विभाग के लोग और वो महिला सुरक्षाकर्मी जो उस युवती का पीछा कर रही थी भी इन सबके साथ थी ! पुलिस इंस्पेक्टर सहित सभी सुरक्षाकर्मी इन तीनों को एक अजीब सी शक भरी निगाहों से देख रहे थे ! तीनों घबरा से गये थे !
युवती ने इंस्पेक्टर से पुछा “ क्या बात है ? इंस्पेक्टर ने इशारे से इन तीनों को अपने पीछे आने को कहा,जब तक ये लोग कुछ समझ पाते इंस्पेक्टर ने तीनों से “Identity Card ” माँग लिये !जिस तरह से पुलिस बल आयी हुई थी लगता था कि कुछ गम्भीर मामला है ! तीनों को माँल के सुरक्षा कक्ष में ले जाया गया,एक-2 करके तीनों से स्थायी निवास का पता,फोन न.,और इस शहर में रहने का कारण पुछा गया ! जिस तरह से यह तहकीकात चल रही थी उससे लग रहा था कि पुलिस ये मान चुकी थी कि ये तीनों किसी आतंकवादी संगठन से जुडे हुए हैं !
चूँकि दोनों युवक उस युवती से पहली बार मिल रहे थे तो उनके मस्तिष्क में युवती के लिये,और युवती के मस्तिष्क में इन दोनों के लिये एक शक की सूई घुमने लगी ! बहुत पुछने पर पुलिस ने बताया, कि महिला सुरक्षाकर्मी ने उस युवती को शौचालय के अन्दर फोन पर कहते हुए सुना था कि “ security बहुत tight है , इस माँल में बम लगाना नामुमकीन है “ तीनों एक दुसरे को देखने लगे और ऐसा सुनकर हतप्रभ रह गये !!
युवती तो महिला सुरक्षाकर्मी के उपर भावावेश में आकर चिल्लाने लगी “कब सुना तुमने ऐसा ? सुरक्षाकर्मी बोली “ मैड्म एक साल से काम कर रही हूँ मैं यहाँ, आज तक तो ऐसा नही बोला मैंने “
तीनों से पुछ्ताछ होने लगी,लेकिन एक बात समझ से परे थी कि उस महिला सुरक्षाकर्मी ने उस युवती की अंग्रेजी भाषा में वार्तालाप कैसे समझ ली ?तीनों थोडा घबरा भी गये थे क्योंकि परिस्थितियाँ भी तीनों के विरूद्ध थी ! पहले युवती का 11 बजे से एक घंटे तक माँल के निचले तल में घूमना ,12 बजे पतले युवक का आना ,फिर 12:45 में कुर्ते वाले युवक का इन के पास पहुँचना,तीनों का अलग-2 राज्यों से होना,अन्जान युवती का पहली बार मिलना वो भी किसी संस्था के लिये धन इकटठा करने के मकसद से ! ये सारी बातें इनके खिलाफ ही तो थी !
काफी अलग-2 प्रश्नों का जवाब देने के बाद जब तीनों परेशान हो गये तब युवती बोली कि वो एक सेना-अधिकारी की पुत्री है और ऐसे क्रुत्यों में शामिल होना तो दूर ऐसा सोचना भी उसके लिये असंम्भव है ! तीनों ने बताया कि असल में हम लोग भी राष्ट्र कि सेवा करना चाहतें हैं इसीलिये एक NGO (AID-Association for India’s Development
http://delhi.aidindia.org ) के लिये काम करते हैं और इसी सिलसिले में यहाँ मिले थे ! बहुत समझाने के बाद पुलिस ये मानी की तीनों कोई आतंकवादी नहीं है !
पुलिस की तत्परता देख तीनों को अच्छा लगा,लेकिन एक अनपढ सी बिना ट्रेनिंग पायी हुई महिला सुरक्षाकर्मी के द्वारा अनकही बात के सुनने पर इतना बवाल मचा दिया गया,एकबारगी के लिये तो इन तीनों को आतंकवादी ही समझ लिया गया था J ,और उपर से एक बात का और ज्ञान हुआ वो यह की पढे-लिखे लोगों से पुलिस इस तरह से व्यवहार करती है तो बेचारे अनपढ,लाचार और ग्रामीण परिवेश के लोगों से क्या व्यवहार होता होगा !
खैर !! यह अनुभव एक यादगार अनुभव था और आपको बताउँ की इस लेख में कुर्ता पहने हुआ युवक मैं स्वयं हूँ ,और मेरे साथ दुबला-पतला युवक और कोई नहीं अरुण था, अरुण AID-Prayas का volunteer है और वो युवती सोनिया थी ,जो कि प्रयास के साथ पिछले 15 दिनो से जुडी है ! और यह घटना PVR SPICE Mall,Noida की है
हमारा यह अनुभव हम तीनों के लिये अच्चम्भित करने वाला था !!! मुझे लगा कि आपको भी अपने अनुभव से अवगत कराउँ !!


इति


Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com

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सूकून के वो दिन !!!!!!!

on Thursday, September 13, 2007



लिखना मुझे पसन्द है क्योंकि मुझे अपने बारे मैं गलत फहमी है कि “मैं ठीक ठाक लिख लेता हूँ ” कई बार लिख्नना बहुत संतोष देता है,
क्योंकि वो कलमबद्ध की हुई बात बाद मैं आपको उस् पल को दुबारा जीने का मौका देती है.

त्यागी (अंकित त्यागी ) और मेरा nature एक मामले मैं एक जैसा है! वो है हम दोनो को घुमना बहुत पसन्द है. और इसकी ही परीणिती थी की हम दोनो बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा पर गये. और मेरे हिसाब से ये यात्रा अपने आप मैं एक बहुत ही सफल यात्रा थी! Office से सोमवार मंगलवार की छुटी ली और उसमे शनिवार और रविवार का सप्ताहंत मिला कर 4 दिन की छुटीयॉ बन गयी !
4 मई 2007 :-

दिन मैं 6 महिने का review देने क बाद , 8 बजे रात को मैं घ्रर पहुचॉ . त्यागी पह्नले ही वहॉ पहुंच चुका था ! रात के 10 बजे अंतत: हमारी यात्रा शुरू हुई! जाते ही आनन्द विहार से A/C कोच बस मिल गयी. बस के साथ एक surprise मिला वो ये की Rambo भाई भी बस मैं ही थे ! Rambo ऋषिकेश अपने घर जा रहे थे , जबकी उसने दिन में मुझे कहाँ था की वो ऋषिकेश से बोल रहा है! फिर से एक मजकिया झूठ, जो मुझे हमेशा की तरह फिर पसन्द नही आया, खैर जैसे ही बस चली मैने त्यागी से बोला “देखना ये TRIP बहुत मस्त रहेगी.” जो बाद मैं सच साबित हुआ " !!!!

5 मई 2007 :-


सुबह 3:45 बजे हुम लोग ह्ररिद्वार/हरद्वार पहुँचे .इस शहर से मैं अपने इंजीनियरीइंग के दिनो से जुडा हुआ हूँ ! और हमेशा सोचता था कि इस् शहर को कोई ह्ररिद्वार (Haridwar) और कोई हरद्वार(Hardwar) क्यूँ कहते हैं , इस बार यह बात पता चली कि असल मैं इसके दोनों ही नाम हैं ! ये तीर्थ–स्थान् बद्रिनाथ (बद्री यानि विष्णु यानि हरी ) और केदारनाथ (क़ेदार यानि शिव यानि हर) को जाने का द्वार है ! कालेज के एक junior ने हमको बताया की बद्रिनाथ की बस यहीं से मिल जायेगी . 4:30 बजे हम लोग GMOU Ltd की बस से चल पडे बद्रिनाथ के लिये ! थकान और नींद से हाल बेहाल था , लेकिन ऋषिकेश में गंगा जी के किनारे-2 जब गाडी चल रही थी तो आंखो में दर्द तो हो रहा था नींद के मारे, पर इतना खूबसुरत नज़ारा देख कर सोने का मन नहीं कर रहा था ! देवप्रयाग पर गाडी रूकी , पहला नज़ारा ही हिन्दी फिल्म “ किसना “ की याद् दिलाने वाला था ! देवभूमी

उतराखण्ड के पांच प्रयाग में से एक ! बहुत ही मनोहारी द्र्श्य था ! इसके अलावा ये जगह आलू के पराठों के लिये भी मशहूर है!
सृपाकार सड्कों से गुजरते हुए 1:30 बजे दिन में हम चमोली पहुँचे ! भूख अपनी चरम पर थी, आलू-प्याज के पराठें, दही ,अचार् इतने लजीज शायद ही कभी लगे ! अब तक बस का सफर करते हुए लगभग 16 घंटे हो चुके थे ! हम बहुत बुरी तरह से थक चुके थे, और कंड्क्टर ने बताया कि अभी भी 4-5 घंटे और बचे हैं बद्रिनाथ पहुँचने में !!!
आगे का रास्ता और भी घुमावदार , आखिरकार 4- 4:30 बजे हम जोशीमठ पहुँचे और वहाँ पता चला कि जोशीमठ से बद्रिनाथ दोनों तरफ एक साथ ट्रेफिक नही चल सकता इसलिये हमको 5:30 बजे तक इंतजार करना पडेगा ! इस बीच हम दोनों भगवान नरसिंह के मन्दिर में दर्शन करके अपनी तीर्थ यात्रा का आगाज़ कर चुके थे !
1:30 घंटे के इंतज़ार के बाद सुहाने मौसम में हम लोग जोशीमठ से बद्रिनाथ के लिये चल पडे ! हल्की-2 सी बारिश के बीच करीब 1-1:30 घंटे में हम आखिरकार बद्रिनाथ पहुँचे ! रास्ते में ही बर्फ से ढ्के पर्वत श्रंखलायें दिखने लगी थी ! इतने करीब से बर्फ के पर्वत मैने पहले नही देखे थे, जबकी मेरे घर से यानि रानीखेत से हिमालय काफी करीब नज़र आता है!
बद्रिनाथ पहुँच के ठंड अपनी पराकाष्ठा पर थी ! दिल्ली से सोचा भी नही जा सकता था कि इतनी ठंड होगी वहाँ , एक छोटे से होटल में रूम लेकर हम लोग यानि मैं और त्यागी उस ठंड में निकल पडे टहलने !
20 घंटे की बस की यात्रा करने के बाद थकान से पुरा शरीर टूट रहा था, इसलिये रात को 9:30-10 बजे सो गये !!!!



6 मई 2007 :-


ये सोचकर की अलार्म से 4:30 बजे उठ जायेंगे ! मगर 5:30 बजे उठे ,खिड्की से बाहर का नजारा इतना सुन्दर था कि बयाँ कर पाना मुश्किल है ! बर्फ आछादित, नर – नील पर्वतों पर सूरज की किरणें पड रही थी, उठ्ते ही त्यागी इस् द्र्श्य को कैद करने में मशगूल हो गया कैमरे के साथ ! इतनी खुशनुमा सुबह के साथ दिन तो सुन्दर होना ही था !
कडाके की सर्दी थी बाहर, किसी तरह मैं और त्यागी तप्तकुंड तक पहँचे,गर्म पानी का कुन्ड !!! इतना गर्म की लग रहा था की जल जायेंगे ! पहले 3-4 मिनट तो बहुत गर्म लगा पानी लेकिन बाद में आनंद आ गया, सारी सर्दी खत्म हो गयी और मजा आ गया समझ लो , हा हा हा !! बद्रीनाथ के प्रांगढ् में पहुँच कर याद आया कि कैमरा लाना भूल गये थे , सो वहाँ के एक कैमरामैन से फोटो खिंचँवाया, और भगवान के दर्शन किये, एक अलग ही माहौल था मन्दिर में ! चित प्रसन्न हो गया, कुछ अपनी मनोकामनायें मांगी और कुछ लोगों की !!!
बद्रीनाथ से सीधे “माना” गाँव के लिये चल पडे पैदल ही ,3-4 कि.मी. की दूरी पर यह आखिरी गाँव् है भारत सीमा का !
इस गाँव से ही विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का उदगम होता है ! साफ , निर्मल, पवित्र और नीले रंग की यह नदी करीब 100 मी. आगे जाकर भगीरथी नदी में समा जाती है ! इतना स्वच्छ जल शायद ही कहीं आप देख सकते हो !


अब हम चल पडे सबसे मुश्किल चढाई पर “वासु की धारा” !!
5.5 कि.मी. की चडाई वो भी समुद्र तल से 4000 मी. की उचाँई पर, उपर से एक और गलती कर दी हम ने, हमारे पास ना पानी था न खाना! शायद हम दोनों ही शुरुआत कर रहे थे इस कठिन चढाई को चढ्ने की ! हम लोग चारों तरफ से बर्फ से ढके हुए पहाडों से घिरे हुए थे ! और लग रहा था की हिमालय को छुने की कोशिश है ये ! धीरे-2 जब हमने चढना शुरू किया तो थकान लगनी भी शुरु हुई , और जब साथ में त्यागी हो वो भी Woodland के 2-2 Kg. का एक जुता पहने हुए तो सोचो क्या हाल होना था J !
रास्ते में वासु की धारा के करीबी जगह नज़र आ रही थी ! बस ये पता चल रहा था की आज तो हिमालय (हिम+ आलय) में पहुँच के रहेंगे ! पर त्यागी की हालत थोडी खराब होना शुरु हो गयी थी, और हमारे पास पानी तक नही था, पुरे रास्ते में हमको केवल एक Spain की महिला नज़र आयी और उसके पास भी पानी खत्म हो गया था ! रास्ते के बायीं तरफ बर्फ की नदी बह रही थी, और बर्फ के समन्दर से हम लोग केवल 100-200 मी. दूर थे ! त्यागी की रफ्तार कम देख कर मैंने उसे छोडा और अकेले ही चल पडा, अभी भी 1 किमी. का रास्ता बचा हुआ था और मेरी हालत भी थकान से खराब होने लगी,उपर से साँस लेने में भी बढी दिक्कत आ रही थी ! त्यागी कम से कम 1 किमी. की दूरी पर होगा मुझसे , आखिरी दूरी है यह सोच कर मैंने अपनी पूरी ताकत लगा दी , आखिरकार “वासु-धारा” दिखने लगा मुझे !
इतना सुन्दर द्र्श्य !!! एक सफेद गददे के समान बर्फ से ढकी हुई घाटी, और उपर से गिरता हुआ जल- प्रपात, करीब 500-600 मी. की उचाँई से गिरता हुआ बर्फ का बिल्कुल सफेद पानी का झरना, यही था “वासु-धारा’’, एक छोटा सा मन्दिर था वहाँ पर, माता का मन्दिर , छोटी सी मूर्ती लगी थी, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे माता मुझे एकटक देखी जा रही हो !

बडी हिम्मत करके मैं बर्फ में चलते हुए वासु की धारा के करीब पहुँचा, डर भी लग रहा था चूँकि मैं अकेला था इस विरान जगह पर, और बर्फ धंस भी सकती थी, और त्यागी अभी तक नहीं पहुँचा था ! मैंने अपने लेदर का जैकट उतारा, और बर्फ में बिछा कर उस पर बैठ गया , मुझे महसूस हो रहा था कि इससे सुन्दर स्वर्ग भी नही हो सकता शायद ! चारों तरफ से बर्फ के पर्वत, बीच में बर्फ की नदी, उपर से गिरता हुआ जल-प्रपात, और इस मनोहारी द्र्श्य का आनंद लेता हुआ मैं , अकेला बर्फ के गददे के उपर लेटा हुआ ! एक प्राणी और नजर आया मुझे,एक अकेला बन्दर ! जो उस सुनसान जगह पर बहुत अच्छा लग रहा था ! करीब आधे घंटे बाद थका-हारा हुआ त्यागी पहुँचा, उसकी थकान से हालत खराब थी और उपर से उसके 2-2 Kg के जुतों ने पैर पर घाव कर दिया था ! बडी हिम्मत करके वो उपर वासु की धारा पर पहुँचा, हम दोनों एकदम करीब गये, बहुत ही ठंडा पानी था वहाँ ,और बहुत ही गहरी खाई थी ! हम लोग ठंड से अकड रहे थे लेकिन थकान और प्यास अपने चरम पर थी ! आखिरकार हम लोगों ने बर्फ खाकर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करी ! बर्फ पर थोडी देर आराम करने के बाद, स्केटिंग करते हुए नीचे उतरे ! अब फिर से 5.5 किमी. का पैदल रास्ता लेकिन इस् बार नीचे जाना था !




त्यागी के जूते बदल कर मैंने पहने और करीब 1-1.5 घंटे में नीचे पहुँच गये,भूख और प्यास क1 निदान करके माना से चल पडे फिर बद्रीनाथ के लिये, हम लोगों ने सोचा था कि आज ही केदारनाथ के लिये रवाना हो जायेंगे, लेकिन भूखहडताल छूट चूकी थी :) !! भूखहडताल उस बस का नाम है जो बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच चलती है ! लोगों ने किसी समय इस बस सेवा को बन्द करने के विरोध में भूख हडताल की थी तब से इस बस का नाम भूखहडताल पड गया !!
माना से हम लोग काफी लेट हो चुके थे, भूखहडताल नही पकड पाये ! इसलिये हमने लंच करने के बाद जोशीमठ के लिये प्रश्थान किया, काफी मशक्कत करने के बावजूद हमें जोशीमठ से आगे के लिये बस नहीं मिली ! रात जोशीमठ में ही बितायी !



7 मई 2007

सुबह तडके ही चल पडे केदारनाथ के लिये, एक सज्जन ने हमें रुद्रप्रयाग तक छोड दिया, लंच करके चल पडें अपने अगले पडाव की ओर ! कई सारी गाडियाँ बदल कर, फिर से लगभग 250 किमी. का सफर तय करके हम 3.30 बजे गौरीकुंड पहुँचे ! गौरीकुंड से 14 कि.मी. की चढाई और वो भी इतनी ऊँचाई पर, केदारनाथ जाने का रास्ता बहुत खराब है , क्योंकि घोडे साथ-2 चलते हैं और रास्ते की सफाई का कोई इंतजाम नहीं है ! धीरे-2 मैं और त्यागी 1-1 कि.मी. पर रुक-2 कर चलते गये ! मौसम बहुत ही सुहाना था , दायीं ओर मन्दाकिनी नदी का प्रवाह मधुर था, सफेद झाग सा पानी पुरी निष्छलता से प्रवाहित हो रहा था ! और सामने के पहाडों पर बादल घने जंगलों के साथ ऐसे लग रहे थे जैसे कोई क्रीडा में मस्त हों !
रामबाडा अभी 2-3 कि.मी. दूर था, और घनघोर वर्षा शूरू हो गयी, रास्ते के किनारे एक सराय में रूकना पडा ! आधे-एक घंटे तक जब वर्षा नही रूकी तो हमने रू 20-20 की बरसाती खरीदी और चल पडे रामबाडा की ओर ! रामबाडा ठीक आधे रास्ते में पडता है केदारनाथ के ! करीब 7 बजे हम रामबाडा पहुँचे ! अंधेरा हो चुका था और रामबाडा पर होटल भी उपलब्ध थे मगर हमको दूसरे दिन लौट्ना था ताकि तीसरे दिन आफिस आ सकें !
तो हमने निर्णय लिया कि रात को ही केदारनाथ् पहुँचते हैं ताकि सुबह-2 दर्शन करके वापस दिल्ली के लिये चल सकें ! 7:30 बजे हमने चढाई शूरू की, रामबाडा से एक टार्च किराये पर ले लिया और इसके सहारे ही हम दोनों चल पडे , पहले-2 कुछ घोडे वाले वापस आते हुए रास्ते में मिले जा रहे थे लेकिन बाद में तो वो भी दिखने बन्द हो गये,
हम दोनों के लिये वो गीत सूट कर रहा था भूपिन्दर ने गाया है ,


                                                   “दो अकेले इस जंगल में, रात में दोपहर में !!,



                                                     आबोदाना ढूढँते हैं , आशियाना ढूढँते हैं !!!!



थकान और भूख से जान निकल रही थी, और शायद इतनी थकान पहले कभी नही लगी थी , आखिरकार गिरते – मरते हम 11:00 -11:30 बजे केदारनाथ पहुँच गये ! इतनी रात को हमको होटल मिलना मुश्किल था , हम लोगों ने कई दरवाजे खट्खटाये मगर सारे होटल भरे पडे थे ! हमारे उपर थकान इतनी हावी थी की भूख-प्यास तो जैसे भूल गये थे ! मेरे लिये पूरी यात्रा का सबसे यादगार पल वो था जब ठीक रात के 12:00 बजे हम होटल की तलाश में क़ेदारनाथ मन्दिर के प्रागंण में पहुँच गये !
एक पल के लिये तो मैं सन्न रह गया , मुझे ऐसा लगा जैसे भगवान के सच में दर्शन हो गये ! इतना खूबसूरत लग रहा था भगवान केदार जी का मन्दिर जो मेरे लिये अवर्णनीय है
 !
       शायद प्रभु की ही कृपा थी की उस भले मनुष्य ने एक गोदाम में रहने की व्यव्स्था कर दी, थकान के कारण,बिस्तर में ऐसा लग रहा था जैसे इतना आरामदायक बिस्तर कभी मिला ही न हो !

8 मई 2007
       सुबह किसी तरह स्नान की व्यव्स्था होने के बाद हम केदारनाथ जी के दर्शन के लिये पंक्ति में लगे ! मुझे इस स्थान की प्राकृतिक छ्टा को देख कर बार -2 ये लग रहा था कि भगवान को अपना निवास स्थान के लिये इससे ज्यादा उपयुक्त जगह मिलना शायद मुमकिन नहीं था ! मन्दिर के ठीक पीछे बर्फ का पहाड वो भी गगनचुम्भी उँचाई तक, ऐसा लगता है मानो ईश्वर का मुकुट धरा से स्वर्ग तक छूँ रहा हो ! दो – ढाई घंटे के बाद हमारे दर्शन हुए ! बडी रोचक कथा है केदारनाथ जी की ! महीषी भैंस के पिछ्ले हिस्से की पूजा होती है यहाँ ! मन्दिर के अन्दर आप चाहो या ना चाहो आप भगवान के रंग मे रंग ही जाओगे ! लोगों की आस्था देख मन गदगद हो जाता है !
11:30 बजे हम चल पडे अपनी यात्रा के समापन की ओर यानि वापसी पर ! फिर से 14 किमी. की पैदल यात्रा और शरीर की ऊर्जा काफी कम हो चुकी थी , पिछ्ले कुछ दिनों की मेहनत से ! मूसलाधार बारीश् ने काफी बाधा डाली और आखिरकार हम 3:30 बजे गौरीकुंड पहुँचे !
शाम के 7:30 बजे हम लोग रूद्रप्रयाग पहुँचे , रास्ते में गाडी से आते वक्त चेन्नई उच्च न्यायालय के एक वकील से बात हो गई ! हिन्दू धार्मिक ग्रंथावली का काफी अच्छा ज्ञान था उन्हें !
चूँकि अगले दिन आँफिस आना था हमें और गाडीयाँ चलती नहीं रात को गढवाल में तो हमने निर्णय लिया की ट्र्क ही सही पर वापस आना ही है उसी दिन , कुछ झूठ बोल कर अन्दर के सिगरेट के धुऐं से बचने के लिये हम दोनों ट्रक के छ्त पर चले गये ! ये एक अनोखा अनुभव था , रात को पहाडों की घुमवदार् सड्क पर ट्र्क के छ्त पर सोये हुए कभी एक तरफ लुढकते थे तो कभी दूसरी तरफ ! और थकान इतनी हावी थी कि ट्र्क के छ्त पर भी नींद आ गयी !

9 मई 2007

सुबह 3 बजे जब हरिद्वार/ हरद्वार पहुँचे तब आँखें खुली ! चूँकि मुझे सुबह् आँफिस आना था इसलिये तुरंत गाडी में बैठे दिल्ली के लिये ! पर यहाँ भी संघर्ष करना था, मेरठ रूट बन्द था ! पता नहीं किस-2 रास्ते से लाया ड्राईवर गाडी को , और ये हो ना सका कि मैं दिल्ली समय से पहुँच कर आँफिस आ पाया ! छुट्टी लेनी पडी ! ठीक 11:30 बजे मैं नोयडा पहुँचा घर पर !
अगर सारांश निकाला जाय तो मैं यही कहुंगा कि “ शारीरिक थकान भरी इस यात्रा में एक-एक पल भरपूर आनंदायक था, और अगर सही देवभूमी देखनी हो तो केदारनाथ दर्शन सर्वोतम है ”
मैं ये कहना चाहुंगा कि शायद मैं ये सबकुछ लिखता नही, पर त्यागी को यात्रा के दौरान वचन दिया था मैंने, और वो मुझे निरंतर याद दिलाता रहा और आखिरकार ये खत्म हो ही गया .....
इति !!!

नोट :- कृपया भाषा की त्रुटियों पर ध्यान न दें ,कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखना अपने आप में जंग जीतने जैसा है !!!



Darshan Mehra
darshanmehra@gmail.com

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